अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

पृथ्वी पर प्रजातियां | पुनर्जन्म : पद्म पुराण (Life Forms on Earth & Rebirth : Padma Purana)

दोस्तों आपने अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों के मुख से ये तो अवश्य ही सुना होगा :

"84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए"
अर्थात 84 लाख प्रकार के जीवों की योनि में जन्म भोगने के पश्चात मनुष्य जीवन मिलता है ।

अब सवाल ये है की उनके पास 84 लाख जैसा बड़ा आंकड़ा आया कहाँ से ? और क्या इसमें कुछ दम है ?
और दूसरा ये है एक योनि(जीवन) से दूसरी योनि में प्रवेश करना (पुनर्जन्म)।
इन दोनों बातो पर हम विचार करेंगे ।

इस प्रथ्वी पर एककोशिकीय, बहुकोशिकीय, थल चर, जल चर तथा नभ चर आदि कोटि के जिव मिलते है। इनकी न केवल संख्या अपितु वर्गीकरण की जानकारी भी हमें  पद्म पुराण में मिलती है ।


पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है


जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल  लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः  

jalaja nava lakshani, sthavara laksha-vimshati, krimayo rudra-sankhyakah, 
pakshinam dasha-lakshanam, trinshal-lakshani pashavah, chatur lakshani manavah

जलज/ जलीय जिव/जलचर  (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)
स्थिर अर्थात  पेड़ पोधे (Immobile implying plants and  trees) – 20 लाख (2.0 million)
सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े    (Reptiles) –     
11 लाख  (1.1 million)  
पक्षी/नभचर  (Birds) – 10  लाख 1.0 million
स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
मानवीय नस्ल के (human-like animals) – 4 लाख 0.4 million
कुल = 84 लाख । 

इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है । 

7000 year old texts are not only suggesting that there are 8.4 million species or 8.4 million different life forms on earth, but have also categorized them!


आधुनिक विज्ञान का मत :

आधुनिक जीवविज्ञानी लगभग 13 लाख (1.3 million) पृथ्वी पर उपस्थित जीवों तथा प्रजातियों का नाम पता लगा चुके है तथा उनका ये भी कहना है की अभी भी हमारा आंकलन जारी है  ऐसी लाखों प्रजातियाँ की खोज, नाम तथा अध्याय अभी शेष है जो धरती पर उपस्थित है । ये अनुमान के आधार पर प्रतिवर्ष लगभग 15000 नयी प्रजातियां सामने आ रही है । 
अभी तक लगभग 13 लाख की  खोज की गई है ये लगभग पिछले  200 सालो की खोज है । 

" Each year, researchers report more than 15,000 new species, and their workload shows no sign of letting up. “Ask any taxonomist in a museum, and they’ll tell you they have hundreds of species waiting to be described,” says Camilo Mora, a marine ecologist at the University of Hawaii."

चूँकि पिछले कई दशकों में विज्ञानं ने काफी प्रगति की है इसलिए जीवों के आंकलन की दर भी बढ़ी है और गणितीय तर्कों द्वारा वैज्ञानिकों ने लगभग 87 लाख जीवों के होने की संभावना बताई है। इनमे भी 13 लाख ऊपर निचे हो सकती है ।  यधपि पर्याप्त जानकारी केवल 13 की ही है। 

"On Tuesday, Dr. Worm, Dr. Mora and their colleagues presented the latest estimate of how many species there are, based on a new method they have developed. They estimate there are 8.7 million species on the planet, plus or minus 1.3 million."

आधुनिक विज्ञानं का मत पुरे 84 लाख जिव होना आवश्यक भी नही क्यू की जैसा की हम ऊपर देख चुके है की पद्म पुराण में वर्णित ये जानकारी आज से 7000 वर्ष पुरानी है । इसके पश्चात प्रथ्वी पर कई प्रकार के वातावरणीय तथा जैविक बदलाव हुए है । यदि जीवों के संख्या में बढ़ोतरी अथवा कमी पाई  जाये तो कोई बड़ी बात नही । 


23 अगस्त 2011 के  The New York Times में छपा ये लेख पढ़े :


उपरोक्त से स्पस्ट है की हमारे ग्रंथों में वर्णित ये जानकरी हमारे पुरखों के सेकड़ों वर्षों की खोज है  उन्होंने न केवल धरती पर चलने वाले अपितु आकाश में व् अथाह समुद्रों की गहराइयों में रहने वाले जीवों का भी अध्ययन किया । 
निश्चय ही उस समय पनडुब्बीयां(submarine) भी रही होंगी । विमान बना लेने वालों के लिए पनडुब्बी बनाना कोनसी बड़ी बात थी ?

पुनर्जन्म :

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। ...गीता २ /२ २

गीता २ .२ २ में भगवान कृष्ण ने कहा है :

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है

As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new.


८ ४ लाख जीवों में एक मनुष्य ही है जो सबसे उतम बताया गया है इसके अतरिक्त सभी भोग योनि में है । इसी लिए मानवीय जीवन का उपयोग अच्छे कार्यों में लगाने ही हिदायत दी जाती है ।

Since being born as a human is such a rare opportunity, one should make complete use of this human life, and devout one’s lifetime to do good things, earn knowledge, help others, serve the society and try to attain moksha (salvation).

सर्वप्रथम जीवआत्मा अध्यात्मिक अवस्था में होती है तथा वही जीवआत्मा देह धारण करती है तथा उसी देह द्वारा किया गये उच्च अथवा नीच कर्मों के अनुसार गति को प्राप्त होती है जैसे कोई जिव-जंतु पेड़ पोधा आदि । तथा पूर्ण ८ ४ लाख योनियों में भटकने के पश्चात पुनः मानव शरीर ग्रहण करती है और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से बाहर निकलने का एक अवसर और प्राप्त करती है । इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति तक इसी कालचक्र में फंसी रहती है । 
- श्रीमदभागवत 4.29.2 




महर्षि कपिल के सांख्यशास्त्र के अनुसार  :-

जीव शरीर का निर्माण इस रीति से हुआ कि :-
त्रिगुणात्मक प्रकृति से बुद्धि, अहंकार,मन,
सात्विक अहंकार से पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा),
ताम्सिक अहंकार से पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु),
पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश )
पाँच विषय (रूप,रस,गंध,स्पर्श,दृष्य)
और इस चौबिस प्रकार के अचेतन जगत के अतिरिक्त पच्चीसवाँ चेतन पुरुष (आत्मा) ।

शरीर के दो भेद हैं :-
सूक्ष्म शरीर जिसमें :- [बुद्धि ,अहंकार, मन ]
स्थूल शरीर जिसमें :-[ पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) ]

जब मृत्यु होती है तब केवल स्थूल शरीर ही छूटता है, पर सूक्ष्म शरीर पूरे एक सृष्टि काल (4320000000 वर्ष) तक आत्मा के साथ सदा युक्त रहता है और प्रलय के समय में यह सूक्ष्म शरीर भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है । बार बार जन्म और मृत्यु का यह क्रम चलता रहता है शरीर पर शरीर बदलता रहता है पर आत्मा से युक्त वह शूक्ष्म शरीर सदा वही रहता है जो कि सृष्टि रचना के समय आत्मा को मिला था , पर हर नये जन्म पर नया स्थूल शरीर जीवात्मा को मिलता रहता है । जिस कारण हर जन्म के कुछ न कुछ विषय हमारी शूक्ष्म बुद्धि में बसे रहते हैं और कोई न कोई किसी न किसी जन्म में कभी न कभी वह विषय पुनः जागृत हो जाते हैं जिस कारण वह लोग जिनको कि शरीर परिवर्तन का वह विज्ञान नहीं पता वह लोग इसको भूत बाधा या कोई शैतान आदि का साया समझ कर भयभीत होते रहते हैं । कभी किसी मानव की मृत्यु के बाद जब उसे दूसरा शरीर मिलता है तब कई बार किसी विषय कि पुनावृत्ति होने से पुरानी यादें जाग उठती हैं , और उसका रूप एकदम बदल जाता है और आवाज़ भारी हो जाने के कारन लोग यह सोचने लगते हैं कि इसको किसी दूसरी आत्मा ने वश में कर लिया है , या कोई भयानक प्रेत इसके शरीर में प्रवेश कर गया है । परन्तु यह सब सत्य ना जानने का ही परिणाम है कि लोग भूत प्रेत, डायन, चुड़ैल,परी आदि का साया समझ भय खाते रहते हैं । पृथ्वी के सभी जीवों में यह बात देखी जाती है कि जिस विषय का अनुभव उनको होता है उस विषय कि जब पुनावृत्ति का आभास जब उन्हें होता है तब उनकी बुद्धि उस विषय में सतर्क रहती है । और देखा गया है कि पृथ्वी का हर जीव मृत्यु नामक दुख से भयभीत होता है और बचने के लिये यत्न करता है , वह उस स्थान से दूर चला जाना चाहता है जहाँ पर मृत्यु की आशंका है , उसे लगता है कि कहीं और चले जाने से उसका इस मृत्यु दुख से छुटकारा हो जायेगा । अब यहाँ समझने वाली बात यह है कि किसने उस जीव को यह प्रेरणा दी यह सब करने कि? तो यही तथ्य सामने आता है कि यह सब उसके पूर्व मृत्यु के अनुभव के कारण ही है, क्योंकि मृत्यु का अनुभव उसे पूर्व जन्म में हो चुका है जिस कारण वह अनुभव का ज्ञान जो उसकी सूक्ष्म बुद्धि में छुपा था वह उस विषय कि पुनावृत्ति के होने से दुबारा जाग्रत हो गया है । जैसा कि पहले भी कहा गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की हुआ करती है , तो सूक्ष्म शरीर तो वही है जो पहले था और अब भी वही है । जिस कारण यह सिद्ध होता है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध है 

http://www.parami.org/buddhistanswers/when_we_die.htm

पुनर्जन्म वेदों में :
Rebirth in Vedas
अधिक जानने के लिए यहाँ जायें :

http://agniveer.com/why-rebirth-is-necessary-hi/


आधुनिक विज्ञान का मत :

यधपि पुनर्जन्म का सत्यापन विज्ञानं द्वारा या  उपकरणों, यंत्रों आदि द्वारा किया जाना समभव तो नही परन्तु इसे Einstein के इस सिधांत द्वारा समझा जा सकता है :

Energy cannot be created or destroyed, it can only be changed from one form to another

उर्जा न ही पैदा की जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है केवल एक रूप से दुसरे रूप में बदली जा सकती है । 
उदहारण के लिए विधुत उर्जा को प्रकाश उर्जा में :- बल्ब द्वारा 
विधुत उर्जा को गतिज उर्जा में :- पंखा, पानी की मोटर आदि । 

हमारे भोतिक शरीर को चलाने वाली शक्ति उर्जा ही तो है जिसे आत्मा भी कहते है जो एक रूप से दुसरे रूप में प्रवेश करती है । 

उपरोक्त सिधांत Einstein ने पूरा का पूरा गीता से चोरा था :

न जायते म्रियते वा कदाचिन्-
नायं भूत्वा भविता वा न भूय: ।
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। ... गीता २ /२ ० 

यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता । 

The soul is never born nor dies; nor does it become only after being born. For it is unborn, eternal, everlasting and ancient; even though the body is slain, the soul is not. - Bhagavad-Gita 2.20

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। ...गीता २ /२ २


जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है

As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new. - Bhagavad-Gita 2.22


Einstein ने उपरोक्त दोनों श्लोकों को मिला दिया तथा Soul को energy कहा बाकि सारा ज्यों का त्यों चेप दिया और अपना सिधांत कह कर जगत में ढंढ़ोंरा पिटा  ।


“When I read the Bhagavad-Gita and reflect about how God created this universe everything else seems so superfluous.”
― Albert Einstein



खेर मुद्दे पर आते है ।
ऐसे कई प्रमाण अवश्य है जिनमे लोगो को अपने पूर्व जन्म का आंशिक से लेकर पूर्ण स्मरण हो आया ।
इससे सम्बंधित दुनियां भर की जानकारी इन्टरनेट पर भरी पड़ी है किन्तु हम ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई जाँच पड़ताल देखते है जिस पर मुझे तो पूर्ण विश्वास है ।
इसी प्रकार के एक केस का अध्ययन किया वेद विज्ञानं मंडल, पुणे के डॉ० पद्माकर विष्णु वार्तक जी ने ।

वार्तक जी ऐसा केस देख कर आश्चर्य चकित हुए इसी कारण  उन्होंने इसे अपने पाठकों से बाँटने के लिए अपनी साईट पर भी डाला  ।
वार्तक जी के इस केस में एक 4.5 वर्ष के बालक को अपने पूर्व जन्म (10 वर्ष पूर्व मृत्यु का ) पूर्ण रूप से स्मरण हो गया तथा उनसे अपने पूर्व जन्म के माता पिता को पहचान लिया तथा अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां दी । वर्तक जी ने इस केस को सत्यता की कसोटी पर पूर्ण रूप से खरा उतरने के बाद सब के समक्ष प्रस्तुत किया और हेरान कर देने वाली घटना और हुई जब उस बालक ने वो घटनाये भी बताई जो उसके पूर्व शरीर की मृत्यु के बाद उसके परिवार में घटित हुई । इससे ये भी सिद्ध है की आत्मा देखने में भी सक्षम होती है ।

  Presence of Soul who can see even after death is proved by this case. It is also proved that memories can be preserved and transferred without brain.

कृपया पूरा लेख यहाँ पढ़े :
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/rebrith


गूगल पर rebirth scientific evidence लिखे और देखें 


इस प्रकार हमारे बुजुर्गों द्वारा कही बात
"84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए"
सिद्ध होती है !!!


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

6 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीमई 03, 2013 3:12 pm

    शरीर के दो भेद हैं :-
    सूक्ष्म शरीर जिसमें :- [बुद्धि ,अहंकार, मन ]
    स्थूल शरीर जिसमें :-[ पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) ]

    "Karan sharira" kaha gaya??? Please explain this concept better...

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    उत्तर
    1. aapka kya matlab hai sharir kahan gya?

      पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु),
      inhi se to manav sharir bana hai !


      हटाएं
  2. शरीर के दो भेद हैं :-
    सूक्ष्म शरीर जिसमें :- [बुद्धि ,अहंकार, मन चित्त ]
    स्थूल शरीर जिसमें :-[ पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) ]

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  3. मुझे सभी ग्रंथो का अध्ययन करने की इक्षा है | पर मुझे संस्कृत का ज्ञान नहीं है | क्या आप मुझे बता सकते है की मै इन ग्रंथो को कहा से प्राप्त कर सकता हू |हिन्दी अनुवाद आवश्यक है |
    कृपया मार्गदर्शन करे | धन्यवाद |

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    1. भाई ये सभी इन्टरनेट पर आपको आसानी से उपलब्ध हो जायेंगे, संस्कृत की आवश्यकता नही, अनुवाद मिल जायेगा .
      वैसे तो कई साईटस है पर एक बताता हु
      http://vedpuran.com/
      इसमें सभी ग्रन्थ + चारों वेद हिंदी में है .
      इसके अतिरिक्त यदि रिसर्च पढना चाहें तो अपनी साईट में उपर ही उपर "useful links" है उसमे देखें ..
      धन्यवाद !

      हटाएं
  4. Unaccomplished activities of past lives are also one of the causes for reincarnation. Some of us reincarnate to complete the unfinished tasks of previous birth. This is evident from my own story of reincarnation:
    “My most Revered Guru of my previous life His Holiness Maharaj Sahab, 3rd Spiritual Head of Radhasoami Faith had revealed this secret to me during trance like state of mine. This was sort of REVELATION.
    HE told me, “Tum Sarkar Sahab Ho” (You are Sarkar Sahab). Sarkar Sahab was one of the most beloved disciple of His Holiness Maharj Sahab. Sarkar Sahab later on became Fourth Spiritual Head of Radhasoami Faith.
    Since I don’t have any direct realization of it so I can not claim the extent of its correctness. But it seems to be correct. During my previous birth I wanted to sing the song of ‘Infinite’ (Agam Geet yeh gawan chahoon tumhri mauj nihara, mauj hoi to satguru soami karoon supanth vichara) but I could not do so then since I had to leave the mortal frame at a very early age. But through the unbounded Grace and Mercy of my most Revered Guru that desire of my past birth is being fulfilled now.”
    I am one the chief expounder and supporter of Gravitation Force Theory of God. This is most scientific and secular theory of God. This is the Theory of Universal Religion. I have given Higher Theory of Everything. Sometimes back I posted this as comments to a blog on:
    ‘Fighting of the Cause of Allah by Governing a Smart Mathematics Based on Islamic Teology’
    By Rohedi of Rohedi Laboratories, Indonesia. Rohedi termed my higher theory of everything more wonderful than which has been developed by Stephen Hawking. Some details are quoted below:
    rohedi
    @anirudh kumar satsangi
    Congratulation you have develop the higher theory of everything more wonderful than which has been developed by Stephen Hawking. Hopefully your some views for being considered for Unified Field Theory are recognized by International Science Community, hence I soon read the fundamental aspect proposed by you.
    I have posted my comments to the Blog of Syed K. Mirza on Evolutionary Science vs. Creation Theory, and Intellectual Hypocrisy. Syed Mirza seems to be a very liberal muslim. He responded to my comments as mentioned below.
    “Many thanks for your very high thought explanations of God.
    You said:
    “Hence it can be assumed that the Current of Chaitanya (Consciousness) and Gravitational Wave are the two names of the same Supreme Essence (Seed) which has brought forth the entire creation. Hence it can be assumed that the source of current of consciousness and gravitational wave is the same i.e. God or ultimate creator.
    (i) Gravitation Force is the Ultimate Creator, Source of Gravitational Wave is God”
    Whatever you call it, God is no living God of any religion. Yes, when I call it “Mother Nature” is the God generated from all Natural forces and Gravitational force is the nucleus of all forces or we can presume that Gravitation is the ultimate guiding principle of this Mother Nature we call it non-living God unlike living personal God of religions. I can not believe any personal God would do so much misery created for its creation. Hence, only non-living natural God can explain everything in the Universe. When we think of any living personal God, things do not ad up!”
    I have also discovered the mathematical expression for emotional quotient (E.Q.) and for spiritual quotient (S.Q.).

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