Truth of Indra Ahalya and Gautama |
देवों का राजा इन्द्र देवलोक में देहधारी देव था। वह गोतम ऋषि की स्त्री अहल्या के साथ जारकर्म किया करता था। एक दिन जब उन दोनों को गोतम ऋषि ने देख लिया, तब इस प्रकार शाप दिया की हे इन्द्र ! तू हजार भगवाला हो जा । तथा अहल्या को शाप दिया की तू पाषाणरूप हो जा। परन्तु जब उन्होंने गोतम ऋषि की प्रार्थना की कि हमारे शाप को मोक्षरण कैसे व कब मिलेगा, तब इन्द्र से तो कहा कि तुम्हारे हजार भग के स्थान में हजार नेत्र हो जायें, और अहल्या को वचन दिया कि जिस समय रामचन्द्र अवतार लेकर तेरे पर अपना चरण लगाएंगे, उस समय तू फिर अपने स्वरुप में आ जाओगी।
दोस्तों उपरोक्त कथा और सत्य कथा में कुछ कुछ उतना ही अंतर है जितना :
आज दुकान बंद रखा गया है
आज दुकान बंदर खा गया है
में है ।
इन्द्रा गच्छेति । .. गौरावस्कन्दिन्नहल्यायै जारेति । तधान्येवास्य चरणानि तैरेवैनमेंत्प्रमोदयिषति ।।
शत ० का ० ३ । अ ० ३ । ब्रा ० ४ । कं ० १ ८
रेतः सोम ।। शत ० का ० ३ । अ ० ३ । ब्रा ० २ । कं ० १
रात्रिरादित्यस्यादित्योददयेर्धीयते निरू ० अ ० १२ । खं० १ १
सुर्य्यरश्पिचन्द्रमा गन्धर्वः।। इत्यपि निगमो भवति । सोअपि गौरुच्यते।। निरू ० अ ० २ । खं० ६
जार आ भगः जार इव भगम्।। आदित्योअत्र जार उच्यते, रात्रेर्जरयिता।। निरू ० अ ० ३ । खं० १ ६
(इन्द्रागच्छेती०) अर्थात उनमें इस रीति से है कि सूर्य का नाम इन्द्र ,रात्रि का नाम अहल्या तथा चन्द्रमा का गोतम है। यहाँ रात्रि और चन्द्रमा का स्त्री-पुरुष के समान रूपकालंकार है। चन्द्रमा अपनी स्त्री रात्रि के साथ सब प्राणियों को आनन्द कराता है और उस रात्रि का जार आदित्य है। अर्थात जिसके उदय होने से रात्रि अन्तर्धान हो जाती है। और जार अर्थात यह सूर्य ही रात्रि के वर्तमान रूप श्रंगार को बिगाड़ने वाला है। इसीलिए यह स्त्रीपुरुष का रूपकालंकार बांधा है, कि जिस प्रकार स्त्रीपुरुष मिलकर रहते हैं, वैसे ही चन्द्रमा और रात्रि भी साथ-२ रहते हैं।
चन्द्रमा का नाम गोतम इसलिए है कि वह अत्यन्त वेग से चलता है। और रात्रि को अहल्या इसलिये कहते हैं कि उसमें दिन लय हो जाता है । तथा सूर्य रात्रि को निवृत्त कर देता है, इसलिये वह उसका जार कहाता है।
इस उत्तम रूपकालंकार को अल्पबुद्धि पुरुषों ने बिगाड़ के सब मनुष्य में हानिकारक मिथ्या सन्देश फैलाया है। इसलिये सब सज्जन लोग पुराणोक्त मिथ्या कथाओं का मूल से ही त्याग कर दें।
--: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , महर्षि दयानंद सरस्वती
तर्क शास्त्र से किसी भी प्रकार से यह संभव ही नहीं हैं की मानव शरीर पहले पत्थर बन जाये और फिर चरण छूने से वापिस शरीर रूप में आ जाये।
दूसरा वाल्मीकि रामायण में अहिल्या का वन में गौतम ऋषि के साथ तप करने का वर्णन हैं कहीं भी वाल्मीकि मुनि ने पत्थर वाली कथा का वर्णन नहीं किया हैं। वाल्मीकि रामायण की रचना के बहुत बाद की रचना तुलसीदास रचित रामचरितमानस में इसका वर्णन हैं।
वाल्मीकि रामायण 49/19 में लिखा हैं की राम और लक्ष्मण ने अहिल्या के पैर छुए। यही नहीं राम और लक्ष्मण को अहिल्या ने अतिथि रूप में स्वीकार किया और पाद्य तथा अधर्य से उनका स्वागत किया। यदि अहिल्या का चरित्र सदिग्ध होता तो क्या राम और लक्ष्मण उनका आतिथ्य स्वीकार करते?
विश्वामित्र ऋषि से तपोनिष्ठ अहिल्या का वर्णन सुनकर जब राम और लक्ष्मण ने गौतम मुनि के आश्रम में प्रवेश किया तब उन्होंने अहिल्या को जिस रूप में वर्णन किया हैं उसका वर्णन वाल्मीकि ऋषि ने बाल कांड 49/15-17 में इस प्रकार किया हैं
स तुषार आवृताम् स अभ्राम् पूर्ण चन्द्र प्रभाम् इव |
मध्ये अंभसो दुराधर्षाम् दीप्ताम् सूर्य प्रभाम् इव || ४९-१५
सस् हि गौतम वाक्येन दुर्निरीक्ष्या बभूव ह |
त्रयाणाम् अपि लोकानाम् यावत् रामस्य दर्शनम् |४९-१६
तप से देदिप्तमान रूप वाली, बादलों से मुक्त पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा के समान तथा प्रदीप्त अग्नि शिखा और सूर्य से तेज के समान अहिल्या तपस्या में लीन थी।
सत्य यह हैं की देवी अहिल्या महान तपस्वी थी जिनके तप की महिमा को सुनकर राम और लक्ष्मण उनके दर्शन करने गए थे। विश्वामित्र जैसे ऋषि राम और लक्ष्मण को शिक्षा देने के लिए और शत्रुयों का संहार करने के लिए वन जैसे कठिन प्रदेश में लाये थे।
किसी सामान्य महिला के दर्शन कराने हेतु नहीं लाये थे।
कालांतर में कुछ अज्ञानी लोगो ने ब्राह्मण ग्रंथों में “अहल्यायैजार” शब्द के रहस्य को न समझ कर इन्द्र द्वारा अहिल्या से व्यभिचार की कथा गढ़ ली। प्रथम इन्द्र को जिसे हम देवता कहते हैं व्यभिचारी बना दिया। भला जो व्यभिचारी होता हैं वह देवता कहाँ से हुआ?
द्वितीय अहिल्या को गौतम मुनि से शापित करवा कर उस पत्थर का बना दिया जो असंभव हैं।
तीसरे उस शाप से मुक्ति का साधन श्री राम जी के चरणों से उस शिला को छुना बना दिया।
जबकि महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या श्रेष्ठ आचरण वाले थे ।
ये वही महर्षि गौतम है जिन्होंने वैदिक काल में न्यायशास्त्र की रचना की थी ।
->न्याय के प्रवर्तक ऋषि गौतम {Justice Formula by Gautama Maharishi}
मध्यकाल को पतन काल भी कहा जाता हैं क्यूंकि उससे पहले नारी जाति को जहाँ सर्वश्रेष्ठ और पूजा के योग्य समझा जाता था वही मध्यकाल में वही ताड़न की अधिकारी और अधम समझी जाने लगी।
इसी विकृत मानसिकता का परिणाम अहिल्या इन्द्र की कथा का विकृत रूप हैं।
तो क्या इस प्रकार की मुर्खता भरी बाते होने के कारण सब पुराणादि मिथ्या है ?
बिलकुल नही !!! यदि समस्त पुराणादि को मिथ्या माने ने पुराणो में जो विज्ञानं आदि की बाते है वो कहाँ से आई ?
-> पृथ्वी पर प्रजातियां | पुनर्जन्म : पद्म पुराण (Life Forms on Earth & Rebirth : Padma Purana)
->भ्रूणविज्ञान : श्री मदभागवतम् {Embryology in Bhagwatam}
->ॐ, साइमेटिक्स और श्री यन्त्र (Om, Cymatics and Shri Yantra)
->ब्रह्माण्ड की आयु (Universe Age - Vedas|ShriMadBhagwatam)
->सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of relativity)
->महर्षि अगस्त्य का विद्युत्-शास्त्र {Ancient Electricity}
आदि ।
इसके अतिरिक्त जो जो बाते वेदादि विरुद्ध है वे निश्चित रूप से मूर्खों की भ्रमित बुद्धि के प्रलाप अथवा मुगल समय में बलपूर्वक गर्दन पर तलवार रख कर लिखवाएं गये है ॥
सनातन् धर्मं: नमो नमः
TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो ।
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
iska matlab ramcharitramanas galat hai ?
जवाब देंहटाएंahilya vali katha galat hai..
हटाएंRamcharitmanas galat nahi hai iske sath bahut ched chad ki gai hai ur isi ka natija hai ki ane wali pidhi galat galat bato ko sikhti hai... jo ek mityha ke siwa kuch nahi hai
हटाएंValmiki ki ramayan sahi hai uske bad me jitni bhi likhe gaye uske bare me kuch bhi kehna sambhav nahi kyu ki angrejo ne mughlo ne humari sanskriti ko bahut jada dushit kar diya hai
to kya shambuk vadh ki katha bhi galata hai ?
जवाब देंहटाएंBharat ek khoj me bataya gaya ki shambuk ko Ram ne isiliye mara kyuki vo shudra tha
vaise ye book nehru ne likhi hai isiliye nonsense hai
par original me shambuk ke tap karne se ek brahman ka ladka mar jata hai
ye kaise ho sakta hai ???
ha galat hai..
हटाएंyahan dekhen:
http://vaidikdharma.wordpress.com/2013/01/27/राम ने न तो सीता जी को वनवास दिया और न शम्बूक का वध किया/
NIce yaarrrr isi topic pe mujhe doubt tha kai dino se... acha hua tumhare jese gyani ne ise ache se clear kar diya...
जवाब देंहटाएंThanks bhai Jai Siyaram
Jai Siyaram bhai.
हटाएंWese mene shambuk katha apdha nahi hai phir bhi me meditation aur dhyan ke bare me jitna janta hu wo bata deta hu.
जवाब देंहटाएंTap karna means collecting and increasing your Mental energy. And aj ye baat science bhi manta hai ki using our Mind and thought power you can do anything which seems impossible today.
Ek chota sa experiment karna kabhi positive hoke sochna ki mere ko viral fever hai and i gurantee you tumko 2 din me fever ho jaega...
Tap se kisi ko marna to kya puri dunia ko kahatm karna bhi sambhav hai
हाँ मित्र, योग विज्ञानं पर एक बहुत अच्छी फिल्म बनी थी अभी कुछ महीनो पहले ,
हटाएंअवश्य देखें :
http://www.youtube.com/watch?v=aXuTt7c3Jkg
shukriya aapka
जवाब देंहटाएंmene just pura post pada
par is website me writer ek sawal puchna bhul gaya ki lav kush ne ram ka virodh kyu nahi kiya aur jab pucha tha tab ek hi baar me samajh gaye
itne murkh lav kush nahi the
Dear, आपकी बात कुछ समझ में नहीं आई एक तरफ आपने काहा की अहिल्या स्त्री नहीं रात्रि थी "यहाँ रात्रि और चन्द्रमा का स्त्री-पुरुष के समान रूपकालंकार है" दूसरी तरफ आप वाल्मीकि रामयन का नाम लेकर ये कह रहे हैं की राम ने अहिल्या को तपस्या में लीन देखा "सूर्य से तेज के समान अहिल्या तपस्या में लीन थी।" यानि राम जी ने किसी स्त्री को तपस्या मैं नहीं बल्कि रात्रि को तपस्या में देखा। राम चरित मानस को चलो आधुनिक मान लेते हैं पर क्या अपने द्वापर युग मैं महा ऋषि वैद व्यास जी द्वारा लिखी "अध्यात्म रामायण" नहीं पड़ी या फिर आपने स्त्री से पत्थर बनने की टैक्नीक "वाशिष्ठ रामायण" में नहीं पड़ी। मेरे भाई आप अपने शब्द वापिस लीजिये की "इसलिये सब सज्जन लोग पुराणोक्त मिथ्या कथाओं का मूल से ही त्याग कर दें।" क्यों की इस से हमारे 18 पुराण 28 उप पुराण सब मिथ्या हो जाएँगे । यदि गोतम मुनि सूर्य होते तो अहिल्या को श्राप ना दे पाते और अहिल्या को श्राप न मिलता तो वो अपनी पुत्री अंजना को श्राप ना देती और अंजना को श्राप न मिलता तो कुँवारी माँ ना बनती और हनुमान जी पैदा न होते। पेहले अपना अध्यन पूरा कीजिये फिर कुछ लिखिए।
जवाब देंहटाएंमित्र राम जी के समय में अहिल्या नामा स्त्री तो थी परन्तु उसका उपरोक्त अलंकार से कोई सम्बन्ध नही है ।
हटाएंरात्रि को यदि अहिल्या कहते है तो क्या इसका ये मतलब हुआ की किसी स्त्री का नाम अहिल्या नही हो सकता ??
हवा का नाम पवन है तो क्या मेरा नाम ये नही हो सकता है ??
व्यास जी कृष्ण जी के समय (लगभग ३ ० ० ० ई ० पू ० ) में थे और राम जी लगभग ७ ३ ० ० ई ० पू ० ।
व्यास जी ने कोई रामायण नही लिखी !!
18 पुराण 28 उप पुराण पूर्ण मिथ्या नही है किन्तु जो वेद विरुद्ध आचरण लिखा है वो मिथ्या ही है ।
ये कुँवारी माँ वाली थ्योरी पता नही आप कहाँ से लाये है आप ही जाने ।
kya aap k pass kuch aisa proof hai jisase ye saabit h sake
जवाब देंहटाएंमित्र उपरोक्त जो अलंकार है वो शतपथ ब्राह्मण ग्रंथों का है जो रामजी के समय (7323 BC) से भी पहले का है . अर्थात अहिल्या के जन्म से पूर्व का |
हटाएंक्या आपके पास कोई वैज्ञानिक आधार है जिससे किसी स्त्री को शिला या शिला को स्त्री बनाया जा सके?
kya aapke pass koi aisa saboot hai jisase proof ho sake
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