अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त

शनिवार, 16 नवंबर 2013

मनुस्मृति :12220 वर्ष से अधिक प्राचीन है | ManuSmriti : Atleast 12220 Years Old Law Book


इस लेख का मंतव्य यह जानना है कि वेदों के पश्चात सर्वमान्य महर्षि मनु द्वारा रचित ग्रन्थ मनुस्मृति की आयु क्या है अर्थात यह लगभग कितना पुराना है ?

यह सिद्धांत अत्यंत सहज तर्क पर कार्य करेगा जैसे की कोई व्यक्ति पिता बनने से पूर्व अपने पुत्र वा पुत्री के बारे में नही जान सकता किन्तु पुत्र अपने पिता के बारे में सदैव जनता है ।

अतः इस लेख में हम पर्याप्त तर्कों व् प्रमाणों से सिद्ध करेंगे की मनु महाराज की पुस्तक मनुस्मृति महाभारत काल तथा रामायण काल से भी अधिक प्राचीन है अर्थात कम से कम 12220 वर्ष पूर्व तक विधमान थी । यहाँ हमने कम से कम 12220 वर्ष  पूर्व लिखा है अतः ये उससे भी अधिक प्राचीन है किन्तु निश्चित समय बता पाना अभी के लिए सम्भव नही ।

महाभारत काल - 

सभी को विदित है की महाभारत का समय लगभग 3000  ईसा पूर्व का था अर्थात आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व । यदि प्रमाण चाहे तो यहाँ जाएँ वैज्ञानिक पद्धति दवरा विश्लेषण किया गया है -
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/xx

महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक - 

महर्षि वेदव्यास (कृष्णद्वेपायन ) रचित महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में महाभारत वा व्यास जी का नाम तक नही ।

महाभारत में मनु महाराज की प्रतिष्ठा - 
मनुनाSभिहितम् शास्त्रं यच्चापि कुरुनन्दन ! महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७  - श ० ३ ५ 
तैरेवमुक्तोंभगवान् मनु: स्वयम्भूवोSब्रवीत् । महाभारत शांतिपर्व , अ० ३ ६   - श ० ५ 
एष दयविधि : पार्थ ! पूर्वमुक्त : स्वयम्भूवा । महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७  - श ० ५ ८ 
सर्वकर्मस्वहिंसा हि धर्मात्मा मनुरब्रवीत् ।  महाभारत शांतिपर्व , मोक्षधर्म आदि । 

अतः सिद्ध होता है कि मनु महाभारत के समय उपस्थित थी तभी महाभारत रचयिता ने स्वयं राजसी मनु के कथनो को प्रमाण स्वरुप लिखा है ।

अब प्रतिवादी तर्क कर सकता है कि मनु महाभारत में थी ये तो स्पष्ट हो गया परन्तु श्लोकबद्ध मनु उस समय उपलब्ध थी वा नही ? ये स्पष्ट नही हुआ ।

अतः अब ये देखें -

अद्भ्योSग्निब्रार्हत: क्षत्रमश्मनो लोहमुथितं । 
तेषाम सर्वत्रगं तेजः स्वासु योनिशु शाम्यति ।। - मनु अ०  ९ - ३ २ १ 

ठीक यही मनु का श्लोक महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६    - श २ ४ 
में आया है और महाभारत के इस श्लोक से ठीक पूर्व २ ३ वें श्लोक में आया है -
"मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना"
अर्थात हे राजेंद्र ! मनु नाम महात्मा ने इन श्लोकों को कहा है !

इसी प्रकार मनु के जो जो श्लोक ज्यों के त्यों महाभारत में है ;
मैं यहाँ अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ

मनु ० १ १ /७ - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ५
मनु ० १ १ /१२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ९
मनु ० १ १ /१८ ०   - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ३ ७
मनु ० ६  /४५    - महा० शांति अ ० २४५  - श ० १५
मनु ० २  /१२०     - महा०अनु ० अ ०१०४ - श ० ६४

अब वो श्लोक लिखते है जो मनु के है परन्तु कुछ परिवर्तन के साथ आयें है -

यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
यश्च विप्रोSनधियान  स्त्रयते नाम बिभ्रति । ।  - मनु २ /१५७ 

यथा दारुमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
ब्राह्मणश्चानधियानस्त्रयते नाम बिभ्रति । ।  -महा  शांति ३६/४७ 

अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ जो  कुछ परिवर्तन के साथ आयें है -

मनु ० १ १ /४ - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ४
मनु ० १ १ /१२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ७
मनु ० १ १ /३७  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० २ २
मनु ० ८  /३७२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ६३
मनु ० २  /२३१  - महा० शांति अ ० १०८ - श ० ७
मनु ० ९  /३  - महा० अनु अ ० ४६ - श ० १४
मनु ० ३ /५५   - महा० अनु अ ० ४६ - श ० ३

लगभग मनु के  ५ ० ऐसे श्लोक है जो ज्यों के त्यों वा कुछ परिवर्तन के साथ महाभारत में आये  है ।

इतने प्रमाणो के रहते कोण कह सकता है कि मनु महाभारत समय में श्लोकबद्ध अवस्था में न थी ?

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 5000 वर्ष तो पुरानी है ही !!

रामायण काल - 
रामायण काल का समय लगभग 7300  ईसा पूर्व का माना जाता है अर्थात आज से लगभग 9300 वर्ष पूर्व । यदि प्रमाण चाहे तो यहाँ जाएँ वैज्ञानिक पद्धति दवरा विश्लेषण किया गया है -
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/ram
http://www.bookganga.com/eBooks/Books/Details/5484187422894534051


वाल्मीकि रामायण में मनुस्मृति के श्लोक - 

महर्षि वाल्मीकि  रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही ।

वाल्मीकि रामायण में मनु महाराज की प्रतिष्ठा - 

किष्किन्धा काण्ड में जब श्री राम अत्याचारी बाली को घायल कर उसके आक्षेपों के उत्तर में अन्यान्य कथनो के साथ साथ यह भी कहते है कि तूने अपने छोटे भाई सुग्रीव कि स्त्री को बलात हरण कर और उसे अपनी स्त्री बना अनुजभार्याभिमर्श का दोषी बन चूका है , जिसके लिए (धर्मशास्त्र ) में दंड कि आज्ञा है ।
इस पृथिवी के महाराज भरत है (अतः तू भी उनकी प्रजा है ) ; मैं उनकी आज्ञापालन करता हुआ विचरता हूँ फिर में तुझे यथोचित दंड कैसे ना देता ? जैसे -

श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्र वत्सलौ ||
गृहीतौ धर्म कुशलैः तथा तत् चरितम् मयाअ || वाल्मीकि ४-१८-३०

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

उपरोक्त श्लोक ३० में मनु का नाम आया है और श्लोक ३१ , ३२ भी मनु महाराज के ही है !
उपरोक्त श्लोक किंचित पाठभेद (परन्तु जिससे अर्थ में कुछ भी भेद नही आया ) मनु अध्याय ८ के है ! जिनकी संख्या कुल्लूकभट्ट कि टिकावली में ३१८ व् ३१९ है -

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

राजभिः धूर्त दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || मनु  ८ / ३१८

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

शसनाद्वा  अपि मोक्षाद्वा स्तेनः स्तेयाद विमुच्यते |
अशासित्वा तू तं राजा स्तेनस्याप्नोति किल्बिषम् ॥ मनु ८/३१६

अतः यह सिद्ध हुआ कि श्लोकबद्ध मनु रामायण के पूर्व भी विधमान थी । यदि कोई कहे ये क्यों न माना
जाये कि उपरोक्त दोनो श्लोक वाल्मीकि से मनु में आयें हो ?
इसका उत्तर यह है कि महर्षि वाल्मीकि  रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही और रामायण में स्पष्टतः मनु के श्लोकों (मनुना गीतौ श्लोकौ) कि प्रशंसा विधमान है ठीक उसी प्रकार जैसे महाभारत में थी "मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना" - महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६ - श २ ३ 

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 9000 वर्ष तो पुरानी है ही !! 

किन्तु - 
चीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण -
विदेशी प्रमाणो मनुस्मृति के काल तथा श्लोको कि संख्या की जानकारी कराने वाला एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण चीनी मिला है । सन १९३२ में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन कि ऎतिहासिक दीवार को तोडा तो उसमे से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमे चीनी भाषा कि प्राचीन पांडुलिपियां भरी थी । वे हस्तलेख Sir Augustus Fritz George के हाथ लग गये वो उन्हें लंदन ले गया और ब्रिटिश म्युजियम में रख दिया ।
उन हस्तलेखों को Prof. Anthony Graeme ने चीनी विद्वानो से पढ़वाया तो जानकारी मिली -
चीन के राजा Chin-Ize-Wang ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जावे जिससे चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जावे । तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चिनवा दिया । संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया ।
चीनी भाषा के उन हस्तलेखों मेसे एक में लिखा है -
'मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है'
तथा इसमें मनु के श्लोकों कि संख्या 630 भी बताई गई है किन्तु वर्त्तमान में मनु में 2400 के आस पास श्लोक है ।

The wording is such as to pay high tribute to the genius and influence of the Emperor, but it also proves that many hundreds of years ago this Emperor and his people were possessed of knowledge and ideals, laws, and principles which we are apt to think are quite modern. For instance, The manuscript shows that the Chinese emperor and his people had adopted the Laws of Manu which were written in the Vedic language ten thousand years ago. 
http://rosicrucian.50webs.com/hsl/hsl-light-from-china.htm


यह विवरण मोटवानी कि पुस्तक 'मनु धर्मशास्त्र : ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज' पेज २३२ पर भी दिया है ।

इसके अतिरिक्त R.P. Pathak कि Education in the Emerging India में भी पेज १४८ पर है जो लिंक हम आपको दिए देते है -
ये गूगल पुस्तक है -
http://books.google.co.in/books?id=z_OCjp-T2vIC&pg=PA148&lpg=PA148&dq=Chin-Ize-Wang&source=bl&ots=l2ZvnPXZ9z&sig=F9jLXhHQtOm9-jwGTXjkz9KBzQw&hl=en&sa=X&ei=ZcOGUrPZI46BrgepiIGQCQ&ved=0CDMQ6AEwAQ#v=onepage&q=Chin-Ize-Wang&f=false

इस दीवार के बनने का समय लगभग  220–206 BC बताया जाता है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220BC से पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा  220+10000 = 10220 ईसा पूर्व ; आज से 12,220 वर्ष पूर्व कम से कम तक मनुस्मृति उपलब्ध थी ।

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु अब से कम से कम 12220 वर्ष पूर्व से और प्राचीन हो चुकी है !

साथ साथ ही यदि वेदों कि बात करें तो

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम । 
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम् ॥ मनु १/१३ 
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारो ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये उस ब्रह्मा ने अग्नि , वायु, आदित्य और [तु अर्थात ] अंगिरा से ऋग , यजुः , साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया ।

वेदोSखिलो धर्ममूलम् ।  मनु २/६ 
वेद सम्पूर्ण धर्म (कानून Law) का मूल है ।

यः कश्चित्कस्यचिधर्मो मनुना परिकीर्तित : । 
स सर्वोSभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः ॥ मनु २/९ 
मनु ने जिस किसी को जो कुछ भी धर्म कहा है वह सब वेद के अनुकूल ही है , क्योकि वेद सर्वमान्य है ।

नास्तिको वेदनिंदकः ।  मनु २/११ 
वेद कि निंदा करने वाले नास्तिक (अनीश्वरवादी) है

इत्यादि अनेक वचन है जो वेद के सन्दर्भ में मनु में आये है बल्कि यह कहना उचित होगा मनुस्मृति वेद सार ही है । अतः वेद मनु से प्राचीन है इसमें लेशमात्र भी संदेह नही ।

मनु में जहाँ कहीं भी वेद विरुद्ध आचरण दिखे वो प्रक्षेप (मिलावट ) है अतः त्याज्य है ।

मनु को जानने के लिए -
 http://www.scribd.com/fullscreen/54496732?access_key=key-1qbdavqxri27m06vvu9a&allow_share=true&view_mode=scroll


अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा$,मुहम्मद# आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता?
-मैथिलिशरण गुप्त

$- 2013 वर्ष पूर्व
#-1400 वर्ष पूर्व


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 




शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

गोमूत्र से रोशन होंगी गरीबों कि झोपड़ियां | Electricity Generation by Cow Urine


गोमूत्र से बैटरी वाली लालटेन चलेगी. इस बैटरी को बिजली से चार्ज नहीं करना पड़ेगा.
एसिड की जगह गोमूत्र का इस्तेमाल होगा. बैटरी लो होने पर चार्ज करने के बजाए गोमूत्र बदलने से लालटेन में लगी 12 वोल्ट की बैटरी पुन: फुल चार्ज हो जाएगी और लाइट जलने लगेगी.
यह अनोखा व बेहद उपयोगी प्रयोग किया है कामधेनू पंचगव्य एवं अनुसंधान संस्थान अंजोरा के डायरेक्टर डॉ. पी.एल. चौधरी ने. बैटरी में 500 ग्राम गोमूत्र का उपयोग कर 400 घंटे तक 3 वॉट के एलईडी (लेड) बल्ब से रौशनी प्राप्त की जा सकती है.
श्री चौधरी के इस मॉडल का मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के समक्ष प्रदर्शन किया जा चुका है. उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए इसे प्रदेश पंचगव्य संस्थान के लिए बड़ी उपलब्धि बताया.
गोमूत्र से लालटेन के इस प्रयोग को नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ रायपुर ने भी प्रमाणित किया है. डॉ. चौधरी ने बताया कि इस लालटेन में बैटरी के भीतर डाले जाने वाली एसिड की जगह गोमूत्र डाला गया. इसमें किसी भी प्रकार का कोई केमिकल नहीं मिलाया गया है, न ही बैटरी में कोई बदलाव किया गया है.
खास बात यह है कि बैटरी सिर्फ देशी गाय के गोमूत्र से ही चलेगी. इसे मोटर साइकिल की पुराने बैटरी का उपयोग कर विकसित किया गया है. उन्होंने बताया कि लालटेन में जब बल्ब की रोशनी कम होने लगती है तो गोमूत्र को बदलना होता है.
यह चमत्कारी प्रयोग है जो आदिवासी या अन्य इलाकों जहां बिजली की परेशानी होती है उन क्षेत्रों में काफी उपयोगी साबित होगा. उन्होंने इस प्रयोग को पेटेन्ट कर अनुसंधान को आगे भी जारी रखने की बात कही. एनआईटी रायपुर ने इस प्रयोग को पर्यावरण मित्र और गैर पंरापरागत साफ सुथरी ऊर्जा का स्रोत बताते हुए इसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी बताया है.
किसानों को मिलेगी प्रेरणा एसिड की जगह गोमूत्र से चलने वाली बैटरी के बारे में डॉ. पी.एल. चौधरी ने बताया कि बैटरी से लाइट बंद होने पर यह इमरजेंसी लाइट की तरह कार्य करेगा. इससे मोबाइल को भी चार्ज किया जा सकता है. गोमूत्र बैटरी को ऊर्जा मिलने से बिजली की खपत कम होगी. किसानों को पशुपालन के लिए प्रेरणा मिलेगी. डॉ. चौधरी ने बताया कि यह कमाल केवल देशी नस्ल की गाय के मूत्र में ही संभव है

http://navabharat.org/chhattisgarh-cg/147-durg-bhilai-news/43529--गोमूत्र-से-जलेगी-लालटेन

                                

दाह-संस्कार दफ़न करने से उत्तम है | Cremation is better than Burial - Vedas

इस लेख के लिखे जाने का उद्देश्य केवल दाह-संस्कार की उत्तम रीती से अवगत कराना तथा यह दफ़न करने की प्रक्रिया से किस प्रकार उत्तम है ये बताना है ।

…सो आप हमारी समाधी में से चुनके एक में अपने मृतक को गाडिये।  जिसमे आप अपने मृतक को गाड़े ।
- तौरेत उत्पत्ति पर्व २३ । आ० ६
 "In the choice of our sepulchers bury thy dead….. but that thou mayest bury the dead." (23:6.)

समीक्षक - मुर्दों को गाड़ने से संसार कि बड़ी हानि होती है , क्योंकि वह सड़के वायु को दुर्गन्धमय कर रोग फेला देता है ।
 The burial of the dead is highly injurious to the (health of the inhabitants of the ) world,
because decomposition of dead bodies sets in the pollutes the air which in its turn gives rise to
disease.

प्रश्न - देखो ! जिससे प्रीति हो उसको जलाना अच्छी बात नही । और गाड़ना जैसा कि उसको सुला देना है । इसलिए गाड़ना अच्छा है ।
Q. - It is not good to cremate those whom we love, while the burial of the dead is like
laying them down to sleep; hence this mode of the disposal of the dead is good.

उत्तर - जो मृतक से प्रीति करते हो तो अपने घर में क्यों नही रखते ? और गाड़ते भी क्यों हो ? जिस जीवात्मा से प्रीति थी वह निकल गया , अब दुर्गन्धमय मिटटी से क्या प्रीति ?
और जो प्रीति करते हो तो उसे पृथिवी में क्यों गाड़ते हो , क्योकि किसी से कोई कहे कि तुझको भूमि में गाड़ देवें तो वह सुनकर कभी प्रसन्न नही होता ।
उसके मुख, आँख , और शरीर पर धूल , पत्थर , ईंट, चुना डालना , छाती पर पत्थर रखना कौनसा प्रीति का काम है ?

और संदूक में डालके गाड़ने से बहुत दुर्गन्ध होकर पृथिवी से निकल वायु को बिगाड़ कर दारुण रोगोत्पत्ति करता है ।

दूसरा एक मुर्दे के लिए कम से कम ६ हाथ लम्बी और ४ हाथ चौड़ी भूमि चाहिए ।  इसी हिसाब से सौ , हजार व लाख और करोड़ों मनुष्यों के लिए कितनी भूमि व्यर्थ रुक जाती है । 
न वह खेत , न बगीचा और न वसने [निवास करने] के काम कि रहती है , इसलिए गाड़ना सबसे बुरा है। 
इराक में स्थित एक कब्रस्थान | Cemetery located in the city of Najaf, Iraq.
http://www.amusingplanet.com/2013/05/wadi-al-salaam-largest-cemetery-in-world.html

उससे कुछ थोडा बुरा जल में डालना, क्योंकि उसको जलजन्तु उसी समय चिर फाड़ खा लेते है परन्तु जो कुछ हाड व् मल जल में रहेगा वह सड़ कर जगत को दुःख दायक होगा ।

उससे कुछ एक थोडा बुरा जंगल में छोड़ना है । क्योकि उसको मांसाहारी पशुपक्षी लूंच खायेंगे तथापि जो उसके हाड, हाड़ की मज्जा और मल सड़कर जितना दुर्गन्ध करेगा , उतना जगत का अनुपकार होगा ।

और जो जलना है वह सर्वात्तम है , क्योंकि उसके सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जायेंगे ।

Ans.  If you love your dead, why don't you keep them in the house? Why do you even bury them?
The soul you love leaves the body after death, what is the good of loving the dead decomposing
body? But since you love it, why do you bury it under the ground? It pleases no one to be
addressed "Let us bury your  under the ground." Besides, how can it be and act of love on your part to throw earth, bricks,
stones, lime, etc. on his eyes, mouth chest and other parts of the body? If the dead body be place
in a coffin before it is buried, foul smell issues forth from the ground. Ti then pollutes the air which
int run gives rise to terrible diseases. Again, a piece measuring at least 3 yards long, and 2 yards
broad is required for burying one dead body. At this rate one can imagine how much ground is
required for the burial of hundreds of thousands of dead bodies and rendered useless. That
ground can neither be tilled, nor used for gardening, nor can it be fit for human habitation. Hence
burial is the worst of all methods in vogue for the disposal of the dead.

A little better than this is to throw the dead body into (flowing) water, because crocodiles and
other creatures living in water soon tear it into pieces and at it up, but still the bones and other
matter that will remain behind will decompose and pollute the water and air and thereby injure the
(health of the inhabitants of the0 world. A little less injurious method (of disposing of the dead) is
to leave the body in a jungle. Carnivorous animals and birds will devour it but sill the extent to
which the marrow of bones and other refuse behind, will pollute the air, the same will be the
measure of its being injurious to public health. The cremation is the best of all (methods for the
disposal of the dead) because the fire breaks up the dead body into its component elements
which are carried away by air.


प्रश्न- क्या मुर्दे के धुंएँ से दुर्गन्ध नही होता ?
Q. - Even cremation gives rise to foul smell.

उत्तर - हाँ ! जो अविधि से जलावे तो थोडासा होता है , परन्तु गाड़ने आदि से बहुत कम होता है ।
और जो विधिपूर्वक जैसा कि वेद में लिखा है - वेदी मुर्दे के तीन हाथ गहिरी , साढ़े तीन हाथ चौड़ी , पांच हाथ लम्बी , तले में डेड़ बीता अर्थात चढ़ा उतार खोदकर शारीर के बराबर घी , उसमे एक सेर में रत्तीभर कस्तूरी , मासाभर केशर डाल न्यून से न्यून आध मन चन्दन, अधिक चाहें जितना लें , अगर , तगर , कपूर आदि और पलाश आदि कि लकड़ियों को वेदी में जमा , उस पर मुर्दा रखके पुनः चारों ओर ऊपर वेदी के मुख से एक बीता
तक भरके उस घी कि आहुति देकर जलना लिखा है ,
उस प्रकार दाह करें तो कुछ भी दुर्गन्ध न हो , किन्तु इसी का नाम अंत्येष्टि , नरमेघ , पुरुषमेघ यज्ञ है ।

और जो दरिद्र हो तो बीस सेर से कम घी चिता में न डालें , चाहें वह भीख मांगने वा जातिवाले से देने अथवा राज से मिलने से प्राप्त हो , परन्तु उसी प्रकार दाह करें।  और जो घृतादि किसी प्रकार न मिल सके तथापि गाड़ने आदि से केवल लकड़ी से भी मृतक का जलना उत्तम है , क्योकि एक विश्वाभर भूमि में अथवा एक वेदी में लाखों करोड़ो मृतक जल सकते है ।  भूमि भी गाड़ने के समान अधिक नही बिगड़ती और कब्र आदि के देखने से भय भी होता है , इससे गाड़ना आदि सर्वथा निषिद्ध है ।

Ans. Yes a little, if cremation be not conducted properly, but nothing compared with what takes
place in other methods, such as the burial. But if cremation be conducted in accordance with
what has been prescribed in the Vedas, not pollution of the air results. The Vedic method of
cremation is, in brief, as follows:-
Let a Vedi, 7' 6'' feet long, 5' 3" broad and 4' 6" deep, be dug in the ground. The walls should
slope in such a manner that breadth of the Vedi at the bottom is one-half of that at the top, and let
sufficient quantity of wood of such trees, as Butea Fondoea as well as sandal wood (at least
40lbs.) be piled in the Vedi and the dead body placed on it. Let the same kind of wood be put on
its top till it is one foot short of the mouth of Vedi. Let sufficient amount of camphor, agar, tagar be
also scattered here and there in the pile of wood. Not, let fire be st to the pile and oblations of
clarified butter, whole amount of which should weigh as much as the weight of the dead body, and to which musk, at the rate of I grain, and saffron, at the rate of 8
grains, per pound of ghee, has been added, be poured over it. This mode of cremation causes no
foul smell. Even this is called Antyeshthi, Narmedha, Purushmedha Yajna. however poor the
deceased be, in no case should less than 40 lbs. of ghee be used in cremating the body, whether
that quantity of ghee be obtained by begging or as a gift from his caste-people or from the
Government, if need be, but the body should always be cremated only in the above-described
manner.
But if the Ghee and other materials (mentioned above) could not be procured in any way, mere
cremation with wood alone is far better than burial. Millions of dead bodies can be cremated on a
piece of ground having an area of 201/4 sq. yards or even in one Vedi, nor is the soil polluted as
in burial. The sight of graves is also the cause of fear to the timid. Hence, burial and other
methods of disposal of the dead are altogether reprehensible.

- सत्यार्थ प्रकाश , अ० १३ । The light of truth, Ch. 13

आजकल बढ़ती जनसंख्यां तथा वातावरण आदि कि शुद्धि को ध्यान में रखते हुए दुनिया के कई भागों में अंत्येष्टि प्रक्रियां अपनाई जाने लगी है कुछ आंकड़ें देखते है -

The first prominent advocate of cremation in Britain was Sir Henry Thompson, Surgeon to Queen Victoria. He had seen a model cremation apparatus at the Vienna Exposition of 1873 and believed it offered a way to help reduce “the propagation of disease among a population daily growing larger in relation to the area it occupied”. In 1874 he founded the Cremation Society of England, which argued for cremation to be formally accepted in law. The Society also built Britain’s first crematorium in Woking in Surrey in 1878.
In 1902 a new Act of Parliament gave the Home Secretary the power to regulate cremation. In that year, less than 0.1% of all deaths led to a cremation. By 2010, cremations comprised 73% of all deaths.


http://www.significancemagazine.org/details/webexclusive/2098223/The-start-of-a-new-way-to-end-Cremation.html

China cremates more people each year than any other country, reporting 4,534,000 cremations out of 9,348,453 deaths (a 48.50% rate) in 2008

Japan has one of the highest cremation rates in the world with the country reporting a cremation rate of 99.85% in 2008

The cremation rate in the United Kingdom has been increasing steadily with the national average rate rising from 34.70% in 1960 to 72.44% in 2008

The cremation rate in Canada has been increasing steadily with the national average rate rising from 5.89% in 1970 to 68.4% in 2009

The cremation rate in the United States has been increasing steadily with the national average rate rising from 3.56% in 1960 to 40.62% in 2010 and projections from the Cremation Association of North America forecasting a rate of 44.42% in 2015 and 55.65% in 2025

The cremation rate in Australia is quite high, being similar to other English speaking countries like Canada. Records show that slightly over 65% of all deaths were cremated in 2008

New Zealand's rate is slightly higher than Australia's, with 70% of all deaths being cremations in 2008

http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_cremation_rate

बढ़ती जनसँख्या के कारण दफ़न  करने हेतु भूमि का अप्राप्य होना भी लोगो के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है तथा दफ़न करना भी अत्यधिक महंगा सिद्ध हो रहा है |

http://lightbox.time.com/2013/06/13/cremation-the-new-american-way-of-death/#1


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

मोदी के रंग में डूबा बॉलीवुड । Bollywood Stars Fans of Narendra Modi

आईये आज आपको दिखाते है मोदीजी का दबंग------------

मोदी राजनेता से अब एक सेलिब्रिटी भी बन चुके हैं, इसमें कोई शक नहीं। हमेशा खबरों में छाए रहने वाले मोदी के आम लोग ही नहीं, फिल्मी सितारे भी दीवाने बनते जा रहे हैं।

इतना ही नहीं, दबी-दबी आवाज में गुजरात के विकास की बात सभी मानते हैं, फिर चाहे उनके प्रतिद्वंदी ही क्यों न। यह बात अलग है कि वे खुलेआम कह नहीं सकते। और जिन्होंने ऐसी गलती की भी, तो उन्हें तत्काल इसकी कीमत चुकानी भी पड़ी है।
--> लक्ष्मी ने हिंदी फिल्म डिपार्टमेंट से लेकर हॉलीवुड और तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है। इसके अलावा वे कई सीरियल्स और टॉक शो में भी नजर आ चुकी हैं। लक्ष्मी परसाणा मंचू फिल्म एक्ट्रेस, सिंगर, मॉडल, प्रोड्युसर और टेलीविजन होस्ट हैं। वे एक्टर मोहन बाबू और विद्या देवी की बेटी हैं। इतना ही नहीं, वे अमेरिकन टेलीविजन सीरीज ‘लास वेगास’ और ‘डिस्परेट हाउसीज’ में भी काम कर चुकी हैं। मंचु, मोदी की बहुत बड़ी फैन हैं।


--> दिसंबर 2012 में वडोदरा पहुंची ऐश्वर्या राय गुजरात की चमक-दमक देखकर मोदी की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सकीं थीं।  दरअसल वे यहां एक ज्वैलरी शो-रूम के उद्घाटन अवसर पर आई थीं। इस मौके पर उन्होंने गुजरात में हो रहे विकास कार्यो के लिए मोदी की तारीफ की थी।



--> साउथ ही हॉट एक्ट्रेस अवनि मोदी ने गत माह एक इंटरव्यू में कहा था ‘गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण मैं एक ब्रांड बन चुकी हैं। दरअसल मेरा सरनेम भी मोदी है और आजकल देश भर में नरेंद्र मोदी के नाम की ही गूंज है। अब तो साउथ की पूरी फिल्म इंडस्ट्रीज उन्हें मिस मोदी के नाम से बुलाती है।
इंटरव्यू के दौरान अवनि ने एक और रोचक बात कही कि जब एक विदेशी पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या आप नरेंद्र मोदी की रिश्तेदार हैं तो इसके जवाब में अवनि ने कहा, ‘हां, मैं नरेंद्र मोदी की बेटी हूं।’ इसके बाद उन्होंने कहा, सिर्फ मैं ही नहीं, गुजरात की हरेक बेटी के लिए मोदी उसके पिता के समान ही हैं।


--> बीते रविवार को पतंजलि हॉस्पिटल के उद्घाटन अवसर पर गुजरात के गोंडल पहुंची विख्यात फिल्म एक्ट्रेस सुधा चंद्रा ने भी नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने तो यहां तक कहा कि देश के प्रधानमंत्री के रूप में मैं मोदी को ही देखना पसंद करूंगी।


--> बीते जून माह में दक्षिण भारत की प्रसिद्ध तमिल अभिनेत्री पार्वती निर्बन गांधीनगर स्थित इन्फोसिटी में शुरू हो रहे गंगा स्पा सेंटर के उद्घाटन अवसर पर पहुंची थीं। इस मौके पर पार्वती से हमारे रिपोर्टर से बातचीत में पार्वती ने गुजरात के विकास, गुजराती खाने और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में चर्चा की थी।
मोदी की तारीफ करते हुए पार्वती ने तो यहां तक दावा किया कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनकर ही रहेंगे।


-> अरबाज खान ने पिछले साल मोदी से मुलाकात की थी। उन्होंने अपनी आगामी फिल्म की शूटिंग गुजरात में करने की इच्छा जताई थी।


--> नवंबर माह में अक्षय कुमार ने गुजरात सरकार द्वारा आयोजित खेलकुंभ महोत्सव की ओपनिंग सेरेमनी में हिस्स लिया था। उन्होंने गुजरात स्पोर्ट्स का ब्रांड एम्बेसेडर बनने की भी इच्छा जताई थी। इसके साथ ही अक्षय यहां मार्शल आर्ट का एक स्कूल भी खोलना चाहते हैं। मोदी ने भी उन्हें इसकी सहमति दे दी थी।


--> प्रीति दक्षिण गुजरात के उमर गांव के पास स्थित 500 एकड़ जमीन पर एक फिल्म स्टुडियो बनाना चाहती हैं। प्रीति इस प्रोजेक्ट को लेकर इतनी गंभीर है कि उन्होंने उमर गांव और आसपास के क्षेत्र का मुयाअना भी कर लिया है। दरअसल गुजरात का उमर गांव मुंबई की सीमा से करीब है, इसीलिए प्रीति को यह जगह पसंद है। वे हमेशा से ही मोदी की प्रशंसक रही हैं। बिजनेस के क्षेत्र में वे मोदी को सर्वश्रेष्ठ राजनेता मानती हैं।


--> गत वर्ष संजय दत्त ने गुजरात के गांधीनगर में मोदी से मुलाकात की थी। संजय गांधीनगर में फिल्म सिटी बनाना चाहते हैं। इस प्रोजेक्ट के सिलसिले में उनके अमेरिकन दोस्त परेश धेला भी आए थे। संजय और परेश ने भी गुजरात के विकास कायरे की जमकर सराहना की थी।


--> सुनील शेट्ठी अक्सर गुजरात की यात्राएं करते रहते हैं। इसके साथ ही वे मोदी के बहुत बड़े प्रशंसकों में से एक हैं। उनकी कंपनी ने रिवर फ्रंट में वॉटर राइड्स और रेस्टोरेंट खोलने के लिए टेंडर दिया है। सुनील गुजरात के विकास पर अक्सर खुलकर बोलते हैं और उन्होंने एक बार मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि इस प्रदेश के विकास का कारण मोदी जैसे सशक्त लीडर का होना है।



--> विवेक ओबेराय भी गुजरात के विकास के दीवाने हैं। वे अक्सर गुजरात की यात्रा करते रहते हैं। इसके अलावा वे गुजरात सरकार के एंटी-टोबेको कैंपेन में हिस्सा भी ले चुके हैं।


--> बॉलीवुड के महानायक गुजरात के ब्रांड एम्बेसेडर हैं और यहां के टूरिज्म के प्रचार-प्रसार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। अमिताभ बच्चन के प्रयासों से गुजरात टूरिज्म जबर्दस्त तरीके से देश-विदेश के पटल पर छा रहा है। वित्तीय वर्ष 2011-12 में गुजरात के टूरिज्म विभाग की तिजोरियां छलक गई थी।


--> फिल्मी सितारो में परेश रावल को मोदी का सबसे नजदीकी माना जाता है। वे गुजराती हैं और उन्होंने हमेशा ही मोदी की प्रशंसा की है। गत विधानसभा चुनाव में वे मोदी का चुनाव प्रचार पूरे जोर-शोर से करते नजर आए थे।


--> प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री किरण खेर भी स्मृति ईरानी से पीछे नहीं। किरण खेर को भी अक्सर मोदी का पक्ष लेते हुए देखा गया है। जब भी मोदी के विरोधियों को जवाब देने की बात आती है तो किरण पीछे नहीं हटतीं।


--> प्रसिद्ध गुजराती एक्ट्रेस अपारा महेता के साथ मोदी।



--> जॉन अब्राहम और मोदी


--> बॉलीवुद के सदाबहार एक्टर स्व. देवानंद के साथ मोदी



--> अनुमप खैर के साथ मोदी

 कहीं ऐसा न हो कोई कमजोर ह्रदय वाला कांग्रेसी ये देख कर बीमार पड़ जाये और मोदी जी से इस्तीफा मांग ले !

इससे पहले कोई भोंकू हमें फेंकू कहे लिंक दे देता हूँ

http://www.bhaskar.com/article-hf/GUJ-bollwood-stars-fans-of-narendra-modi-4374050-PHO.html?seq=1

जय मोदी राज

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

प्राचीन भारतीय अस्त्र विद्या | Ancient Indian Missiles & Weapons : Mahabharata Era 3000 BC


दोस्तों प्राचीन भारतीयों के पास अस्त्र सस्त्र विद्या भी थी ये हमने सीरियल आदि के माध्यम से देखा है  |
वे सभी सत्य है पदार्थ विद्या (Materials science/Materials Engineering) के जानकारों ने वे सभी हथियार बना लिए थे |
वे अस्त्र मंत्र द्वारा सिद्ध किये जाते थे यहाँ मंत्र का अभिप्राय किसी मंत्र का उच्चारण करना नही है जैसा की हम सभी मानते है वरन मंत्र अर्थात विचार ।
शब्दमय मंत्र या उच्चारण द्वारा कोई पदार्थ उत्पन्न नही किया जा सकता । यदि मंत्र द्वारा तीर पर अग्नि उत्पन्न हो तो वो सर्वप्रथम  मंत्र उच्चारण करने वाले की जिह्वा को ही भस्म कर डाले  इसलिए ऐसा मानना मिथ्या है ।
मंत्र नाम होता है विचार का जैसे राजदरबार में मंत्रणा (विचार-विमर्श) करने वाले को मंत्री कहा जाता है वैसे ही प्रकृति में पाए जाने वाले पदार्थों का पहले विचार फिर क्रिया द्वारा वे अस्त्र आदि सिद्ध किये जाते थे ।

आग्नेयास्त्र (Fire Missile) - इस प्रकार के अस्त्र में किसी लोहे का बाण (Arrow/Missile)  या गोला (Grenade)  बनाकर उसमे ऐसे उच्च जवलनशील पदार्थ रखे जाते थे जो अग्नि के लगाने से  वायु में धुआ फेलने और सूर्य की किरण या वायु के संपर्क में आने से जल उठते थे । और इन्हें किसी कमान या अन्य किसी मशीन की सहायता  से शत्रु सेना पर दाग दिया जाता था |

वारुणास्त्र (Water Missile) -  वारुणास्त्र आग्नेयास्त्र का तोड़ होता था ।  इस मिसाइल में ऐसे पदार्थों का योग होता था जिसका धुआ वायु के संपर्क में आते ही तुरंत जल की बूंदों  में परिवर्तित हो  वर्षा कर देता था और अग्नि को बुझा देता था |

नागपाश - इस प्रकार का हथियार शत्रु के अंगो को जकड के बांध लेता था |

मोहनास्त्र - इस मिसाइल में ऐसे नशीले पदार्थों का योग होता था जिसका धुंए के लगने से शत्रु की सेना निद्रास्थ अथवा मुर्छित हो जाती थी ।
इसका उपयुक्त उदहारण अश्रु गेस के गोले के रूप में समझा जा सकता है जो सरकार अक्सर शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट कर रहे लोगो पर करती है |

पाशुपतास्त्र (Electric Missile/Weapon) - इस प्रकार के अस्त्र में तार से या शीशे से अथवा किसी और पदार्थ से विधुत उत्पन्न  कर शत्रुओं पर छोड़ा जाता था |

इसी प्रकार तोप (Cannon) बन्दुक (Gun) आदि भी हुआ करते थे । ये नाम अन्यदेश भाषा के है आर्यावर्त या संस्कृत के नही । संस्कृत में तोप को शतघ्नी तथा बन्दुक को भुशुण्डी कहते है |

यह निश्चित है की जितनी भी विद्या तथा मत आदि भूगोल में फैले है वे सब आर्यावर्त से ही प्रचरित हुए है ।
देखो ! एक गोल्डस्टकर साहब फ़्रांस देश के निवासी अपनी पुस्तक 'बाइबिल इन इंडिया' में लिखते है की सब विद्या तथा  भलाईयों  का भंडार आर्यावर्त देश है और सब विद्या इसी देश से भूगोल में फैली है । और हम परमेश्वर से प्रार्थना करते है की जैसी उन्नति आर्यावर्त देश में थी वैसी हमारे देश की कीजिये ।
तथा 'दाराशिकोह' बादशाह ने भी यही कहा की जैसी पूरी विद्या संस्कृत में है वैसी किसी अन्य भाषा में नही । वे ऐसा उपनिषदों के भाषांतर में लिखते है की मैंने अरबी आदि  बहुत सी भाषा पढ़ी परन्तु मन का संदेह छुट कर आनंद न हुआ । जब संस्कृत देखा  और  सुना तब निसंदेह हो कर मुझ को बड़ा आनंद हुआ ।

और अधिक जानने के लिए
http://www.vedicbharat.com/2013/05/scholars-view-about-bharat.html

परन्तु ऐसे शिरोमणि देश को महाभारत के युद्ध ने ऐसा धक्का दिया की अब तक भी यह अपनी पूर्व स्थति में नही आया है क्योंकि जब भाई भाई को मरने लगे तो नाश होने में क्या संदेह है ?

जब बड़े बड़े विद्वान , राजा, महाराजा , ऋषि तथा महर्षि आदि महाभारत के भीषण युद्ध में मारे गये और बहुत से मर गये तब विद्या और वेदोक्त धर्म का प्रचार नष्ट हो चला । ईर्ष्या , द्वेष तथा अभिमान आपस में करने लगे जो बलवान हुआ वो देश को दाब कर राजा बन बैठा । वैसे ही सर्वत्र आर्यावर्त देश में खंड बंड सा राज्य हो गया । इसी क्रम  में वेद विद्या नष्ट हुई ढोंग पाखंड बढता चला गया और आर्यावर्त के पतन के दिन आरंभ हो गये ।

- महर्षि दयानंद सरस्वती , सत्यार्थ प्रकाश 


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

72 साल से भूखे प्रहलाद आम इंसान से अलग हैं: डॉक्टर | Saint With Yoga Powers

अहमदाबाद। पिछले 72 सालों से भूखा प्यासा रहने का दावा करने वाले प्रहलाद जानी पर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की स्टडी पूरी हो गई है। 15 दिन की इस स्टडी में डीआरडीओ के वैज्ञानिक और डॉक्टरों को आखिर मानना पड़ा की प्रहलाद जानी ने 15 दिनों तक कुछ नहीं खाया-पिया। स्टडी के 15 दिन पहले और 15 दिन बाद की जांच ने सबको हैरत में डाल दिया है। 
72 साल से भूखा-प्यासा रहने का दावा करने वाले प्रहलाद जानी विज्ञान के लिए अजब पहेली हैं। प्रहलाद जानी के दावों में कितनी सच्चाई है ये जानने के लिए रक्षा विभाग के डीआरडीओ के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की एक टीम ने शुरू किया 15 दिन का ऑपरेशन भूख। सीसीटीवी की नजरें 24 घंटे प्रहलाद जानी पर लगी रहीं। यहां तक कि नहाने और ब्रश करने के लिए भी पानी पहले से ही नापतौल कर दिया जाता। हर आधे से एक घंटे में प्रहलाद जानी को फिजीशियन, कार्डियोलॉजिस्ट, गेस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट,एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, डायबिटोलॉजिस्ट, यूरो सर्जन, आंख के डॉक्टर और जेनेटिक के जानकार डॉक्टरों की टीम के जरिये चेक किया जाता रहा और उनकी रिपोर्ट तैयार की जाती रही। 15 दिन लगातार मॉनिटिरिंग के बाद वैज्ञानिक हैरान हैं। प्रहलाद अपने दावे में अभी तक खरे उतरे हैं।
वैज्ञानिक इसे करिश्मा कहने से फिलहाल बच रहे हैं पर इतना जरूर मानते हैं कि प्रहलाद जानी आम इंसान से अलग हैं।
72 सालों से बिना कुछ खाए-पिए प्रहलाद जानी के जिंदा रहने का राज खुलता है तो चिकित्सा विज्ञान में चमत्कार हो जायेगा। प्रहलाद जानी ने अपने ऊपर किए गए इस परीक्षण के लिये एक शर्त ये रखी थी कि डॉक्टर, उनके शरीर में किसी भी तरह की चीज इंजेक्ट नहीं करेंगे। हालांकि प्रहलाद जानी का कहना है कि जब वो 12 साल के थे तब तीन बच्चों ने उनके मुंह में उंगली रख दी थी जिसके बाद से ही उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया और कई सालों तक हिमालय के जंगलों में तप किया।
प्रहलाद जानी पर रिसर्च के दौरान डॉक्टरों को ये बात माननी पड़ी कि इनके शरीर में कुछ तो ऐसा होता है, जो कि बिना खाए-पिए इन्हें ताकत देता है। रक्षा विभाग के डॉक्टर और वैज्ञानिकों ने जो रिर्सच किया है उसका नतीजा 3 महीने के अंदर आ जाएगा। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि बिना कुछ खाए-पिए जिंदा रहने की वजह रिसर्ज के नतीजों से साफ हो जाएगी।

72 साल से प्रह्लाद जानी ने हवा के अलावा कुछ नहीं लिया। सबसे पहले इस सच्चाई की पड़ताल के लिए गुजरात के डॉक्टर सामने आए। इन डॉक्टरों ने प्रहलाद भाई की पोल खोलने के लिए उन पर रिसर्च करने की ठानी। कई दिनों के लिए उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया गया। उन पर सीसीटीवी कैमरे से नजर रखी गई। क्या निकला था डॉक्टरों की पहली रिसर्च का नतीजा बताते हैं।
75 साल से ज्यादा के प्रह्लादभाई को कमरे में बंद कर दिया गया। तीन सौ डॉक्टरों की टीम बाहर से टीवी पर सब कुछ देखती रही। भूख पर ही नहीं इस शख्स ने जैसे उम्र पर भी जीत हासिल कर ली है। वक्त बीतता रहा, दिन गुजरते रहे। प्रह्लादभाई अब भी पूरी तरह ठीक हैं न कोई दिक्कत, न परेशानी। बाहर से डॉक्टर देखते रहे लेकिन प्रह्लादभाई पर कोई फर्क नहीं पड़ा। ऑपरेशन भूख सिर्फ सात दिन का था लेकिन इसे और बढ़ा दिया गया। डॉक्टरों की आशंका बढ़ती रही आखिरकार दसवां दिन आया। प्रह्लादभाई वैसे ही मजबूत बंद कमरे में आराम करते रहे। भूख का कोई असर नहीं। डॉक्टरों ने खुद मान ली हार। ये चमत्कार था...डॉक्टरों को चुनौती थी और आखिरकार विज्ञान ने ही मानी हार।
प्रह्लादभाई को ऑपरेशन भूख के पहले दिन भी अस्पताल ले जाकर पूरी जांच की गई थी। पहले दिन भी वो पूरी तरह से स्वस्थ थे। जब 10 दिन बाद ऑपरेशन भूख खत्म हुआ तब भी उन्हें कोई परेशानी नहीं थी।
सीसीटीवी कैमरे के जरिए तीन सौ डॉक्टरों की टीम 10 दिन तक प्रह्लादभाई पर नजर रख चुकी थी। इस दौरान उन्होंने न कुछ खाया,न पिया। भूख का कोई नामो-निशान नहीं। डॉक्टरों को समझ नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है। मेडिकल साइंस इसकी इजाजत नहीं देती लेकिन ऑपरेशन भूख के नतीजे उनके सामने थे। दुनिया में अब तक की ये पहली घटना थी। भारती की एक चलती-फिरती पहेली ने डॉक्टरों को भी हैरत में डाल दिया था।

आईबीएन 7 के पास है रिपोर्ट
मालूम हो कि आईबीएन 7 के पास डॉक्टरों की वो रिपोर्ट है जिससे साफ होता है कि प्रह्लादभाई की सेहत पर भूख से कोई असर नहीं पड़ा। 10 दिन की पड़ताल के बाद तीन सौ डॉक्टरों की टीम ने रिपोर्ट दी कि-
1. 10 दिन तक प्रह्लादभाई ने कुछ नहीं खाया, यहां तक की पानी भी नहीं पीया
2. 10 दिन बाद भी उनके शरीर के सभी अंग पहले की तरह काम कर रहे हैं
3. दिल की धड़कनों में कोई खास बदलाव नहीं आया
4. पेट की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में भी कुछ गड़बड़ी नहीं
5. दिमाग के एमआरआई में भी कुछ खास नहीं निकला
6. सीने का एक्स-रे भी सामान्य रहा
7. 10 दिन भूखे रहने पर कोई असर नहीं
डॉक्टरों की जांच पड़ताल में प्रह्लादभाई के खून में मौजूद हीमोग्लोबीन पर खास ध्यान दिया गया। हम आपको बता दें कि शरीर को तमाम हिस्सों को ऑक्सीजन पहुंचाने का काम खून में मौजूद हीमोग्लोबीन के ही जिम्मे होता है। डॉक्टरों की इस खास टीम ने जो रिपोर्ट दी है उसके मुताबिक
ऑपरेशन भूख शुरू करने के पहले दिन प्रह्लादभाई की हीमोग्लोबीन था-10.8
तीसरे दिन--11.3
पांचवे दिन--11.5
सातवें दिन--12.3
और
नवें दिन--12.9
यानि डॉक्टरों ने एक दिन छोड़कर प्रह्लादभाई के खून में हीमोग्लोबीन का स्तर जांचा। साफ है कि 10 दिन की भूख के बावजूद हीमोग्लोबीन के स्तर में कोई खास फर्क नहीं पड़ा। प्रह्लादभाई पर माथापच्ची कर रहे तीन सौ डॉक्टरों ने उनके आगे हार मान ली। डॉक्टरों ने इस केस की जांच किसी और बड़ी रिसर्च टीम से भी कराने का समर्थन किया। वहीं उन्होंने राय दी कि अगर वाकई में प्रह्लादभाई के शरीर में कुछ ऐसा खास है जिससे उन्हें भूख नहीं लगती और उनके शरीर को खाने की जरूरत नहीं महसूस होती तो वो उसे खोजना बेहद जरूरी होगा। अगर इसके पीछे प्रह्लादभाई के शरीर में मौजूद कोई खास जीन काम कर रहा है तो उसे जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से खोजना होगा। अगर ऐसा हो गया तो-
1.दुनियाभर में भुखमरी की समस्या से निपटा जा सकता है
2. इंसान के बीमार शरीर को स्वस्थ किया जा सकता है
3. बुढ़ापे को रोकने में मदद मिल सकती है
4. बर्फीले पहाड़ों पर रह रहे सैनिकों को मदद मिलेगी
5. अंतरिक्ष यात्रा पर गए लोगों को खाने का सामान साथ नहीं ले जाना पड़ेगा
कुल मिलाकर विज्ञान और आध्यात्म के बीच फंसी ये पहेली सुलझने के बजाय और उलझती जा रही है। प्रह्लादभाई के मुताबिक दूसरे देशों के कई डॉक्टर भी उन्हें अपने यहां बुलाकर रिसर्च करना चाहते हैं लेकिन वो अपना देश छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहते।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

गति के नियम : महर्षि कणाद | Laws of Motion by Maharishi Kanada : 600BC

जी हाँ दोस्तों ,
शीर्षक बिलकुल सही है इस संसार को गति के नियम महर्षि कणाद ने दिए है ना की कोई न्यूटन फ्यूटन ने ।


वैशेषिक दर्शन (Vaisheshika Sutra) के रचनाकार महर्षि कणाद लगभग २ या ६ ईसा पूर्व प्रभास क्षेत्र द्वारका के निकट गुजरात में जन्मे ।
दुनिया को पहला परमाणु का ज्ञान देने वाले भी ऋषि कणाद ही है । इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा ।
 यहाँ देखें :- http://www.vedicbharat.com/2013/02/blog-post_4711.html

वैशेषिक दर्शन  में इन्होने गति के लिए कर्म शब्द प्रयुक्त किया है । इसके पांच प्रकार हैं यथा :

उत्क्षेपण (upward motion)
अवक्षेपण (downward motion)
आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
प्रसारण (Shearing motion)
गमन (General Type of motion)

विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है।

(१) नोदन के कारण-लगातार दबाव
(२) प्रयत्न के कारण- जैसे हाथ हिलाना
(३) गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है
(४) द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से

Dr. N.G. Dongre अपनी पुस्तक 'Physics in Ancient India'  में वैशेषिक सूत्रों  के ईसा की प्रथम शताब्दी में लिखे गए  प्रशस्तपाद भाष्य में उल्लिखित वेग संस्कार और न्यूटन द्वारा 1675 में खोजे गए गति के नियमों की तुलना की है ।

महर्षि प्रशस्तपाद लिखते हैं
‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियतदिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद्‌ द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित्‌ कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते।‘

 अर्थात्‌ वेग या मोशन पांचों द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।

उपर्युक्त प्रशस्तिपाद के भाष्य को तीन भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति सम्बंधी नियमों से इसकी समानता ध्यान आती है।

(१) वेग: निमित्तविशेषात्‌ कर्मणो जायते

The change of motion is due to impressed force (Principia)

(२) वेग निमित्तापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियत्दिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु

The change of motion is proportional‌ to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which‌ the force is impressed (Principia)

(३) वेग: संयोगविशेषाविरोधी

To every‌ action there is always an equal‌ and opposite reaction (Principia)


वैशेषिक सूत्र में गति के साथ साथ ब्रह्माण्ड , समय तथा अणु /परमाणु  का ज्ञान भी है जिसके  अंग्रेज भी बहुत दीवाने है देखिये , ये निम्न एक पीडीऍफ़ फाइल दे रहा हूँ ये मुझे अमेरिका के एक कॉलेज  की  साईट पर मिली

Division of Electrical & Computer Engineering, School of Electrical Engineering and Computer Science
3101 P. F. Taylor Hall • Louisiana State University • Baton Rouge, LA 70803, USA

Space, Time and Anu (Atom) in Vaisheshika -> http://www.ece.lsu.edu/kak/roopa51.pdf

 चाहे तो http://www.ece.lsu.edu/ में जाएँ और सर्च बॉक्स में kanad  लिखें

अंग्रेज  हमारी चीजें पढ़ कर हमें पढ़ा रहे है वो भी अपने नाम से , कैसे दिन आ गये !!
दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में आर्यों की ऐसी स्थति पर बड़ा दुःख व्यक्त किया है
http://phys.org/news106238636.html

वैशेषिक सूत्र आप पढना चाहें तो यहाँ से डाउनलोड कर सकते है :--
http://www.jainlibrary.org/elib_master/jlib/002501_book_hindi_21/Vaisheshika_Sutra_002759.pdf
http://darshanapress.com/The%20Vaisheshika%20Darshana.pdf



                                                            सनातन्  धर्मं: नमो नमः



TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्


बुधवार, 7 अगस्त 2013

हिन्दू होने पर गर्व है | I am proud to be Hindu ! P 1


Yes, I am proud to be Hindu. Indeed, very proud. More than proud, I feel myself lucky. Very very lucky to be born a Hindu. 
And why should I not feel so? People go crazy when they win a million dollar jackpot. So why should not I celebrate when I have won something more precious than millions of such jackpots! Now that He made me a Hindu, I have nothing more to ask from Supreme Lord. It is now my turn to repay for this rare privilege that he has gifted me. Hinduism is my most precious possession.
No, don’t take me wrong. I have nothing against other religions. On contrary, I completely respect all. I respect every individual’s freedom to choose any religion for herself without fearing any backlash either in this world or hereafter. And I proudly would stand to defend this right of each individual. This, again, is a core principle of Hinduism that makes me love being Hindu so much!
I believe that all philosophies, religions or ideologies have a lot of good things. I won’t argue why Hinduism may be best for you. That is your personal choice. I am here to tell you why Hinduism is my personal favorite.
Hinduism is that way of life that has no comparison, no peers, no equals. If I have to die thousand times, I will always wish to be born again as a Hindu. If I were to be threatened thousand times with death to leave Hinduism, I would gladly choose to rather die than leave Hinduism.
Hinduism, in fact, is not a religion in first place. It is neither a philosophy or an ideology. Religions, philosophies and ideologies are too time-bound, too specific, too geographical.
Hinduism, in contrast, is a ‘celebration’ of ‘being human’. It is all about ‘justifying’ being human. Hinduism, in fact, is synonym for ‘being human’.
Let me tell you a very few reasons, why I am so proud to be Hindu:

Reason 1 : Hinduism – the Oldest wisdom 

Hinduism is the oldest wisdom known to humanity. In a narrow sense, people say Hinduism is the oldest religion. But reality is that Hinduism existed when division of humans on basis of religion was non-existent.
The source of Hinduism lie in 4 Vedas – wonders of human civilization. Vedas are the only texts that have been preserved in such a scientifically secure manner that even a variation of one syllable or pronunciation is not present. Further, Vedas are the only texts for which there is no reference available in history to suggest that they were being created. All that historical research tells us is that these 20,000 plus mantras were already existing when that research was being compiled.
These Vedas form the foundation of Hinduism. Vedas alone are ultimate evidence in matters of any dispute. If one browses through Vedas, you would find the best of ideals and wisdom, spanning across all subjects, without any reference to history, geography, people or events. Vedas are timeless and ever-relevant.
In modern era, after rise of modern religions and hence the agenda to prove their own religion the best, there have been attempts to malign the Vedas and offer misdirected interpretations of Vedic mantras. And thus for a layman, it becomes impossible to decide what is right and what is wrong – whether Vedas and Hinduism are indeed perfect, or it is yet another hoax.
But Vedas themselves come to rescue in this confusion, and offer the second reason why I love being Hindu so much

Reason 2: Hinduism – Enlightened Way of Life

Vedas themselves assert that one should not be bookish in exploring truth. Even so-called books of Vedas are not to be trusted blindly. Vedas assert that the wisdom of Vedas is already embedded inside our thought process. And human life is an opportunity to extract that wisdom out through rational thinking, noble actions and positive emotions.Vedas – as books – are supposed to simply assist this process.
In fact Vedas are derived from root Vid that means knowledge or enlightenment. So even if one scandalously destroys or distorts all the Vedas, no worries. One simply needs to take recourse to rational thinking, noble actions, positive emotions and nurture out the Vedic principles by integrating wisdom of enlightened ones in the society.
Thankfully, Vedas are not destroyed and by reviewing them we can speed up the process of enlightenment.
Vedic mantras are supposed to have therapeutic and psychological benefits even when recited without understanding them. But Vedas truly benefit those who are enlightened, who seek knowledge in life, who strive to live as per that knowledge.
Vedas are like sun or water. They benefit all. But those who dig a bit deeper, and are enlightened ones, can use the same sun and water to lighten our nights, run our machines and power the lives in ways truly unimaginable.
The thrust of Hinduism and Vedas is on this enlightenment, and NOT on a blind dogmatic belief in any book or verse.

Reason 3: Hinduism – Honest Liberal Way of Life

I am not sure if one can be a Muslim if he outrightly rejects Quran, or one can be a Christian if he outrightly rejects Bible. But yes, one can be a Hindu even if he outrightly rejects the Vedas, so far he has done so with best of his intent and intellect.  
To be a Hindu, you don’t need certificate from any temple, church or mosque. You need not recite any verse. You need not believe in any particular God or book. You simply have to be honest to yourself.
Hinduism firmly believes that each of us at each moment in life is different. Hence our needs and understanding also are bound to vary. So it is foolish to judge a person by his current set of beliefs. The goal of Hinduism is not to enforce a pre-decided set of ideas, books, Gods, avatars or prophets. Its goal is to provide a nurturing platform for each of us at each moment. We used to read nursery rhymes as children, science as adolescents and specialize in medical, engineering or accounts as grown-ups. In same manner, Hinduism allows different options to all of us at all times to choose what is naturally best for us and progress from there. It is an advanced educational system that caters to needs of all in a customized manner. It is not a deprived school in a remote village that has only one Class 5 fail as the teacher and hence everyone is forced to read and mug the same set of books.
Since Hinduism gives me this choice, and even encourages me to fearlessly counter the most popular variants, I find Hinduism more human, more liberal, more honest and more natural to me than any other way of life I am aware of.

Reason 4: Hinduism – Truly Global

Most religious books have a local flavor. For example Judaism, Christianity and Islam have texts that have a very strong Middle-East flavor. Stories, rituals, culture and practices that relate to Middle-East era of middle ages. And that adds a wonderful vintage beauty to these texts that any literature lover would admire.
Hinduism also has certain books – Purans, Ramayan, Mahabharat  etc – that have a strong Indian flavor. Of course, as Indians, there is an amazing wealth of wisdom in these books that also gives reasons to be proud of our heritage, irrespective of all the distortions that have crept over ages. And hence, they provide historical reasons to be proud to be Indian!
But essence of Hinduism lies in those texts that are truly universal and timeless. Of course Vedas form the crux of this global wisdom. But then there are also peerless texts like Yoga Darshan, Nyaya Sutra, Vaisheshik Darshan, Sankhya Darshan, Vedanta, Upanishads and Gita – that have astonished and inspired scientists and scholars across the globe with their timeless universal wisdom. The beauty of these texts lie in they having no flavor – Indian, Middle East or African. They have no vintage feel to them. Instead they are always as fresh and as contemporary as they were ever. I simply love this freshness!
These texts – the soul of Hinduism – are as relevant to someone in Australia as to someone in Africa or in even Antarctica. All other historical texts associated with Hinduism simply attempt to explain these timeless wisdoms through time-bound incidents.

Reason 5: Hinduism – Principles over Persons

A Christian cannot be Christian unless he believes in Jesus Christ. A Muslim cannot be Muslim if he refuses to believe Prophet Muhammad (pbuh) as last prophet. Regardless of whatever good that may be in texts of these religions, one must first believe in these pre-conditions – the special status of these people – to be eligible for anything else in these texts.
For example, if I believe in all the noble verses in Quran (which I firmly believe in), but reject those verses that call Muhammad Sahib as last prophet (because the concept of avatars or prophets does not appeal to my rational mind), I will not be considered a Muslim. In fact if I call myself Muslim because I like a large number of verses in Quran, but reject the concept of Prophethood, I may be put to death in certain countries on charges of blasphemy.
Christians have become much more liberal but nonetheless the word ‘Christian’ itself states that belief in Christ is a must.
Now this may be a very good thing to inculcate discipline in certain situations. I am not arguing their merits or demerits.
But to my democratic and liberal mind, Hinduism appeals so much more for respecting and even celebrating my individuality. It makes me feel so much special and values my uniqueness. It has no concept of blasphemy. It is not threatened by views, deeds, speeches or writings of a few individuals. On contrary, it embraces even them into its fold, if they are driven by honesty.
Hinduism, due to its emphasis on honesty, does not offer any mandatory persons as pre-conditions. Yes, a large number of people may worship Krishna, Ram, Durga, Kali, Shiva, Hanuman and many other Gods and Goddesses. Some worship a particular God or Goddess exclusively, some worship everyone. There are innumerable Gods and Goddesses and many are of even recent origin. For example Santoshi Mata, Gayatri Mata or Sai Baba. For many it has become even a fraud business to resurrect a new God or Goddess and mint money on religious feelings of masses. Yes that is an issue of concern and pointed by many as weakness of Hinduism.
But that is not the complete picture. In reality, Hinduism offers freedom of choice without being dictatorial or judgmental. What critics of Hinduism forget to emphasize is that Hinduism is the ONLY way of life that ALSO offers worship of principles ALONE. In fact even the so-called idol worshippers agree that while idol-worship may be first step, the ultimate goal is to reach a state of worship of principles ALONE.
Thus huge number of Hindus believe in formless God. Many are even atheists. Many believe only in core tenets – Patience, Forgiveness, Self-control, Non-Stealing, Purity, Control of Sense, Wisdom, Knowledge Enhancement, Honesty, Non-Violence.
So you can be a Hindu even if you don’t believe in any particular person or avatar or even concept of God. You simply have to be honest to yourself, and need not even take certificate of honesty from anyone.
And that is exactly why so many reform movements took place within Hinduism. Many schools fiercely debated and at times even abused other schools of thought. But that did not make them less Hindu. All of them naturally assimilated within Hinduism.
Sometimes freedom also tends to nurture social evils due to lack of enlightenment of masses. This is true for any society and any sphere of life. People misuse freedom to break signals and behave like rowdies. That does not mean Freedom is bad. It means there is need to emphasize the importance of responsibility that comes with freedom. It means we need to find ways to make freedom even more meaningful.
Hinduism offers a way to combat these through wisdom and intellect. That is why Hinduism is not static. It is ever-flowing and ever-dynamic. It makes me love and enjoy being Hindu so much more!

                                          




Anciet Vedic Wisdom :-- See this part 1/3



Thanks to Agniveer.