अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त

शनिवार, 16 नवंबर 2013

मनुस्मृति :12220 वर्ष से अधिक प्राचीन है | ManuSmriti : Atleast 12220 Years Old Law Book


इस लेख का मंतव्य यह जानना है कि वेदों के पश्चात सर्वमान्य महर्षि मनु द्वारा रचित ग्रन्थ मनुस्मृति की आयु क्या है अर्थात यह लगभग कितना पुराना है ?

यह सिद्धांत अत्यंत सहज तर्क पर कार्य करेगा जैसे की कोई व्यक्ति पिता बनने से पूर्व अपने पुत्र वा पुत्री के बारे में नही जान सकता किन्तु पुत्र अपने पिता के बारे में सदैव जनता है ।

अतः इस लेख में हम पर्याप्त तर्कों व् प्रमाणों से सिद्ध करेंगे की मनु महाराज की पुस्तक मनुस्मृति महाभारत काल तथा रामायण काल से भी अधिक प्राचीन है अर्थात कम से कम 12220 वर्ष पूर्व तक विधमान थी । यहाँ हमने कम से कम 12220 वर्ष  पूर्व लिखा है अतः ये उससे भी अधिक प्राचीन है किन्तु निश्चित समय बता पाना अभी के लिए सम्भव नही ।

महाभारत काल - 

सभी को विदित है की महाभारत का समय लगभग 3000  ईसा पूर्व का था अर्थात आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व । यदि प्रमाण चाहे तो यहाँ जाएँ वैज्ञानिक पद्धति दवरा विश्लेषण किया गया है -
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/xx

महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक - 

महर्षि वेदव्यास (कृष्णद्वेपायन ) रचित महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में महाभारत वा व्यास जी का नाम तक नही ।

महाभारत में मनु महाराज की प्रतिष्ठा - 
मनुनाSभिहितम् शास्त्रं यच्चापि कुरुनन्दन ! महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७  - श ० ३ ५ 
तैरेवमुक्तोंभगवान् मनु: स्वयम्भूवोSब्रवीत् । महाभारत शांतिपर्व , अ० ३ ६   - श ० ५ 
एष दयविधि : पार्थ ! पूर्वमुक्त : स्वयम्भूवा । महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७  - श ० ५ ८ 
सर्वकर्मस्वहिंसा हि धर्मात्मा मनुरब्रवीत् ।  महाभारत शांतिपर्व , मोक्षधर्म आदि । 

अतः सिद्ध होता है कि मनु महाभारत के समय उपस्थित थी तभी महाभारत रचयिता ने स्वयं राजसी मनु के कथनो को प्रमाण स्वरुप लिखा है ।

अब प्रतिवादी तर्क कर सकता है कि मनु महाभारत में थी ये तो स्पष्ट हो गया परन्तु श्लोकबद्ध मनु उस समय उपलब्ध थी वा नही ? ये स्पष्ट नही हुआ ।

अतः अब ये देखें -

अद्भ्योSग्निब्रार्हत: क्षत्रमश्मनो लोहमुथितं । 
तेषाम सर्वत्रगं तेजः स्वासु योनिशु शाम्यति ।। - मनु अ०  ९ - ३ २ १ 

ठीक यही मनु का श्लोक महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६    - श २ ४ 
में आया है और महाभारत के इस श्लोक से ठीक पूर्व २ ३ वें श्लोक में आया है -
"मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना"
अर्थात हे राजेंद्र ! मनु नाम महात्मा ने इन श्लोकों को कहा है !

इसी प्रकार मनु के जो जो श्लोक ज्यों के त्यों महाभारत में है ;
मैं यहाँ अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ

मनु ० १ १ /७ - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ५
मनु ० १ १ /१२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ९
मनु ० १ १ /१८ ०   - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ३ ७
मनु ० ६  /४५    - महा० शांति अ ० २४५  - श ० १५
मनु ० २  /१२०     - महा०अनु ० अ ०१०४ - श ० ६४

अब वो श्लोक लिखते है जो मनु के है परन्तु कुछ परिवर्तन के साथ आयें है -

यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
यश्च विप्रोSनधियान  स्त्रयते नाम बिभ्रति । ।  - मनु २ /१५७ 

यथा दारुमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
ब्राह्मणश्चानधियानस्त्रयते नाम बिभ्रति । ।  -महा  शांति ३६/४७ 

अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ जो  कुछ परिवर्तन के साथ आयें है -

मनु ० १ १ /४ - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ४
मनु ० १ १ /१२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ७
मनु ० १ १ /३७  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० २ २
मनु ० ८  /३७२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ६३
मनु ० २  /२३१  - महा० शांति अ ० १०८ - श ० ७
मनु ० ९  /३  - महा० अनु अ ० ४६ - श ० १४
मनु ० ३ /५५   - महा० अनु अ ० ४६ - श ० ३

लगभग मनु के  ५ ० ऐसे श्लोक है जो ज्यों के त्यों वा कुछ परिवर्तन के साथ महाभारत में आये  है ।

इतने प्रमाणो के रहते कोण कह सकता है कि मनु महाभारत समय में श्लोकबद्ध अवस्था में न थी ?

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 5000 वर्ष तो पुरानी है ही !!

रामायण काल - 
रामायण काल का समय लगभग 7300  ईसा पूर्व का माना जाता है अर्थात आज से लगभग 9300 वर्ष पूर्व । यदि प्रमाण चाहे तो यहाँ जाएँ वैज्ञानिक पद्धति दवरा विश्लेषण किया गया है -
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/ram
http://www.bookganga.com/eBooks/Books/Details/5484187422894534051


वाल्मीकि रामायण में मनुस्मृति के श्लोक - 

महर्षि वाल्मीकि  रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही ।

वाल्मीकि रामायण में मनु महाराज की प्रतिष्ठा - 

किष्किन्धा काण्ड में जब श्री राम अत्याचारी बाली को घायल कर उसके आक्षेपों के उत्तर में अन्यान्य कथनो के साथ साथ यह भी कहते है कि तूने अपने छोटे भाई सुग्रीव कि स्त्री को बलात हरण कर और उसे अपनी स्त्री बना अनुजभार्याभिमर्श का दोषी बन चूका है , जिसके लिए (धर्मशास्त्र ) में दंड कि आज्ञा है ।
इस पृथिवी के महाराज भरत है (अतः तू भी उनकी प्रजा है ) ; मैं उनकी आज्ञापालन करता हुआ विचरता हूँ फिर में तुझे यथोचित दंड कैसे ना देता ? जैसे -

श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्र वत्सलौ ||
गृहीतौ धर्म कुशलैः तथा तत् चरितम् मयाअ || वाल्मीकि ४-१८-३०

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

उपरोक्त श्लोक ३० में मनु का नाम आया है और श्लोक ३१ , ३२ भी मनु महाराज के ही है !
उपरोक्त श्लोक किंचित पाठभेद (परन्तु जिससे अर्थ में कुछ भी भेद नही आया ) मनु अध्याय ८ के है ! जिनकी संख्या कुल्लूकभट्ट कि टिकावली में ३१८ व् ३१९ है -

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

राजभिः धूर्त दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || मनु  ८ / ३१८

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

शसनाद्वा  अपि मोक्षाद्वा स्तेनः स्तेयाद विमुच्यते |
अशासित्वा तू तं राजा स्तेनस्याप्नोति किल्बिषम् ॥ मनु ८/३१६

अतः यह सिद्ध हुआ कि श्लोकबद्ध मनु रामायण के पूर्व भी विधमान थी । यदि कोई कहे ये क्यों न माना
जाये कि उपरोक्त दोनो श्लोक वाल्मीकि से मनु में आयें हो ?
इसका उत्तर यह है कि महर्षि वाल्मीकि  रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही और रामायण में स्पष्टतः मनु के श्लोकों (मनुना गीतौ श्लोकौ) कि प्रशंसा विधमान है ठीक उसी प्रकार जैसे महाभारत में थी "मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना" - महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६ - श २ ३ 

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 9000 वर्ष तो पुरानी है ही !! 

किन्तु - 
चीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण -
विदेशी प्रमाणो मनुस्मृति के काल तथा श्लोको कि संख्या की जानकारी कराने वाला एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण चीनी मिला है । सन १९३२ में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन कि ऎतिहासिक दीवार को तोडा तो उसमे से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमे चीनी भाषा कि प्राचीन पांडुलिपियां भरी थी । वे हस्तलेख Sir Augustus Fritz George के हाथ लग गये वो उन्हें लंदन ले गया और ब्रिटिश म्युजियम में रख दिया ।
उन हस्तलेखों को Prof. Anthony Graeme ने चीनी विद्वानो से पढ़वाया तो जानकारी मिली -
चीन के राजा Chin-Ize-Wang ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जावे जिससे चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जावे । तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चिनवा दिया । संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया ।
चीनी भाषा के उन हस्तलेखों मेसे एक में लिखा है -
'मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है'
तथा इसमें मनु के श्लोकों कि संख्या 630 भी बताई गई है किन्तु वर्त्तमान में मनु में 2400 के आस पास श्लोक है ।

The wording is such as to pay high tribute to the genius and influence of the Emperor, but it also proves that many hundreds of years ago this Emperor and his people were possessed of knowledge and ideals, laws, and principles which we are apt to think are quite modern. For instance, The manuscript shows that the Chinese emperor and his people had adopted the Laws of Manu which were written in the Vedic language ten thousand years ago. 
http://rosicrucian.50webs.com/hsl/hsl-light-from-china.htm


यह विवरण मोटवानी कि पुस्तक 'मनु धर्मशास्त्र : ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज' पेज २३२ पर भी दिया है ।

इसके अतिरिक्त R.P. Pathak कि Education in the Emerging India में भी पेज १४८ पर है जो लिंक हम आपको दिए देते है -
ये गूगल पुस्तक है -
http://books.google.co.in/books?id=z_OCjp-T2vIC&pg=PA148&lpg=PA148&dq=Chin-Ize-Wang&source=bl&ots=l2ZvnPXZ9z&sig=F9jLXhHQtOm9-jwGTXjkz9KBzQw&hl=en&sa=X&ei=ZcOGUrPZI46BrgepiIGQCQ&ved=0CDMQ6AEwAQ#v=onepage&q=Chin-Ize-Wang&f=false

इस दीवार के बनने का समय लगभग  220–206 BC बताया जाता है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220BC से पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा  220+10000 = 10220 ईसा पूर्व ; आज से 12,220 वर्ष पूर्व कम से कम तक मनुस्मृति उपलब्ध थी ।

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु अब से कम से कम 12220 वर्ष पूर्व से और प्राचीन हो चुकी है !

साथ साथ ही यदि वेदों कि बात करें तो

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम । 
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम् ॥ मनु १/१३ 
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारो ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये उस ब्रह्मा ने अग्नि , वायु, आदित्य और [तु अर्थात ] अंगिरा से ऋग , यजुः , साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया ।

वेदोSखिलो धर्ममूलम् ।  मनु २/६ 
वेद सम्पूर्ण धर्म (कानून Law) का मूल है ।

यः कश्चित्कस्यचिधर्मो मनुना परिकीर्तित : । 
स सर्वोSभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः ॥ मनु २/९ 
मनु ने जिस किसी को जो कुछ भी धर्म कहा है वह सब वेद के अनुकूल ही है , क्योकि वेद सर्वमान्य है ।

नास्तिको वेदनिंदकः ।  मनु २/११ 
वेद कि निंदा करने वाले नास्तिक (अनीश्वरवादी) है

इत्यादि अनेक वचन है जो वेद के सन्दर्भ में मनु में आये है बल्कि यह कहना उचित होगा मनुस्मृति वेद सार ही है । अतः वेद मनु से प्राचीन है इसमें लेशमात्र भी संदेह नही ।

मनु में जहाँ कहीं भी वेद विरुद्ध आचरण दिखे वो प्रक्षेप (मिलावट ) है अतः त्याज्य है ।

मनु को जानने के लिए -
 http://www.scribd.com/fullscreen/54496732?access_key=key-1qbdavqxri27m06vvu9a&allow_share=true&view_mode=scroll


अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा$,मुहम्मद# आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता?
-मैथिलिशरण गुप्त

$- 2013 वर्ष पूर्व
#-1400 वर्ष पूर्व


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 




शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

गोमूत्र से रोशन होंगी गरीबों कि झोपड़ियां | Electricity Generation by Cow Urine


गोमूत्र से बैटरी वाली लालटेन चलेगी. इस बैटरी को बिजली से चार्ज नहीं करना पड़ेगा.
एसिड की जगह गोमूत्र का इस्तेमाल होगा. बैटरी लो होने पर चार्ज करने के बजाए गोमूत्र बदलने से लालटेन में लगी 12 वोल्ट की बैटरी पुन: फुल चार्ज हो जाएगी और लाइट जलने लगेगी.
यह अनोखा व बेहद उपयोगी प्रयोग किया है कामधेनू पंचगव्य एवं अनुसंधान संस्थान अंजोरा के डायरेक्टर डॉ. पी.एल. चौधरी ने. बैटरी में 500 ग्राम गोमूत्र का उपयोग कर 400 घंटे तक 3 वॉट के एलईडी (लेड) बल्ब से रौशनी प्राप्त की जा सकती है.
श्री चौधरी के इस मॉडल का मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के समक्ष प्रदर्शन किया जा चुका है. उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए इसे प्रदेश पंचगव्य संस्थान के लिए बड़ी उपलब्धि बताया.
गोमूत्र से लालटेन के इस प्रयोग को नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ रायपुर ने भी प्रमाणित किया है. डॉ. चौधरी ने बताया कि इस लालटेन में बैटरी के भीतर डाले जाने वाली एसिड की जगह गोमूत्र डाला गया. इसमें किसी भी प्रकार का कोई केमिकल नहीं मिलाया गया है, न ही बैटरी में कोई बदलाव किया गया है.
खास बात यह है कि बैटरी सिर्फ देशी गाय के गोमूत्र से ही चलेगी. इसे मोटर साइकिल की पुराने बैटरी का उपयोग कर विकसित किया गया है. उन्होंने बताया कि लालटेन में जब बल्ब की रोशनी कम होने लगती है तो गोमूत्र को बदलना होता है.
यह चमत्कारी प्रयोग है जो आदिवासी या अन्य इलाकों जहां बिजली की परेशानी होती है उन क्षेत्रों में काफी उपयोगी साबित होगा. उन्होंने इस प्रयोग को पेटेन्ट कर अनुसंधान को आगे भी जारी रखने की बात कही. एनआईटी रायपुर ने इस प्रयोग को पर्यावरण मित्र और गैर पंरापरागत साफ सुथरी ऊर्जा का स्रोत बताते हुए इसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी बताया है.
किसानों को मिलेगी प्रेरणा एसिड की जगह गोमूत्र से चलने वाली बैटरी के बारे में डॉ. पी.एल. चौधरी ने बताया कि बैटरी से लाइट बंद होने पर यह इमरजेंसी लाइट की तरह कार्य करेगा. इससे मोबाइल को भी चार्ज किया जा सकता है. गोमूत्र बैटरी को ऊर्जा मिलने से बिजली की खपत कम होगी. किसानों को पशुपालन के लिए प्रेरणा मिलेगी. डॉ. चौधरी ने बताया कि यह कमाल केवल देशी नस्ल की गाय के मूत्र में ही संभव है

http://navabharat.org/chhattisgarh-cg/147-durg-bhilai-news/43529--गोमूत्र-से-जलेगी-लालटेन

                                

दाह-संस्कार दफ़न करने से उत्तम है | Cremation is better than Burial - Vedas

इस लेख के लिखे जाने का उद्देश्य केवल दाह-संस्कार की उत्तम रीती से अवगत कराना तथा यह दफ़न करने की प्रक्रिया से किस प्रकार उत्तम है ये बताना है ।

…सो आप हमारी समाधी में से चुनके एक में अपने मृतक को गाडिये।  जिसमे आप अपने मृतक को गाड़े ।
- तौरेत उत्पत्ति पर्व २३ । आ० ६
 "In the choice of our sepulchers bury thy dead….. but that thou mayest bury the dead." (23:6.)

समीक्षक - मुर्दों को गाड़ने से संसार कि बड़ी हानि होती है , क्योंकि वह सड़के वायु को दुर्गन्धमय कर रोग फेला देता है ।
 The burial of the dead is highly injurious to the (health of the inhabitants of the ) world,
because decomposition of dead bodies sets in the pollutes the air which in its turn gives rise to
disease.

प्रश्न - देखो ! जिससे प्रीति हो उसको जलाना अच्छी बात नही । और गाड़ना जैसा कि उसको सुला देना है । इसलिए गाड़ना अच्छा है ।
Q. - It is not good to cremate those whom we love, while the burial of the dead is like
laying them down to sleep; hence this mode of the disposal of the dead is good.

उत्तर - जो मृतक से प्रीति करते हो तो अपने घर में क्यों नही रखते ? और गाड़ते भी क्यों हो ? जिस जीवात्मा से प्रीति थी वह निकल गया , अब दुर्गन्धमय मिटटी से क्या प्रीति ?
और जो प्रीति करते हो तो उसे पृथिवी में क्यों गाड़ते हो , क्योकि किसी से कोई कहे कि तुझको भूमि में गाड़ देवें तो वह सुनकर कभी प्रसन्न नही होता ।
उसके मुख, आँख , और शरीर पर धूल , पत्थर , ईंट, चुना डालना , छाती पर पत्थर रखना कौनसा प्रीति का काम है ?

और संदूक में डालके गाड़ने से बहुत दुर्गन्ध होकर पृथिवी से निकल वायु को बिगाड़ कर दारुण रोगोत्पत्ति करता है ।

दूसरा एक मुर्दे के लिए कम से कम ६ हाथ लम्बी और ४ हाथ चौड़ी भूमि चाहिए ।  इसी हिसाब से सौ , हजार व लाख और करोड़ों मनुष्यों के लिए कितनी भूमि व्यर्थ रुक जाती है । 
न वह खेत , न बगीचा और न वसने [निवास करने] के काम कि रहती है , इसलिए गाड़ना सबसे बुरा है। 
इराक में स्थित एक कब्रस्थान | Cemetery located in the city of Najaf, Iraq.
http://www.amusingplanet.com/2013/05/wadi-al-salaam-largest-cemetery-in-world.html

उससे कुछ थोडा बुरा जल में डालना, क्योंकि उसको जलजन्तु उसी समय चिर फाड़ खा लेते है परन्तु जो कुछ हाड व् मल जल में रहेगा वह सड़ कर जगत को दुःख दायक होगा ।

उससे कुछ एक थोडा बुरा जंगल में छोड़ना है । क्योकि उसको मांसाहारी पशुपक्षी लूंच खायेंगे तथापि जो उसके हाड, हाड़ की मज्जा और मल सड़कर जितना दुर्गन्ध करेगा , उतना जगत का अनुपकार होगा ।

और जो जलना है वह सर्वात्तम है , क्योंकि उसके सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जायेंगे ।

Ans.  If you love your dead, why don't you keep them in the house? Why do you even bury them?
The soul you love leaves the body after death, what is the good of loving the dead decomposing
body? But since you love it, why do you bury it under the ground? It pleases no one to be
addressed "Let us bury your  under the ground." Besides, how can it be and act of love on your part to throw earth, bricks,
stones, lime, etc. on his eyes, mouth chest and other parts of the body? If the dead body be place
in a coffin before it is buried, foul smell issues forth from the ground. Ti then pollutes the air which
int run gives rise to terrible diseases. Again, a piece measuring at least 3 yards long, and 2 yards
broad is required for burying one dead body. At this rate one can imagine how much ground is
required for the burial of hundreds of thousands of dead bodies and rendered useless. That
ground can neither be tilled, nor used for gardening, nor can it be fit for human habitation. Hence
burial is the worst of all methods in vogue for the disposal of the dead.

A little better than this is to throw the dead body into (flowing) water, because crocodiles and
other creatures living in water soon tear it into pieces and at it up, but still the bones and other
matter that will remain behind will decompose and pollute the water and air and thereby injure the
(health of the inhabitants of the0 world. A little less injurious method (of disposing of the dead) is
to leave the body in a jungle. Carnivorous animals and birds will devour it but sill the extent to
which the marrow of bones and other refuse behind, will pollute the air, the same will be the
measure of its being injurious to public health. The cremation is the best of all (methods for the
disposal of the dead) because the fire breaks up the dead body into its component elements
which are carried away by air.


प्रश्न- क्या मुर्दे के धुंएँ से दुर्गन्ध नही होता ?
Q. - Even cremation gives rise to foul smell.

उत्तर - हाँ ! जो अविधि से जलावे तो थोडासा होता है , परन्तु गाड़ने आदि से बहुत कम होता है ।
और जो विधिपूर्वक जैसा कि वेद में लिखा है - वेदी मुर्दे के तीन हाथ गहिरी , साढ़े तीन हाथ चौड़ी , पांच हाथ लम्बी , तले में डेड़ बीता अर्थात चढ़ा उतार खोदकर शारीर के बराबर घी , उसमे एक सेर में रत्तीभर कस्तूरी , मासाभर केशर डाल न्यून से न्यून आध मन चन्दन, अधिक चाहें जितना लें , अगर , तगर , कपूर आदि और पलाश आदि कि लकड़ियों को वेदी में जमा , उस पर मुर्दा रखके पुनः चारों ओर ऊपर वेदी के मुख से एक बीता
तक भरके उस घी कि आहुति देकर जलना लिखा है ,
उस प्रकार दाह करें तो कुछ भी दुर्गन्ध न हो , किन्तु इसी का नाम अंत्येष्टि , नरमेघ , पुरुषमेघ यज्ञ है ।

और जो दरिद्र हो तो बीस सेर से कम घी चिता में न डालें , चाहें वह भीख मांगने वा जातिवाले से देने अथवा राज से मिलने से प्राप्त हो , परन्तु उसी प्रकार दाह करें।  और जो घृतादि किसी प्रकार न मिल सके तथापि गाड़ने आदि से केवल लकड़ी से भी मृतक का जलना उत्तम है , क्योकि एक विश्वाभर भूमि में अथवा एक वेदी में लाखों करोड़ो मृतक जल सकते है ।  भूमि भी गाड़ने के समान अधिक नही बिगड़ती और कब्र आदि के देखने से भय भी होता है , इससे गाड़ना आदि सर्वथा निषिद्ध है ।

Ans. Yes a little, if cremation be not conducted properly, but nothing compared with what takes
place in other methods, such as the burial. But if cremation be conducted in accordance with
what has been prescribed in the Vedas, not pollution of the air results. The Vedic method of
cremation is, in brief, as follows:-
Let a Vedi, 7' 6'' feet long, 5' 3" broad and 4' 6" deep, be dug in the ground. The walls should
slope in such a manner that breadth of the Vedi at the bottom is one-half of that at the top, and let
sufficient quantity of wood of such trees, as Butea Fondoea as well as sandal wood (at least
40lbs.) be piled in the Vedi and the dead body placed on it. Let the same kind of wood be put on
its top till it is one foot short of the mouth of Vedi. Let sufficient amount of camphor, agar, tagar be
also scattered here and there in the pile of wood. Not, let fire be st to the pile and oblations of
clarified butter, whole amount of which should weigh as much as the weight of the dead body, and to which musk, at the rate of I grain, and saffron, at the rate of 8
grains, per pound of ghee, has been added, be poured over it. This mode of cremation causes no
foul smell. Even this is called Antyeshthi, Narmedha, Purushmedha Yajna. however poor the
deceased be, in no case should less than 40 lbs. of ghee be used in cremating the body, whether
that quantity of ghee be obtained by begging or as a gift from his caste-people or from the
Government, if need be, but the body should always be cremated only in the above-described
manner.
But if the Ghee and other materials (mentioned above) could not be procured in any way, mere
cremation with wood alone is far better than burial. Millions of dead bodies can be cremated on a
piece of ground having an area of 201/4 sq. yards or even in one Vedi, nor is the soil polluted as
in burial. The sight of graves is also the cause of fear to the timid. Hence, burial and other
methods of disposal of the dead are altogether reprehensible.

- सत्यार्थ प्रकाश , अ० १३ । The light of truth, Ch. 13

आजकल बढ़ती जनसंख्यां तथा वातावरण आदि कि शुद्धि को ध्यान में रखते हुए दुनिया के कई भागों में अंत्येष्टि प्रक्रियां अपनाई जाने लगी है कुछ आंकड़ें देखते है -

The first prominent advocate of cremation in Britain was Sir Henry Thompson, Surgeon to Queen Victoria. He had seen a model cremation apparatus at the Vienna Exposition of 1873 and believed it offered a way to help reduce “the propagation of disease among a population daily growing larger in relation to the area it occupied”. In 1874 he founded the Cremation Society of England, which argued for cremation to be formally accepted in law. The Society also built Britain’s first crematorium in Woking in Surrey in 1878.
In 1902 a new Act of Parliament gave the Home Secretary the power to regulate cremation. In that year, less than 0.1% of all deaths led to a cremation. By 2010, cremations comprised 73% of all deaths.


http://www.significancemagazine.org/details/webexclusive/2098223/The-start-of-a-new-way-to-end-Cremation.html

China cremates more people each year than any other country, reporting 4,534,000 cremations out of 9,348,453 deaths (a 48.50% rate) in 2008

Japan has one of the highest cremation rates in the world with the country reporting a cremation rate of 99.85% in 2008

The cremation rate in the United Kingdom has been increasing steadily with the national average rate rising from 34.70% in 1960 to 72.44% in 2008

The cremation rate in Canada has been increasing steadily with the national average rate rising from 5.89% in 1970 to 68.4% in 2009

The cremation rate in the United States has been increasing steadily with the national average rate rising from 3.56% in 1960 to 40.62% in 2010 and projections from the Cremation Association of North America forecasting a rate of 44.42% in 2015 and 55.65% in 2025

The cremation rate in Australia is quite high, being similar to other English speaking countries like Canada. Records show that slightly over 65% of all deaths were cremated in 2008

New Zealand's rate is slightly higher than Australia's, with 70% of all deaths being cremations in 2008

http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_cremation_rate

बढ़ती जनसँख्या के कारण दफ़न  करने हेतु भूमि का अप्राप्य होना भी लोगो के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है तथा दफ़न करना भी अत्यधिक महंगा सिद्ध हो रहा है |

http://lightbox.time.com/2013/06/13/cremation-the-new-american-way-of-death/#1


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

मोदी के रंग में डूबा बॉलीवुड । Bollywood Stars Fans of Narendra Modi

आईये आज आपको दिखाते है मोदीजी का दबंग------------

मोदी राजनेता से अब एक सेलिब्रिटी भी बन चुके हैं, इसमें कोई शक नहीं। हमेशा खबरों में छाए रहने वाले मोदी के आम लोग ही नहीं, फिल्मी सितारे भी दीवाने बनते जा रहे हैं।

इतना ही नहीं, दबी-दबी आवाज में गुजरात के विकास की बात सभी मानते हैं, फिर चाहे उनके प्रतिद्वंदी ही क्यों न। यह बात अलग है कि वे खुलेआम कह नहीं सकते। और जिन्होंने ऐसी गलती की भी, तो उन्हें तत्काल इसकी कीमत चुकानी भी पड़ी है।
--> लक्ष्मी ने हिंदी फिल्म डिपार्टमेंट से लेकर हॉलीवुड और तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है। इसके अलावा वे कई सीरियल्स और टॉक शो में भी नजर आ चुकी हैं। लक्ष्मी परसाणा मंचू फिल्म एक्ट्रेस, सिंगर, मॉडल, प्रोड्युसर और टेलीविजन होस्ट हैं। वे एक्टर मोहन बाबू और विद्या देवी की बेटी हैं। इतना ही नहीं, वे अमेरिकन टेलीविजन सीरीज ‘लास वेगास’ और ‘डिस्परेट हाउसीज’ में भी काम कर चुकी हैं। मंचु, मोदी की बहुत बड़ी फैन हैं।


--> दिसंबर 2012 में वडोदरा पहुंची ऐश्वर्या राय गुजरात की चमक-दमक देखकर मोदी की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सकीं थीं।  दरअसल वे यहां एक ज्वैलरी शो-रूम के उद्घाटन अवसर पर आई थीं। इस मौके पर उन्होंने गुजरात में हो रहे विकास कार्यो के लिए मोदी की तारीफ की थी।



--> साउथ ही हॉट एक्ट्रेस अवनि मोदी ने गत माह एक इंटरव्यू में कहा था ‘गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण मैं एक ब्रांड बन चुकी हैं। दरअसल मेरा सरनेम भी मोदी है और आजकल देश भर में नरेंद्र मोदी के नाम की ही गूंज है। अब तो साउथ की पूरी फिल्म इंडस्ट्रीज उन्हें मिस मोदी के नाम से बुलाती है।
इंटरव्यू के दौरान अवनि ने एक और रोचक बात कही कि जब एक विदेशी पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या आप नरेंद्र मोदी की रिश्तेदार हैं तो इसके जवाब में अवनि ने कहा, ‘हां, मैं नरेंद्र मोदी की बेटी हूं।’ इसके बाद उन्होंने कहा, सिर्फ मैं ही नहीं, गुजरात की हरेक बेटी के लिए मोदी उसके पिता के समान ही हैं।


--> बीते रविवार को पतंजलि हॉस्पिटल के उद्घाटन अवसर पर गुजरात के गोंडल पहुंची विख्यात फिल्म एक्ट्रेस सुधा चंद्रा ने भी नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने तो यहां तक कहा कि देश के प्रधानमंत्री के रूप में मैं मोदी को ही देखना पसंद करूंगी।


--> बीते जून माह में दक्षिण भारत की प्रसिद्ध तमिल अभिनेत्री पार्वती निर्बन गांधीनगर स्थित इन्फोसिटी में शुरू हो रहे गंगा स्पा सेंटर के उद्घाटन अवसर पर पहुंची थीं। इस मौके पर पार्वती से हमारे रिपोर्टर से बातचीत में पार्वती ने गुजरात के विकास, गुजराती खाने और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में चर्चा की थी।
मोदी की तारीफ करते हुए पार्वती ने तो यहां तक दावा किया कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनकर ही रहेंगे।


-> अरबाज खान ने पिछले साल मोदी से मुलाकात की थी। उन्होंने अपनी आगामी फिल्म की शूटिंग गुजरात में करने की इच्छा जताई थी।


--> नवंबर माह में अक्षय कुमार ने गुजरात सरकार द्वारा आयोजित खेलकुंभ महोत्सव की ओपनिंग सेरेमनी में हिस्स लिया था। उन्होंने गुजरात स्पोर्ट्स का ब्रांड एम्बेसेडर बनने की भी इच्छा जताई थी। इसके साथ ही अक्षय यहां मार्शल आर्ट का एक स्कूल भी खोलना चाहते हैं। मोदी ने भी उन्हें इसकी सहमति दे दी थी।


--> प्रीति दक्षिण गुजरात के उमर गांव के पास स्थित 500 एकड़ जमीन पर एक फिल्म स्टुडियो बनाना चाहती हैं। प्रीति इस प्रोजेक्ट को लेकर इतनी गंभीर है कि उन्होंने उमर गांव और आसपास के क्षेत्र का मुयाअना भी कर लिया है। दरअसल गुजरात का उमर गांव मुंबई की सीमा से करीब है, इसीलिए प्रीति को यह जगह पसंद है। वे हमेशा से ही मोदी की प्रशंसक रही हैं। बिजनेस के क्षेत्र में वे मोदी को सर्वश्रेष्ठ राजनेता मानती हैं।


--> गत वर्ष संजय दत्त ने गुजरात के गांधीनगर में मोदी से मुलाकात की थी। संजय गांधीनगर में फिल्म सिटी बनाना चाहते हैं। इस प्रोजेक्ट के सिलसिले में उनके अमेरिकन दोस्त परेश धेला भी आए थे। संजय और परेश ने भी गुजरात के विकास कायरे की जमकर सराहना की थी।


--> सुनील शेट्ठी अक्सर गुजरात की यात्राएं करते रहते हैं। इसके साथ ही वे मोदी के बहुत बड़े प्रशंसकों में से एक हैं। उनकी कंपनी ने रिवर फ्रंट में वॉटर राइड्स और रेस्टोरेंट खोलने के लिए टेंडर दिया है। सुनील गुजरात के विकास पर अक्सर खुलकर बोलते हैं और उन्होंने एक बार मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि इस प्रदेश के विकास का कारण मोदी जैसे सशक्त लीडर का होना है।



--> विवेक ओबेराय भी गुजरात के विकास के दीवाने हैं। वे अक्सर गुजरात की यात्रा करते रहते हैं। इसके अलावा वे गुजरात सरकार के एंटी-टोबेको कैंपेन में हिस्सा भी ले चुके हैं।


--> बॉलीवुड के महानायक गुजरात के ब्रांड एम्बेसेडर हैं और यहां के टूरिज्म के प्रचार-प्रसार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। अमिताभ बच्चन के प्रयासों से गुजरात टूरिज्म जबर्दस्त तरीके से देश-विदेश के पटल पर छा रहा है। वित्तीय वर्ष 2011-12 में गुजरात के टूरिज्म विभाग की तिजोरियां छलक गई थी।


--> फिल्मी सितारो में परेश रावल को मोदी का सबसे नजदीकी माना जाता है। वे गुजराती हैं और उन्होंने हमेशा ही मोदी की प्रशंसा की है। गत विधानसभा चुनाव में वे मोदी का चुनाव प्रचार पूरे जोर-शोर से करते नजर आए थे।


--> प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री किरण खेर भी स्मृति ईरानी से पीछे नहीं। किरण खेर को भी अक्सर मोदी का पक्ष लेते हुए देखा गया है। जब भी मोदी के विरोधियों को जवाब देने की बात आती है तो किरण पीछे नहीं हटतीं।


--> प्रसिद्ध गुजराती एक्ट्रेस अपारा महेता के साथ मोदी।



--> जॉन अब्राहम और मोदी


--> बॉलीवुद के सदाबहार एक्टर स्व. देवानंद के साथ मोदी



--> अनुमप खैर के साथ मोदी

 कहीं ऐसा न हो कोई कमजोर ह्रदय वाला कांग्रेसी ये देख कर बीमार पड़ जाये और मोदी जी से इस्तीफा मांग ले !

इससे पहले कोई भोंकू हमें फेंकू कहे लिंक दे देता हूँ

http://www.bhaskar.com/article-hf/GUJ-bollwood-stars-fans-of-narendra-modi-4374050-PHO.html?seq=1

जय मोदी राज

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

प्राचीन भारतीय अस्त्र विद्या | Ancient Indian Missiles & Weapons : Mahabharata Era 3000 BC


दोस्तों प्राचीन भारतीयों के पास अस्त्र सस्त्र विद्या भी थी ये हमने सीरियल आदि के माध्यम से देखा है  |
वे सभी सत्य है पदार्थ विद्या (Materials science/Materials Engineering) के जानकारों ने वे सभी हथियार बना लिए थे |
वे अस्त्र मंत्र द्वारा सिद्ध किये जाते थे यहाँ मंत्र का अभिप्राय किसी मंत्र का उच्चारण करना नही है जैसा की हम सभी मानते है वरन मंत्र अर्थात विचार ।
शब्दमय मंत्र या उच्चारण द्वारा कोई पदार्थ उत्पन्न नही किया जा सकता । यदि मंत्र द्वारा तीर पर अग्नि उत्पन्न हो तो वो सर्वप्रथम  मंत्र उच्चारण करने वाले की जिह्वा को ही भस्म कर डाले  इसलिए ऐसा मानना मिथ्या है ।
मंत्र नाम होता है विचार का जैसे राजदरबार में मंत्रणा (विचार-विमर्श) करने वाले को मंत्री कहा जाता है वैसे ही प्रकृति में पाए जाने वाले पदार्थों का पहले विचार फिर क्रिया द्वारा वे अस्त्र आदि सिद्ध किये जाते थे ।

आग्नेयास्त्र (Fire Missile) - इस प्रकार के अस्त्र में किसी लोहे का बाण (Arrow/Missile)  या गोला (Grenade)  बनाकर उसमे ऐसे उच्च जवलनशील पदार्थ रखे जाते थे जो अग्नि के लगाने से  वायु में धुआ फेलने और सूर्य की किरण या वायु के संपर्क में आने से जल उठते थे । और इन्हें किसी कमान या अन्य किसी मशीन की सहायता  से शत्रु सेना पर दाग दिया जाता था |

वारुणास्त्र (Water Missile) -  वारुणास्त्र आग्नेयास्त्र का तोड़ होता था ।  इस मिसाइल में ऐसे पदार्थों का योग होता था जिसका धुआ वायु के संपर्क में आते ही तुरंत जल की बूंदों  में परिवर्तित हो  वर्षा कर देता था और अग्नि को बुझा देता था |

नागपाश - इस प्रकार का हथियार शत्रु के अंगो को जकड के बांध लेता था |

मोहनास्त्र - इस मिसाइल में ऐसे नशीले पदार्थों का योग होता था जिसका धुंए के लगने से शत्रु की सेना निद्रास्थ अथवा मुर्छित हो जाती थी ।
इसका उपयुक्त उदहारण अश्रु गेस के गोले के रूप में समझा जा सकता है जो सरकार अक्सर शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट कर रहे लोगो पर करती है |

पाशुपतास्त्र (Electric Missile/Weapon) - इस प्रकार के अस्त्र में तार से या शीशे से अथवा किसी और पदार्थ से विधुत उत्पन्न  कर शत्रुओं पर छोड़ा जाता था |

इसी प्रकार तोप (Cannon) बन्दुक (Gun) आदि भी हुआ करते थे । ये नाम अन्यदेश भाषा के है आर्यावर्त या संस्कृत के नही । संस्कृत में तोप को शतघ्नी तथा बन्दुक को भुशुण्डी कहते है |

यह निश्चित है की जितनी भी विद्या तथा मत आदि भूगोल में फैले है वे सब आर्यावर्त से ही प्रचरित हुए है ।
देखो ! एक गोल्डस्टकर साहब फ़्रांस देश के निवासी अपनी पुस्तक 'बाइबिल इन इंडिया' में लिखते है की सब विद्या तथा  भलाईयों  का भंडार आर्यावर्त देश है और सब विद्या इसी देश से भूगोल में फैली है । और हम परमेश्वर से प्रार्थना करते है की जैसी उन्नति आर्यावर्त देश में थी वैसी हमारे देश की कीजिये ।
तथा 'दाराशिकोह' बादशाह ने भी यही कहा की जैसी पूरी विद्या संस्कृत में है वैसी किसी अन्य भाषा में नही । वे ऐसा उपनिषदों के भाषांतर में लिखते है की मैंने अरबी आदि  बहुत सी भाषा पढ़ी परन्तु मन का संदेह छुट कर आनंद न हुआ । जब संस्कृत देखा  और  सुना तब निसंदेह हो कर मुझ को बड़ा आनंद हुआ ।

और अधिक जानने के लिए
http://www.vedicbharat.com/2013/05/scholars-view-about-bharat.html

परन्तु ऐसे शिरोमणि देश को महाभारत के युद्ध ने ऐसा धक्का दिया की अब तक भी यह अपनी पूर्व स्थति में नही आया है क्योंकि जब भाई भाई को मरने लगे तो नाश होने में क्या संदेह है ?

जब बड़े बड़े विद्वान , राजा, महाराजा , ऋषि तथा महर्षि आदि महाभारत के भीषण युद्ध में मारे गये और बहुत से मर गये तब विद्या और वेदोक्त धर्म का प्रचार नष्ट हो चला । ईर्ष्या , द्वेष तथा अभिमान आपस में करने लगे जो बलवान हुआ वो देश को दाब कर राजा बन बैठा । वैसे ही सर्वत्र आर्यावर्त देश में खंड बंड सा राज्य हो गया । इसी क्रम  में वेद विद्या नष्ट हुई ढोंग पाखंड बढता चला गया और आर्यावर्त के पतन के दिन आरंभ हो गये ।

- महर्षि दयानंद सरस्वती , सत्यार्थ प्रकाश 


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्