अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त
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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

गति के नियम : महर्षि कणाद | Laws of Motion by Maharishi Kanada : 600BC

जी हाँ दोस्तों ,
शीर्षक बिलकुल सही है इस संसार को गति के नियम महर्षि कणाद ने दिए है ना की कोई न्यूटन फ्यूटन ने ।


वैशेषिक दर्शन (Vaisheshika Sutra) के रचनाकार महर्षि कणाद लगभग २ या ६ ईसा पूर्व प्रभास क्षेत्र द्वारका के निकट गुजरात में जन्मे ।
दुनिया को पहला परमाणु का ज्ञान देने वाले भी ऋषि कणाद ही है । इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा ।
 यहाँ देखें :- http://www.vedicbharat.com/2013/02/blog-post_4711.html

वैशेषिक दर्शन  में इन्होने गति के लिए कर्म शब्द प्रयुक्त किया है । इसके पांच प्रकार हैं यथा :

उत्क्षेपण (upward motion)
अवक्षेपण (downward motion)
आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
प्रसारण (Shearing motion)
गमन (General Type of motion)

विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है।

(१) नोदन के कारण-लगातार दबाव
(२) प्रयत्न के कारण- जैसे हाथ हिलाना
(३) गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है
(४) द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से

Dr. N.G. Dongre अपनी पुस्तक 'Physics in Ancient India'  में वैशेषिक सूत्रों  के ईसा की प्रथम शताब्दी में लिखे गए  प्रशस्तपाद भाष्य में उल्लिखित वेग संस्कार और न्यूटन द्वारा 1675 में खोजे गए गति के नियमों की तुलना की है ।

महर्षि प्रशस्तपाद लिखते हैं
‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियतदिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद्‌ द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित्‌ कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते।‘

 अर्थात्‌ वेग या मोशन पांचों द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।

उपर्युक्त प्रशस्तिपाद के भाष्य को तीन भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति सम्बंधी नियमों से इसकी समानता ध्यान आती है।

(१) वेग: निमित्तविशेषात्‌ कर्मणो जायते

The change of motion is due to impressed force (Principia)

(२) वेग निमित्तापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियत्दिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु

The change of motion is proportional‌ to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which‌ the force is impressed (Principia)

(३) वेग: संयोगविशेषाविरोधी

To every‌ action there is always an equal‌ and opposite reaction (Principia)


वैशेषिक सूत्र में गति के साथ साथ ब्रह्माण्ड , समय तथा अणु /परमाणु  का ज्ञान भी है जिसके  अंग्रेज भी बहुत दीवाने है देखिये , ये निम्न एक पीडीऍफ़ फाइल दे रहा हूँ ये मुझे अमेरिका के एक कॉलेज  की  साईट पर मिली

Division of Electrical & Computer Engineering, School of Electrical Engineering and Computer Science
3101 P. F. Taylor Hall • Louisiana State University • Baton Rouge, LA 70803, USA

Space, Time and Anu (Atom) in Vaisheshika -> http://www.ece.lsu.edu/kak/roopa51.pdf

 चाहे तो http://www.ece.lsu.edu/ में जाएँ और सर्च बॉक्स में kanad  लिखें

अंग्रेज  हमारी चीजें पढ़ कर हमें पढ़ा रहे है वो भी अपने नाम से , कैसे दिन आ गये !!
दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में आर्यों की ऐसी स्थति पर बड़ा दुःख व्यक्त किया है
http://phys.org/news106238636.html

वैशेषिक सूत्र आप पढना चाहें तो यहाँ से डाउनलोड कर सकते है :--
http://www.jainlibrary.org/elib_master/jlib/002501_book_hindi_21/Vaisheshika_Sutra_002759.pdf
http://darshanapress.com/The%20Vaisheshika%20Darshana.pdf



                                                            सनातन्  धर्मं: नमो नमः



TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्


रविवार, 3 फ़रवरी 2013

परमाणुशास्त्र के जनक आचार्य कणाद | Father of Atom Maharishi Kanada : 600BC

महान परमाणुशास्त्री आचार्य कणाद 6 सदी ईसापूर्व  गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट) में जन्मे थे।
इन्होने वैशेषिक दर्शनशास्त्र की रचना की |  दर्शनशास्त्र (Philosophy) वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है|
माना जाता है कि परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार सर्वप्रथम इन्होंने किया था  इसलिए इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा |
It was Sage Kanada who originated the idea that anu (atom) was an indestructible particle of matter

महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था ‘यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:‘ जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्‌ भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं।

परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं
 ‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय‘
अर्थात्‌ प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।
 इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्‌, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं।

ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं का प्रतिपादन किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से डाल्टन (6 सितम्बर 1766 – 27 जुलाई 1844)  की संकल्पना मेल खाती है। इस प्रकार कणाद ने जॉन डाल्टन से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन कर दिया था |
कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं बल्कि ऐसी इकाई को ‘परमाणु‘ नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु स्वतंत्र नहीं रह सकते।
 कणाद आगे यह भी कहते हैं कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक‘ का निर्माण कर सकते हैं। यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मालिक्यूल‘ लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। यहां निश्चित रूप से कणाद रासायनिक बंधता की ओर इंगित कर रहे हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन आफ मैटर) की भी बात कही गई है। ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं।
ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने आज से हजारों वर्ष पूर्व अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था।
 कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक स्थिति ऐसी आएगी जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके पुराने गुणों का लोप हो जाएगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियां हैं- एक आणविक और दूसरी महत्‌। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्‌ यानी विशाल व्रह्माण्ड। दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है।
अत: कणाद कहते हैं-
 ‘धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम"  :- वैशेषिकo दo-४
अर्थात्‌ धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।
अधिक जानकारी के लिए देखे:
http://hi.wikipedia.org/wiki/वैशेषिक
https://sites.google.com/site/ekatmatastotra/stotra/scientists/kanaad