अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

भारत बनाम India

दोस्तों सत्य को अपने निजी स्वार्थ हेतु कुचल डालने वालो की कोई कमी नही है ! ऐसी प्रजाति प्राचीन युगों से सदा समय समय पर अस्तित्व में आती रही है । इस युग मे मैं बात कर रहा हूँ उन दुष्टो की जो हमारी प्रभु की निशानी "राम-सेतु " को तोड़ने पर तुली हुई है क्योंकि इन दुष्टो के पापा अमेरिका ने इनको जोरदार लोभ दिया हुआ है।
ये लोग राम सेतु को तोड़ कर इसका मलबा अमेरिका को बेचना चाहतें है क्योंकि सेतु के आसपास तथा निचे के हिस्सों में काफी मात्रा में युरेनियम उपस्थित है जिससे हजारो सालों तक उचित मात्रा में कम दाम पर बिजली बनाई जा सकती है |
इन लोगो का जब विरोध किया जाता है तो ये कहते है की कोन है राम? ये कब हुए ? अरे सुअरो तुमने जब जब सत्य को झुटलाया है तुम्हारे कान के निचे थाप पड़ा है |

->इन दुष्टो ने एक समय श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका को भी झुटलाया था परन्तु परिणाम क्या निकला ?
 सत्य और ईश्वर पर आस्था रखने वाले लोगो ने इसके संदर्भ में शोध व अध्ययन किये और पूरी की पूरी नगरी समुद्र के निचे पाई गई । इन दुष्टो की शकल तो तब देखने वाली थी जब गोरी चमड़ी वाले इन के पापाओं ने भी इस बात पर मुहर लगाई और कार्बन डेटिंग द्वारा नगरी के अवशेषों के आयु लगभग 12000 वर्ष बताई  |
पूरा लेख यहाँ पढ़े --> मिल गई भगवान श्री कृष्ण की नगरी: द्वारिका (www.vedicbharat.com)

-> इन दुष्टो ने एक समय महाभारत के युद्ध को भी नाकारा, परिणाम क्या रहा? शोध के दोरान कई प्रमाण सामने आये तथा एक गोरी चमड़ी वाले भाईसाब ने इस बात को मुहर लगाई तब इन नादानों ने मानी |
Julius Robert Oppenheimer जिन्हें परमाणु बम का जनक भी कहा जाता है | वैदिक सभ्यता में अत्यधिक रूचि के कारण  इन्होने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के  प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर  1933 में भगवद गीता और महाभारत का पूरा अध्यन किया | और बम बनाया 1945 में । परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता तथा महाभारत से ही मिला इसमें कोई संदेह नहीं |
पूरा लेख यहाँ पढ़े --> प्राचीन भारत में हुए परमाण्विक युद्ध

-> इन दुष्टो ने एक समय देव नदी सरस्वती को भी नकारा था, परिणाम क्या निकला ?
 भारत की 7 प्रमुख नदियाँ मानी जाती है जो इस प्रकार है : गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, शिप्रा, गोदावरी तथा कावेरी । अब तक सरस्वती नदी को छोड़ कर बाकि समस्त नदियाँ हमारे पास थी । सरस्वती नदी का विवरण ऋग्वेद से लेकर पुराणो तक में कई  बार आया है | महाभारत के समय में हुई भोगोलोक उठा पठक  के पश्चात इस नदी ने अपना मार्ग राजस्थान की भूमि के निचे बना लिया था और राजस्थान के जैसलमेर में इस नदी का रेतीले धोरो को चिर कर पुनः प्राकट्य हुआ है |
पूरा लेख यहाँ पढ़े --> पुनः प्रकट हुई सरस्वती नदी

-> इन दुष्टो ने एक समय महर्षि भरद्वाज रचित विमान शास्त्र को भी कोई हंसी मजाक की किताब माना, परिणाम क्या निकला ?
जब गोरी चमड़ी वालो ने इसका अध्ययन किया तो वो भी चक्कर खा कर गिर पड़े | और अध्ययन मे पाया की इसमें न केवल इसमें विमान निर्माण अपितु अनेक प्रकार के विमानों तथा उनसे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख है जो आधुनिक विमान पद्धति से मेल खाता है और हर प्रकार से इससे इक्कीस ही है कम नही है |
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला। 
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला। 
3. धूमयान - गैस से चलने वाला। 
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला। 
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला। 
6. तारामुख - चुम्बक से चलने वाला। 
7. मणिवाह - चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला। 
8. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला। 
पूरा लेख यहाँ पढ़े --> महर्षि भारद्वाज रचित ‘विमान शास्त्र‘
यह भी पढ़े --> पहला हवाईजहाज भारत में बना

> इन दुष्टो ने हमेशा से भारतीय महान संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया है, परन्तु परिणाम क्या निकला ? आज पूरा विश्व भारतीय योग विद्या का दीवाना है योग पर विदेशो में कई फिल्मे बन चुकि है (यहाँ देखे) , सेंकडो योग सेण्टर खुल चुके है, हजारो वेबसाईटे  बन चुकी है |  यहाँ देखे : http://www.innerworldsmovie.com/
http://www.breathetrue.com/
http://www.indiegogo.com/projects/township-yogi
ये बेचारे योग सिखाने का दावा करते है जो खुद कुछ सेकड़ों वर्ष पूर्व भारत के संपर्क में आने तक योग की abcd भी नही जानते थे  परन्तु भोग की a to z जानते थे |
संस्कृत सभी भाषाओ के माँ है  इसका लोहा मान कर अब नासा कंप्यूटर की भाषा संस्कृत को बनाने की सोच रही है और अन्तरिक्ष में ॐ ध्वनी का संचार करने का विचार कर रही है  |
यहाँ देखे : 
http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl
http://post.jagran.com/NASA-to-use-Sanskrit-as-computer-language-1332758613
http://www.ibtl.in/news/international/1815/nasa-to-echo-sanskrit-in-space-website-confirms-its-mission-sanskrit/

नीच अंग्रेजों के दोगले स्वभाव का एक और उदाहरण देखो दोस्तों:
ये  एक तरफ तो स्वयं संस्कृत को सहर्ष स्वीकारते है तथा अपने नवयुवकों को संस्कृत में पारंगत होने का पाठ पढाते है, कई किताबे भी लिख चुके है (यहाँ देखेंऔर दूसरी तरफ भारत में चल रही अपनी स्कूल (क्रिश्चन मिशनरी) में संस्कृत पर प्रतिबंध लगाते है । ये बेटे संस्कृत का लाभ अकेले अकेले उठाना चाहते है |


मेरा सवाल अपने भारतीय भाइयों से है वो इन अंग्रेजों की  स्कूलो में दाखिला लेते ही क्यूँ है ?
ऐसी स्कूलो का ही दुष्परिणाम है की यहाँ बाल्यावस्था में घुसते तो भारतीय है परन्तु 5-6 वर्षों के बाद निकलते विदेशी है । फिर ये अजीब अजीब हरकतें करते है जैसे yo-yo की आवाज़ निकालना, पेंट निचे बांधना आदि। मेरे ख्याल में ये कोई मानसिक बीमारी है ।
मेने कई ऐसे लोग भी देखे है जो कहते है की हमें चन्द्रगुप्त मोर्य "सीरियल" आने से पूर्व तक हमें यह पता भी नही था की हमारे देश में भी चाणक्य जैसे रियल हीरो हुए। कितने शर्म की बात है जबकि हमारे देश में सदा रियल हीरो ही पैदा हुए है | मुझे तो चन्द्रगुप्त मोर्य के अचानक बंद होने का संदेह भी इन दुष्टो पर ही जाता है क्योंकि ये सिरिअल भारत की एकता व अखंडता की बात करता था |

> इन दुष्टो ने अब श्री राम-सेतु को निशाना बनाया है | कुत्ते की पूंछ टेढ़ी ही रहती है ये इसका जीवित उदाहरण है | रामायण के साथ साथ राम सेतु का वर्णन स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण तथा ब्रह्म पुराण में भी मिलता है | तथा इसके अतिरिक्त कालीदास की रचना  रघुवंशम्  में भी इसका उल्लेख है |
श्री वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के 22 वें अध्याय में लिखा है कि विश्वकर्मा के पुत्र वानर श्रेष्ठ नल के नेतृत्व में वानरों ने मात्र पांच दिन में सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौडा पुल समुद्र के ऊपर बनाकर रामजी की सेना के लंका में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। यह अपने आप में एक विश्व-कीर्तिमान है। आज के इस आधुनिक युग में नवीनतम तकनीक के द्वारा भी इतने कम समय में यह कारनामा कर दिखाना संभव नहीं लगता। 
श्रीराम के जीवन से जुडी ये फिल्म  तथा वेबसाईट अवश्य देखें। दिल्ली निवासी श्री राम अवतार ने 31 वर्षो की अपनी कठिन तपस्या द्वारा रामायण व पुराणो में वर्णित 290 स्थानों की खोज की है जहाँ श्रीराम सीताजी तथा भाई लक्ष्मण के साथ वनवास काल में गये अथवा रहे ।
http://www.shriramvanyatra.com/index_2.aspx

 
स्कन्द पुराण के ब्रह्मखण्ड में इस सेतु के माहात्म्य का बडे विस्तार से वर्णन किया गया है। नैमिषारण्य में ऋषियों के द्वारा जीवों की मुक्ति का सुगम उपाय पूछने पर सूत जी बोले - 
दृष्टमात्रेरामसेतौमुक्ति: संसार-सागरात्। हरे हरौचभक्ति: स्यात्तथापुण्यसमृद्धिता। 
रामसेतु के दर्शन मात्र से संसार-सागर से मुक्ति मिल जाती है। भगवान विष्णु और शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्धि होती है। इसलिए यह सेतु सबके लिए परम पूज्य है।

स्कन्द पुराण के सेतु - माहात्म्य में धनुष्कोटितीर्थ का उल्लेख भी है - 
दक्षिणाम्बुनिधौपुण्येरामसेतौविमुक्तिदे। धनुष्कोटिरितिख्यातंतीर्थमस्तिविमुक्तिदम्॥ 
( दक्षिण-समुद्र के तट पर जहां परम पवित्र रामसेतु है, वहीं धनुष्कोटि नाम से विख्यात एक मुक्तिदायक तीर्थ है। ) इसके विषय में यह कथा है - भगवान श्रीराम जब लंका पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त भगवती सीता के साथ वापस लौटने लगे तब लंकापति विभीषण ने प्रार्थना की - प्रभो ! आपके द्वारा बनवाया गया यह सेतु बना रहा तो भविष्य में इस मार्ग से भारत के बलाभिमानी राजा मेरी लंका पर आक्रमण करेंगे। लंका-नरेश विभीषण के अनुरोध पर श्रीरामचन्द्रजी ने अपने धनुष की कोटि (नोक) से सेतु को एक स्थान से तोडकर उस भाग को समुद्र में डुबो दिया। इससे उस स्थान का नाम धनुष्कोटि हो गया।

यह पुल इतना मज़बूत था कि रामचरितमानस के लंका कांड के शुरुआत में ही वर्णन आता है कि - बॉधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन थी और चौड़ाई दस योजन थी। 

दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्। ददृशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं सुदुष्करम्।। (6/22/76),
सेतु बनाने में हाई टेक्नालाजी प्रयोग हुई थी इसके वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं, 
जैसे - पर्वतांर्श्च समुत्पाट्य यन्त्नै: परिवहन्ति च। 
(कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा - समुद्रतट पर ले आए)। 
इसी प्रकार एक अन्य जगह उदाहरण मिलता है -
 सूत्राण्यन्ये प्रगृहृन्ति हृयतं शतयोजनम्। (6/22/62)
 (कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से - एक सीध में हो रहा था।
 














महान आचार्य चाणक्य ने एक बार कहा था की जब कभी कोई विदेशी व्यक्ति तुम्हारे देश अथवा राज्य पर शासन करने लगे तो सचेत हो जाओ अन्यथा उन देश की सभ्यता का पतन निश्चित है । 
मूर्खो समय रहते कुर्सी की इस ओछी राजनीति से बाज आ जाओ | 

दोस्तों मेरा प्रत्येक लेख में अधिक से अधिक विडियो या लिंक द्वारा प्रमाण देने का कारण  यही है कि  यदि कोई बुद्धिजीवी स्वयं को अधिक स्मार्ट समझता हो तो वो भी इन प्रमाणों को देख कर अपनी खुजली मिटा सके  ।
 

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के पिताश्री: महर्षि पाणिनि | Ancient Programming By Panini : 500BC

मेरे सनातनी भारतीय भाइयों महर्षि पाणिनि के बारे में  बताने  पूर्व में आज की  कंप्यूटर प्रोग्रामिंग   किस प्रकार कार्य करती है इसके बारे में कुछ जरा सा बताना  चाहूँगा चूँकि में भी एक कंप्यूटर इंजिनियर   हूँ । आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग  भाषाएँ जैसे c, c++, java आदि में प्रोग्रामिंग हाई लेवल लैंग्वेज (high level language) में लिखे जाते है जो अंग्रेजी के सामान ही होती है | इसे कंप्यूटर की गणना सम्बन्धी व्याख्या (theory of computation) जिसमे प्रोग्रामिंग के syntex आदि का वर्णन होता है, के  द्वारा लो लेवल लैंग्वेज (low level language) जो विशेष प्रकार का कोड होता है जिसे mnemonic कहा जाता है जैसे जोड़ के लिए ADD, गुना के लिए MUL आदि में परिवर्तित किये जाते है | तथा इस प्रकार प्राप्त कोड को प्रोसेसर द्वारा द्विआधारी भाषा (binary language: 0101) में परिवर्तित कर क्रियान्वित किया जाता है |
इस प्रकार पूरा कंप्यूटर जगत theory of computation पर निर्भर करता है |
इसी computation पर महर्षि पाणिनि (लगभग  500 ई पू)  ने संस्कृत व्याकरण द्वारा एक पूरा ग्रन्थ रच डाला |



महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े  व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। कई इतिहासकार इन्हें महर्षि पिंगल का बड़ा भाई मानते है | इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। 
इनके द्वारा भाषा के सन्दर्भ में किये गये महत्त्व पूर्ण कार्य 19वी सदी में प्रकाश में आने लगे |
 19वी सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी Franz Bopp (14 सितम्बर 1791 – 23 अक्टूबर 1867) ने श्री पाणिनि के कार्यो पर गौर फ़रमाया । उन्हें पाणिनि के लिखे हुए ग्रंथों में तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के नए मार्ग मिले  |  www.vedicbharat.com/
इसके बाद कई संस्कृत के विदेशी चहेतों  ने नके कार्यो में रूचि दिखाई और गहन अध्ययन किया जैसे: Ferdinand de Saussure (1857-1913), Leonard Bloomfield (1887 – 1949) तथा एक हाल ही के भाषा विज्ञानी Frits Staal (1930 – 2012).

तथा इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए 19वि सदी के एक जर्मन विज्ञानी Friedrich Ludwig Gottlob Frege      (8 नवम्बर 1848 – 26 जुलाई 1925 ) ने इस क्षेत्र में कई कार्य किये और इन्हें  आधुनिक जगत का प्रथम लॉजिक विज्ञानी कहा जाने लगा |

जबकि इनके जन्म से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही श्री पाणिनि इन सब पर एक पूरा ग्रन्थ सीना ठोक के लिख चुके थे |
अपनी ग्रामर की रचना के दोरान पाणिनि ने auxiliary symbols (सहायक प्रतीक) प्रयोग में लिए जिसकी सहायता से कई प्रत्ययों का निर्माण किया और फलस्वरूप ये ग्रामर को और सुद्रढ़ बनाने में सहायक हुए |
 इसी तकनीक का प्रयोग आधुनिक विज्ञानी Emil Post (फरवरी 11, 1897 – अप्रैल 21, 1954) ने किया और आज की समस्त  computer programming languages की नीव रखी |
Iowa State University, अमेरिका ने पाणिनि के नाम पर एक प्रोग्रामिंग भाषा का निर्माण भी किया है जिसका  नाम ही पाणिनि प्रोग्रामिंग लैंग्वेज रखा है: यहाँ देखे |

एक शताब्दी से भी पहले प्रिसद्ध जर्मन भारतिवद मैक्स मूलर (१८२३-१९००) ने अपने साइंस आफ थाट में कहा -

"मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके । इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2,50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है । 

अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके ।"



The M L B D News letter ( A monthly of indological bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को first softwear man without hardwear घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था " Sanskrit software for future hardware "
जिसमे बताया गया " प्राकृतिक भाषाओं (
प्राकृतिक भाषा केवल संस्कृत ही है बाकि सब की सब मानव रचित है  ) को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, पर आज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।

व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं।

NASA के वैज्ञानिक Mr.Rick Briggs.ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (artificial intelligence) और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत मुस्किल कार्य था जब तक कि Mr.Rick Briggs. द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी।
उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों डॉलर खर्च किये गये।

महर्षि पाणिनि शिव जी बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र से ज्ञात हुआ जब शिव जी संध्या तांडव के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से उन्होंने संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी।

तथा इन्होने महादेव की कई स्तुतियों की भी रचना की |

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥  -माहेश्वर सूत्र
 
पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार:

"पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है" (लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी)।
"पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं" (कोल ब्रुक)।
"संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है... यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है" (सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर)।
"पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा"। (प्रो. मोनियर विलियम्स)


 संस्कृत का डंका :
संस्कृत की महत्ता अब लोगो के समझ में आने लगी है

जब से नासा को अपने परीक्षणों द्वारा ज्ञात हुआ की अनंत अन्तरिक्ष में कम्पायमान ध्वनी है 
और यह भी सिद्ध हो चूका है की ॐ प्रणव (ध्वनी ) से ही सृस्ठी की उत्पत्ति हुई है । यहाँ देखें :
 ॐकार, बिग-बेंग, शिवलिंग और स्रष्टि की उत्त्पति
 तब से नासा की खपड़ी घूम गई है |
अब नासा कंप्यूटर की भाषा संस्कृत को बनाने की सोच रही है और अन्तरिक्ष में ॐ ध्वनी का संचार करने का विचार कर रही है  |
यहाँ देखे :
http://www.ibtl.in/news/international/1815/nasa-to-echo-sanskrit-in-space-website-confirms-its-mission-sanskrit/
http://post.jagran.com/NASA-to-use-Sanskrit-as-computer-language-1332758613
http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl

 अरे मूर्खों सफ़ेद चमड़ी वालो, इस सृस्ठी की उत्पत्ति  ॐ प्रणव (शिव नाद) से हुई है और इसी से पञ्च महाभूतों (जल,पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश ) की भी उत्पति हुई है |
  ये तो हमारे ग्रंथो, वेदों में आदि काल  से लिखा हुआ है हमसे ही पुछ  लेते इतने पैसे व्यर्थ में ही प्रयोगों में खर्च किये | :D

 
http://en.wikipedia.org/wiki/P%C4%81%E1%B9%87ini
http://www.indiadivine.org/showthread.php/861085-The-first-softweare-man-Maharshi-PANINI

इनके छोटे भाई महर्षि पिंगल के बारे में पढ़े:

द्विआधारीय गणित (Binary Number System) के जनक : महर्षि पिंगल