अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त
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शनिवार, 16 नवंबर 2013

मनुस्मृति :12220 वर्ष से अधिक प्राचीन है | ManuSmriti : Atleast 12220 Years Old Law Book


इस लेख का मंतव्य यह जानना है कि वेदों के पश्चात सर्वमान्य महर्षि मनु द्वारा रचित ग्रन्थ मनुस्मृति की आयु क्या है अर्थात यह लगभग कितना पुराना है ?

यह सिद्धांत अत्यंत सहज तर्क पर कार्य करेगा जैसे की कोई व्यक्ति पिता बनने से पूर्व अपने पुत्र वा पुत्री के बारे में नही जान सकता किन्तु पुत्र अपने पिता के बारे में सदैव जनता है ।

अतः इस लेख में हम पर्याप्त तर्कों व् प्रमाणों से सिद्ध करेंगे की मनु महाराज की पुस्तक मनुस्मृति महाभारत काल तथा रामायण काल से भी अधिक प्राचीन है अर्थात कम से कम 12220 वर्ष पूर्व तक विधमान थी । यहाँ हमने कम से कम 12220 वर्ष  पूर्व लिखा है अतः ये उससे भी अधिक प्राचीन है किन्तु निश्चित समय बता पाना अभी के लिए सम्भव नही ।

महाभारत काल - 

सभी को विदित है की महाभारत का समय लगभग 3000  ईसा पूर्व का था अर्थात आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व । यदि प्रमाण चाहे तो यहाँ जाएँ वैज्ञानिक पद्धति दवरा विश्लेषण किया गया है -
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/xx

महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक - 

महर्षि वेदव्यास (कृष्णद्वेपायन ) रचित महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में महाभारत वा व्यास जी का नाम तक नही ।

महाभारत में मनु महाराज की प्रतिष्ठा - 
मनुनाSभिहितम् शास्त्रं यच्चापि कुरुनन्दन ! महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७  - श ० ३ ५ 
तैरेवमुक्तोंभगवान् मनु: स्वयम्भूवोSब्रवीत् । महाभारत शांतिपर्व , अ० ३ ६   - श ० ५ 
एष दयविधि : पार्थ ! पूर्वमुक्त : स्वयम्भूवा । महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७  - श ० ५ ८ 
सर्वकर्मस्वहिंसा हि धर्मात्मा मनुरब्रवीत् ।  महाभारत शांतिपर्व , मोक्षधर्म आदि । 

अतः सिद्ध होता है कि मनु महाभारत के समय उपस्थित थी तभी महाभारत रचयिता ने स्वयं राजसी मनु के कथनो को प्रमाण स्वरुप लिखा है ।

अब प्रतिवादी तर्क कर सकता है कि मनु महाभारत में थी ये तो स्पष्ट हो गया परन्तु श्लोकबद्ध मनु उस समय उपलब्ध थी वा नही ? ये स्पष्ट नही हुआ ।

अतः अब ये देखें -

अद्भ्योSग्निब्रार्हत: क्षत्रमश्मनो लोहमुथितं । 
तेषाम सर्वत्रगं तेजः स्वासु योनिशु शाम्यति ।। - मनु अ०  ९ - ३ २ १ 

ठीक यही मनु का श्लोक महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६    - श २ ४ 
में आया है और महाभारत के इस श्लोक से ठीक पूर्व २ ३ वें श्लोक में आया है -
"मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना"
अर्थात हे राजेंद्र ! मनु नाम महात्मा ने इन श्लोकों को कहा है !

इसी प्रकार मनु के जो जो श्लोक ज्यों के त्यों महाभारत में है ;
मैं यहाँ अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ

मनु ० १ १ /७ - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ५
मनु ० १ १ /१२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ९
मनु ० १ १ /१८ ०   - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ३ ७
मनु ० ६  /४५    - महा० शांति अ ० २४५  - श ० १५
मनु ० २  /१२०     - महा०अनु ० अ ०१०४ - श ० ६४

अब वो श्लोक लिखते है जो मनु के है परन्तु कुछ परिवर्तन के साथ आयें है -

यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
यश्च विप्रोSनधियान  स्त्रयते नाम बिभ्रति । ।  - मनु २ /१५७ 

यथा दारुमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
ब्राह्मणश्चानधियानस्त्रयते नाम बिभ्रति । ।  -महा  शांति ३६/४७ 

अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ जो  कुछ परिवर्तन के साथ आयें है -

मनु ० १ १ /४ - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ४
मनु ० १ १ /१२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ७
मनु ० १ १ /३७  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० २ २
मनु ० ८  /३७२  - महा० शांति अ ० १६५ - श ० ६३
मनु ० २  /२३१  - महा० शांति अ ० १०८ - श ० ७
मनु ० ९  /३  - महा० अनु अ ० ४६ - श ० १४
मनु ० ३ /५५   - महा० अनु अ ० ४६ - श ० ३

लगभग मनु के  ५ ० ऐसे श्लोक है जो ज्यों के त्यों वा कुछ परिवर्तन के साथ महाभारत में आये  है ।

इतने प्रमाणो के रहते कोण कह सकता है कि मनु महाभारत समय में श्लोकबद्ध अवस्था में न थी ?

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 5000 वर्ष तो पुरानी है ही !!

रामायण काल - 
रामायण काल का समय लगभग 7300  ईसा पूर्व का माना जाता है अर्थात आज से लगभग 9300 वर्ष पूर्व । यदि प्रमाण चाहे तो यहाँ जाएँ वैज्ञानिक पद्धति दवरा विश्लेषण किया गया है -
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/ram
http://www.bookganga.com/eBooks/Books/Details/5484187422894534051


वाल्मीकि रामायण में मनुस्मृति के श्लोक - 

महर्षि वाल्मीकि  रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही ।

वाल्मीकि रामायण में मनु महाराज की प्रतिष्ठा - 

किष्किन्धा काण्ड में जब श्री राम अत्याचारी बाली को घायल कर उसके आक्षेपों के उत्तर में अन्यान्य कथनो के साथ साथ यह भी कहते है कि तूने अपने छोटे भाई सुग्रीव कि स्त्री को बलात हरण कर और उसे अपनी स्त्री बना अनुजभार्याभिमर्श का दोषी बन चूका है , जिसके लिए (धर्मशास्त्र ) में दंड कि आज्ञा है ।
इस पृथिवी के महाराज भरत है (अतः तू भी उनकी प्रजा है ) ; मैं उनकी आज्ञापालन करता हुआ विचरता हूँ फिर में तुझे यथोचित दंड कैसे ना देता ? जैसे -

श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्र वत्सलौ ||
गृहीतौ धर्म कुशलैः तथा तत् चरितम् मयाअ || वाल्मीकि ४-१८-३०

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

उपरोक्त श्लोक ३० में मनु का नाम आया है और श्लोक ३१ , ३२ भी मनु महाराज के ही है !
उपरोक्त श्लोक किंचित पाठभेद (परन्तु जिससे अर्थ में कुछ भी भेद नही आया ) मनु अध्याय ८ के है ! जिनकी संख्या कुल्लूकभट्ट कि टिकावली में ३१८ व् ३१९ है -

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

राजभिः धूर्त दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || मनु  ८ / ३१८

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

शसनाद्वा  अपि मोक्षाद्वा स्तेनः स्तेयाद विमुच्यते |
अशासित्वा तू तं राजा स्तेनस्याप्नोति किल्बिषम् ॥ मनु ८/३१६

अतः यह सिद्ध हुआ कि श्लोकबद्ध मनु रामायण के पूर्व भी विधमान थी । यदि कोई कहे ये क्यों न माना
जाये कि उपरोक्त दोनो श्लोक वाल्मीकि से मनु में आयें हो ?
इसका उत्तर यह है कि महर्षि वाल्मीकि  रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही और रामायण में स्पष्टतः मनु के श्लोकों (मनुना गीतौ श्लोकौ) कि प्रशंसा विधमान है ठीक उसी प्रकार जैसे महाभारत में थी "मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना" - महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६ - श २ ३ 

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 9000 वर्ष तो पुरानी है ही !! 

किन्तु - 
चीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण -
विदेशी प्रमाणो मनुस्मृति के काल तथा श्लोको कि संख्या की जानकारी कराने वाला एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण चीनी मिला है । सन १९३२ में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन कि ऎतिहासिक दीवार को तोडा तो उसमे से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमे चीनी भाषा कि प्राचीन पांडुलिपियां भरी थी । वे हस्तलेख Sir Augustus Fritz George के हाथ लग गये वो उन्हें लंदन ले गया और ब्रिटिश म्युजियम में रख दिया ।
उन हस्तलेखों को Prof. Anthony Graeme ने चीनी विद्वानो से पढ़वाया तो जानकारी मिली -
चीन के राजा Chin-Ize-Wang ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जावे जिससे चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जावे । तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चिनवा दिया । संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया ।
चीनी भाषा के उन हस्तलेखों मेसे एक में लिखा है -
'मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है'
तथा इसमें मनु के श्लोकों कि संख्या 630 भी बताई गई है किन्तु वर्त्तमान में मनु में 2400 के आस पास श्लोक है ।

The wording is such as to pay high tribute to the genius and influence of the Emperor, but it also proves that many hundreds of years ago this Emperor and his people were possessed of knowledge and ideals, laws, and principles which we are apt to think are quite modern. For instance, The manuscript shows that the Chinese emperor and his people had adopted the Laws of Manu which were written in the Vedic language ten thousand years ago. 
http://rosicrucian.50webs.com/hsl/hsl-light-from-china.htm


यह विवरण मोटवानी कि पुस्तक 'मनु धर्मशास्त्र : ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज' पेज २३२ पर भी दिया है ।

इसके अतिरिक्त R.P. Pathak कि Education in the Emerging India में भी पेज १४८ पर है जो लिंक हम आपको दिए देते है -
ये गूगल पुस्तक है -
http://books.google.co.in/books?id=z_OCjp-T2vIC&pg=PA148&lpg=PA148&dq=Chin-Ize-Wang&source=bl&ots=l2ZvnPXZ9z&sig=F9jLXhHQtOm9-jwGTXjkz9KBzQw&hl=en&sa=X&ei=ZcOGUrPZI46BrgepiIGQCQ&ved=0CDMQ6AEwAQ#v=onepage&q=Chin-Ize-Wang&f=false

इस दीवार के बनने का समय लगभग  220–206 BC बताया जाता है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220BC से पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा  220+10000 = 10220 ईसा पूर्व ; आज से 12,220 वर्ष पूर्व कम से कम तक मनुस्मृति उपलब्ध थी ।

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु अब से कम से कम 12220 वर्ष पूर्व से और प्राचीन हो चुकी है !

साथ साथ ही यदि वेदों कि बात करें तो

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम । 
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम् ॥ मनु १/१३ 
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारो ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये उस ब्रह्मा ने अग्नि , वायु, आदित्य और [तु अर्थात ] अंगिरा से ऋग , यजुः , साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया ।

वेदोSखिलो धर्ममूलम् ।  मनु २/६ 
वेद सम्पूर्ण धर्म (कानून Law) का मूल है ।

यः कश्चित्कस्यचिधर्मो मनुना परिकीर्तित : । 
स सर्वोSभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः ॥ मनु २/९ 
मनु ने जिस किसी को जो कुछ भी धर्म कहा है वह सब वेद के अनुकूल ही है , क्योकि वेद सर्वमान्य है ।

नास्तिको वेदनिंदकः ।  मनु २/११ 
वेद कि निंदा करने वाले नास्तिक (अनीश्वरवादी) है

इत्यादि अनेक वचन है जो वेद के सन्दर्भ में मनु में आये है बल्कि यह कहना उचित होगा मनुस्मृति वेद सार ही है । अतः वेद मनु से प्राचीन है इसमें लेशमात्र भी संदेह नही ।

मनु में जहाँ कहीं भी वेद विरुद्ध आचरण दिखे वो प्रक्षेप (मिलावट ) है अतः त्याज्य है ।

मनु को जानने के लिए -
 http://www.scribd.com/fullscreen/54496732?access_key=key-1qbdavqxri27m06vvu9a&allow_share=true&view_mode=scroll


अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा$,मुहम्मद# आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता?
-मैथिलिशरण गुप्त

$- 2013 वर्ष पूर्व
#-1400 वर्ष पूर्व


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 




सोमवार, 15 जुलाई 2013

धर्म क्या है ? | What is Dharma ?

दोस्तों आज दुनिया में धर्म की काफी वैराईटी आ गयी है । आज ईसाईयत , इस्लाम , बोद्ध, जैन तथा हिन्दू ....... आदि सभी को धर्म कहा जा रहा है यही कारण  है की आज लोग धर्म के नाम पर  लड़ रहे है ।
आज हम इसी की पड़ताल करेंगे और साथ में वैदिक विद्वान पं० महेंद्र पाल आर्य जी की भी सहायता लेंगे ।

धर्म का स्पष्ट शब्दों में अर्थ है :
धारण करने योग्य आचरण ।
अर्थात सही और गलत की पहचान ।

इसी कारण जब से धरती पर मनुष्य है तभी से धरती पर धर्म / ज्ञान होना आवश्यक है । अन्यथा धर्म विहीन मनुष्य पशुतुल्य है ।

ज्ञात हो लगभग १००० ईसापूर्व तक धरती पर ये सभी नही थे  केवल एक सनातन धर्म ही था इसका पुख्ता प्रमाण । देखिये :

१. महावीर (लगभग 600 ई० पू०) के जन्म से पूर्व जैनी नामक इस धरती पर कोई नही था । 
उन्होंने दुनिया वालों को जैनी बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर जैनी  कहलाने वाला कौन होता भला? जैन धर्मधर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग जैनी है उनके पूर्वज महावीर के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर स्वयं महावीर किस धर्म में पैदा हुए?

२. राजा शुद्धोधन के पुत्र जब तक सिद्धार्थ (लगभग 600 ई० पू०) थे अर्थात युवक थे तब तक धरती पर बोध/ बौधिस्ट नामक कोई भी नही था । 
उन्होंने दुनिया वालों को बौध्गामी बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर बौधिस्ट कहलाने वाला कौन होता भला?  बोध धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग बोध है उनके पूर्वज बुध के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर गौतम बुद्ध किस धर्म में पैदा हुए?

३. जीसस लगभग 5 ई० पू० हुए । 
उन्होंने दुनिया वालों को ईसाई बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर ईसाई कहलाने वाला कौन होता भला? ईसाई धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग ईसाई है उनके पूर्वज जीसस के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ?
और फिर स्वयं जीसस किस धर्म में पैदा हुए?

४. मुहम्मद लगभग 570 ई० में जन्मे । 
उन्होंने दुनिया वालों को मुसलमान बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर मुसलमान कहलाने वाला कौन होता भला? इस्लाम धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग मुसलमान है उनके पूर्वज मुहम्मद के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर स्वयं मुहम्मद किस धर्म में पैदा हुए?

चलते  चलते ये भी बता दूँ की कई मुस्लमान ये भी कहते है की इस्लाम पहले से है सनातन है । सनातन अर्थात शाश्वत है । 
पर ये क्या ?
قل أني أمر ت أن أكون أول من أسلم ولا تكو نن من أ لمشر كين

“कुल इन्नी उमिर्तु अन अकुना आव्वाला मन असलम-ला ताकुनान्ना मिनल मुश्रेकिन”
-सूरा अन्याम आयत १४
 अर्थात तुम कह दो सबसे पहला मैं मुसलमान हूँ, मै मुशरिको में शामिल नहीं| यानि सबसे पहले मै मुस्लमान हूँ मै शिर्क करने वालों में नहीं हूँ| 

सबसे पहले हज़रत मोहम्मद साहब (570 ई०) ही सबसे पहला मुस्लमान है, यह कुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है । 

इसी प्रकार अनेको उदाहरन मिल जायेंगे । ये सभी 'मजहब' कहलाते है । इन्ही का नाम मत है, मतान्तर है, पंथ है , रिलिजन है ।  ये धर्म नही हो सकते । 
अंग्रेजी के शब्द Religion का अर्थ भी मजहब है धर्म नही । किन्तु डिक्शनरी में आपको धर्म और मजहब दोनों मिलेंगे , डिक्शनरी बनाई तो इंसानों ने ही है ना !!
वास्तव में धर्म शब्द अंग्रेजी में है ही नही इसलिए उन्हें Dharma लिखना पड़ता है । ठीक उसी प्रकार जैसे योग को Yoga.
http://stephen-knapp.com/
http://www.hinduism.co.za/founder.htm

धर्म केवल ईश्वर प्रदत होता है व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया हुआ नही । क्योकि व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया हुआ 'मत' (विचार) होता है अर्थात उस व्यक्ति को जो सही लगा वो उसने लोगो के समक्ष प्रस्तुत किया और श्रधापूर्वक अथवा बलपूर्वक अपना विचार (मत) स्वीकार करवाया। 
अब यदि एक व्यक्ति निर्णय करने लग जाये क्या सही है और क्या गलत तो दुनिया में जितने व्यक्ति , उतने धर्म नही हो जायेगे ? 
कल को कोई चोर कहेगा मेरा विचार तो केवल चोरी करके अपनी इच्छाएं पूरी करना है तो क्या ये मत धर्म हो गया ? 

ईश्वरीय धर्म में ये खूबी है की ये समग्र मानव जाती के लिए है और सामान है जैसे सूर्य का प्रकाश , जल  , प्रकृति प्रदत खाद्य पदार्थ आदि ईश्वर कृत है और सभी के लिए है । उसी प्रकार धर्म (धारण करने योग्य) भी सभी मानव के लिए सामान है । यही कार है की वेदों में वसुधेव कुटुम्बकम (सारी धरती को अपना घर समझो), सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)
आदि आया है ।  और न ही किसी व्यक्ति विशेष/समुदाय को टारगेट किया गया है बल्कि वेद का उपदेश सभी के लिए है। 

उपरोक्त मजहबो में यदि उस मजहब के जन्मदाता को हटा दिया जाये तो उस मजहब का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । इस कारण ये अनित्य है । और जो अनित्य है वो धर्म कदापि नही हो सकता ।  किन्तु सनातन वैदिक (हिन्दू) धर्म में से आप कृष्ण जी को हटायें, राम जी को हटायें तो भी सनातन धर्म पर कोई असर नही पड़ेगा क्यू की वैदिक धर्म इनके जन्म से पूर्व भी था, इनके समय भी था और आज इनके पश्चात भी है  अर्थात वैदिक धर्म का करता कोई भी देहधारी नही। यही नित्य है। 

अब यदि कोई कहे की उपरोक्त जन्मदाता ईश्वर के ही बन्दे थे आदि आदि तो ईश्वर आदि-स्रष्टि में समग्र ज्ञान वेदों के माध्यम से दे चुके थे तो कोनसी बात की कमी रह गई थी जो बाद में अपने बन्दे भेजकर पूरी करनी पड़ी ? 
जिस प्रकार हम पूर्ण ज्ञानी न होने के कार ही पुस्तक के प्रथम संस्करण (first edition) में त्रुटियाँ छोड़ देते है तो उसे द्वितीय संस्करण (second edition) में सुधारते है क्या इसी प्रकार ईश्वर का भी  ज्ञान अपूर्ण है ?
और दूसरा ये की स्रष्टि आरंभ में वसुधेव कुटुम्बकम आदि कहने वाला ईश्वर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग समय में अपने बन्दे भेज भेज कर लोगो को समुदायों में क्यू बाँटने लग गया ? और उसके सभी बन्दे अलग अलग बाते क्यू कर रहे थे ? यदि एक ही बात की होती तो आज अलग अलग मजहब क्यू बनते ?
और तीसरा ये की यदि बन्दे भेजने ही थे तो इतनी लेट क्यू भेजे ? धरती की आयु अरबो वर्ष की हो चुके है और उपरोक्त सभी पिछले ३ ० ० ० वर्षों में ही अस्तित्व में आये है । 
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Age-of-Universe-Vedas-Shri-Mad-Bhagwatam.html

इत्यादि कारणों से स्पष्ट है की धर्म सभी के लिए एक ही है जो आदि काल से है ।  बाकि सभी मत है लोगो के चलाये हुए । 

शायद में ठीक से समझा नही पाया कृपया निम्न १४ मिनट का विडियो देखें : 



http://www.youtube.com/watch?v=OTQMcv2euKk

http://www.mahenderpalarya.com/वैदिक-संस्कृति-का-परिचय/
https://www.facebook.com/MahendraPalArya

इस लेख के माध्यम से मेरा उद्देश्य किसी की भावनाएँ आहात करने का नही अपितु सत्य की चर्चा करने का है । पसंद आये तो इस लेख/विडियो  का प्रचार करें ताकि लोगो तक सत्य पहुंचे । 



TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

शनिवार, 8 जून 2013

हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता ? | 33 Crore Gods in Hinduism ?


हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता है , असुरों ने ऐसा उत्पात मचाया हुआ है .. वेदों के आधार पर आज इसका भंडाफोड़ करेंगे ..

सर्वप्रथम ये देखते है की देवता शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है ?

देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा  घोतनाद्वा, घुस्थानो भवतीति व । ।     : निरुक्त अ०  ७ । खं०  १५ 

दान देने से देव नाम पड़ता है ।  और दान कहते है  अपनी चीज दुसरे के अर्थ दे देना ।
दीपन कहते है प्रकाश करने को, धोतन कहते है सत्योपदेश को, इनमे से दान का दाता मुख्य एक ईश्वर ही है कि जिसने जगत को सब पदार्थ दे रखे है , तथा विद्वान मनुष्य भी विधादि पदार्थों के देने वाले होने से देव कहाते है ।
दीपन अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों का प्रकाश करने से सुर्यादि लोको का नाम भी देव है ।
देव शब्द में 'तल्' प्रत्यय करने से देवता शब्द सिद्ध होता है ।

नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्शत्   : यजुर्वेद अ०  ४० । मं०  ४ 

इस वचन में देव शब्द से इन्द्रियों का ग्रहण होता है । जोकि श्रोत्र , त्वचा , नेत्र , जीभ , नाक और मन , ये छ : देव कहाते है । क्योकि शब्द , स्पर्श, रूप, रस, गंध , सत्य तथा असत्य आदि अर्थों का इनके प्रकाश होता है अर्थात इन्ही ६  इन्द्रियों से हमें उपरोक्त ६ लक्षणों (शब्द , स्पर्श, रूप .....) का ज्ञान होता है ।
देव कहने का अभिप्राय ये नही की श्रोत्र , त्वचा , नेत्र ... आदि पूजनीय हो गये .

मातृदेवो भव , पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव अतिथिदेवो भव  । प्रपा ० । अनु ० ११ 

माता पिता , आचार्य और अतिथि भी पालन , विद्या  और सत्योपदेशादि के करने से देव कहाते है वैसे ही सूर्यादि लोकों का भी जो प्रकाश करने वाला है , सो ही ईश्वर सब मनुष्यों को उपासना करने के योग्य इष्टदेव है , अन्य  कोई नही ।  इसमें कठोपनिषद का भी प्रमाण है :

न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विधुतो भान्ति कुतोSयमग्नि : । 
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति । । 
-कठ ० वल्ली ५ । मं ० १५ 

सूर्य , चन्द्रमा , तारे , बिजली और अग्नि ये सब परमेश्वर में प्रकाश नही कर सकते , किन्तु इन सबका प्रकाश  करने वाला एक वही है क्योकि परमेश्वर के प्रकाश से ही सूर्य आदि सब जगत प्रकाशित हो रहा है । इसमें यह जानना चाहिए कि ईश्वर से भिन्न कोई पदार्थ स्वतंत्र प्रकाश करने वाला नही है, इससे एक परमेश्वर ही मुख्य देव है ।

अब ३३ देवता (न की करोड़) के विषय में देखते है :

ये त्रिंशति त्रयस्परो देवासो बर्हिरासदन् | विदन्नह द्वितासनन् || 
ऋग्वेद अ ० ६ । अ ० २ । व० ३५ । मं ० १ 

त्रयस्त्रिं;शतास्तुवत भूतान्यशाम्यन् प्रजापति : परमेष्ठय्द्हिपतिरासीत्   ||
यजुर्वेद अ०  १४   मं०  ३१ 

त्रयस्त्रिं;शत् अर्थात व्यवहार के ये (33) देवता है : 
8 वसु ,
11 रुद्र ,
12 आदित्य ,
1 इन्द्र ओर 
1 प्रजापति |

उन्मे से 8 वसु ये है :- अग्नि , पृथिवि , वायु , अन्तरिक्ष , आदित्य , घौ: , चन्द्रमा ओर नक्षत्र |
इनक नाम वसु इसलिये है कि सब पदार्थ इन्ही में वास करते है और ये ही सबके निवास करने के स्थान है । 


१ १ रूद्र ये कहाते है - जो शरीर में दश प्राण है अर्थात प्राण, अपान , व्यान , समान , उदान , नाग , कुर्म , कृकल , देवदत्त, धनज्जय और १ १ वां  जीवात्मा । क्योंकि जब वे इस शरीर से निकल जाते है तब मरण होने से उसके सब सम्बन्धी लोग रोते है ।  वे निकलते हुए उनको रुलाते है , इससे इनका नाम रूद्र है । 

इसीप्रकार आदित्य 1२ महीनो को कहते है, क्योकि वे सब जगत के पदार्थों का आदान अर्थात सबकी आयु को ग्रहण करते चले जाते है , इसी से इनका नाम आदित्य है । 

ऐसे ही इंद्र नाम बिजली का है , क्योकी वह उत्तम ऐश्वर्य की विधा का मुख्य हेतु है और यज्ञ को प्रजापति इसलिए कहते है की उससे वायु और वृष्टिजल की शुद्धि द्वारा प्रजा का पालन होता है । तथा पशुओं की यज्ञसंज्ञा होने का यह कारण है कि उनसे भी प्रजा का जीवन होता है ।  ये सब मिलके अपने दिव्यगुणों से ३ ३ देव कहाते है । 

इनमे से कोई भी उपासना के योग्य नही है, किन्तु व्यवहार मात्र की सिद्धि के लिए ये सब देव है, और सब मनुष्यों के उपासना के योग्य तो देव एक ब्रह्म ही है ।  

स ब्रह्मा स विष्णु : स रुद्रस्य शिवस्सोअक्षरस्स परम: स्वरातट । -केवल्य उपनिषत खंड १ । मंत्र ८

सब जगत के बनाने से ब्रह्मा , सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु , दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से रूद्र , मंगलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से शिव है ।

--: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , महर्षि दयानंद सरस्वती 


                                                              सनातन्  धर्मं: नमो नमः

TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 

सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

रविवार, 2 जून 2013

प्रकाश की गति : ऋग्वेद | Speed of light in Rigveda


माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी । 
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण , जो वेदों के महान भाष्यकार थे ,  ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चोथा  श्लोक था ।

तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ...ऋग्वेद  १. ५ ० .४ 

 अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।

Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.

उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी/भाष्य  करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया 

तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥ 
-सायण ऋग्वेद भाष्य १. ५ ० .४ 

अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है

[O light,] bow to you, you who traverse 2,202 yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana  14th AD

http://en.wikipedia.org/wiki/Sayana

yojana and nimesha are ancient unit of distance and time respectively.

उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202  योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दुरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाईयों में परिवर्तित कर सकते है । 

किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय व् दुरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे .


निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64


Manusmriti 1-64 

मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :

पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !

18 निमीष = 1 काष्ठ; 
30 काष्ठ = 1 कला; 
30 कला = 1 मुहूर्त; 
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात  (लगभग 24 घंटे )

As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night 

अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000  निमिष 

hence, in 24 hours there are 486000 nimishas.

24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400  सेकंड 

86400 सेकंड =486000 निमिष 

अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
निमिष 86400 /486000  =  .17778 सेकंड 
1/2 निमिष =.08889 सेकंड 

in 1/2 nimisha approx .08889 seconds

अब योजन ज्ञान करना है , श्रीमद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार 
1 योजन = 8 मील लगभग 
2202 योजन = 8 * 2202 = 17616 मील 

As per Shrimadbhagwatam 1 yojana equals to approx 8 miles.

सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात 
.08889 सेकंड में 17616  मील चलता है । 
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति =  17616   मील
1 सेक में =  17616 / .08889   =  198177  मील लगभग 

Speed of light in vedas 198177 miles per second approximately .

आज की प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग 

In morden science , its 186000 miles per second approximately.






                                                                       om peace

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वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्



शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

ब्रह्माण्ड की आयु | Universe Age - Vedas - Srimad Bhagavatam



श्री मदभागवतम् में ब्रह्माण्ड उत्पति का जो वर्णन मिलता है वो इस प्रकार है :
ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व भगवान विष्णु ही केवल विधमान थे और शयनाधीन थे. विष्णु जी की नाभि से एक कमल अंकुरित हुआ । उसी कमल में ब्रह्मा विराजमान थे।

While Vishnu is asleep, a lotus sprouts of his navel (note that navel is symbolised as the root of creation!). Inside this lotus, Brahma resides. Brahma represents the universe which we all live in, and it is this Brahma who creates life forms. 



यहाँ नाभि से कमल अंकुरित होने का अभिप्राय एक बिंदु से ब्रह्माण्ड उत्पति है. एक बिंदु से ब्रह्माण्ड का उद्गम हुआ इसी को दर्शाने के लिए यहाँ कमल का अलंकर प्रयुक्त किया गया है ।
कमल में विराजमान ब्रह्मा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करते है अर्थात ब्रह्मा ही ब्रह्माण्ड है इसी कारण इसे ब्रह्म+अण्ड (Cosmic Egg) कहा गया है .
बिल्कुल इसी प्रकार के थ्योरी आधुनिक विज्ञानं की है जिसे बिगबेंग की संज्ञा दी गयी ।  इसमे बताया गया है की  ब्रह्माण्ड उत्पति एक बिंदु (शुन्य) से हुई .

Brahma represents our universe which has birth and death, a big bang and a big crunch from a navel singularity. Vishnu represents the eternity that lies beyond our universe which has no birth or death and that which is eternal! Many such universes like ours exist in Vishnu.

ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व जो शक्ति विद्यमान थी वो विष्णु है, जिस ब्रह्माण्ड में अभी हम है ये अस्थायी है, इसका आरंभ  व् अंत  सतत रूप से होता रहता है। किन्तु ब्रह्माण्ड अंत के पश्चात पुनः सब पदार्थ व् अपदार्थ उसी शक्ति में विलीन हो जाते है जो श्री विष्णु का स्वरुप है।
शास्त्रों में ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष बताई गयी है ब्रह्मा की आयु अर्थात  ब्रह्माण्ड की आयु.
जैसा की हम ऊपर कह चुके है की चतुर्मुखी ब्रह्मा , ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करते है . चारों वेदों की उत्पति इन्ही से हुई है अतः चोरों वेदों के ज्ञाता होने के कारन ही ये चतुर्मुखी है .


इसी प्रकार की व्याख्या ऋग्वेद के १ ० वें मंडल के  १ २ ९ वें सूक्त (नासदीय सूक्त) में मिलती है ! निम्न विडियो देखें :


 इन 100 ब्रह्म वर्षों के पश्चात ब्रह्माण्ड का अंत एक महासंकुचन (big crunch)  के साथ होता है . वेदों का कहना है की अब तक कई ब्रह्मा आये और गये अर्थात जिस ब्रह्माण्ड में हम जी रहे है ये न ही प्रथम है और न ही अंतिम .

Vedas say that thousands of brahmas have passed away!  In other words, this is not the first time universe has been created.

अब हम ये देखते है की ब्रह्मा का 1 वर्ष हमारे लिए कितना बड़ा है .

ब्रह्मा का 1 वर्ष :
ब्रह्मा के प्रत्येक वर्ष में 360 दिन होते है।

ब्रह्मा का 1 दिन :
ब्रह्मा के 1 दिन में दिन +रात  होते है . जिसे एक कल्प भी कहा जाता है ,
A kalpa is made up of brahma’s one day and one night.
ब्रह्मा केवल दिन में ही स्रष्टि रचते है और रात्रि में उनके निद्राधीन होते ही ब्रह्माण्ड का अंत उंसी प्रकार होता है जैसे कोई सुन्दर स्वप्न टुटा हो .
हम, मानव दिन में कार्य करते है तथा रात्रि को नींद में स्वप्न देखते है और हमारे स्वप्न की एक अलग ही दुनिया होती है जिसे स्वप्न आकाश कहा जाता है। जो प्रतेक व्यक्ति का भिन्न होता है। किन्तु ब्रह्मा जी का हिसाब किताब मनुष्यों से उल्टा है, वे दिन समय में जो स्वप्न देकते है वह उनका स्वप्न आकाश है जो ब्रह्माण्ड है और अनंत है जिसमे सारा ब्रहमांड तथा चराचर जिव, हम मनुष्य आदि जीते है।
इसी करण हमारे यहाँ कहा गया है :- "ब्रह्म सत्य, जगह मिथ्या"

जगह को  मिथ्या इसी लिए कहा गया है क्यू की ये तो ईश्वर का एक सुन्दर स्वप्न मात्र है। और ब्रह्म सत्य इसलिए क्यू की जगत के अंत के पश्चात एक ईश्वर ही शेष रहता है।

तो कुल मिला कर बात यह है की ब्रह्मा दिन में जो स्वप्न देखते है, हम उसी में जीते है और रात्रि में निद्राधीन  होते ही ब्रह्मा (ब्रह्माण्ड) सुप्त अवस्था में चले जाते है . और अगले दिन पुनः उनका स्वप्न आरंभ होता है और ब्रहमांड उपस्थित हो जाता है .
अब देखना ये है की ब्रह्मा का एक दिन कितना बड़ा होता है ??

ब्रह्मा के एक दिन (एक कल्प) में 28 मन्वन्तर होते है . अर्थात दिन समय में 14  मन्वन्तर  और 14 ही रात्रि में .

ब्रह्मा का 1 मन्वन्तर :
ब्रह्मा के 1 मन्वन्तर  में 71 महायुग होते है ।

ब्रह्मा का १ महायुग :
ब्रह्मा के 1 महायुग में 4  युग होते है । क्रमश : सत्य(क्रेता) , त्रेता , द्वापर , कलि ।


सत्य युग महायुग का 40 % भाग होता है 
त्रेता युग  महायुग का 30 % भाग होता है 
द्वापर युग महायुग का 20 % भाग होता है 
कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है 
यदि उपरोक्त वर्णन आपको पूर्णतया समझ आ गया है तो अभी हम जिस समय में जी रहे है वो भी समझ आ जायेगा । 
अभी हम  
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
 में है ।


ब्रह्मा से सम्बंधित डाटा एक साथ लिख लेते है :
ब्रह्मा की आयु : 100 वर्ष
1 वर्ष = 360 दिन
1 दिन = 1 कल्प =28 मन्वन्तर
1 मन्वन्तर = 71 महायुग
1 महायुग = 4 युग


गणना :

कलियुग की आयु जो बताई गई है वो है : 4,32,000 साल । 

अब तक हमने केवल थ्योरी देखि पर अब हमारे पास एक आंकड़ा " 4,32,000 साल " आ चूका है अतः अब ब्रह्मा के 100 वर्ष हम मनुष्यों के लिए कितने है ये ज्ञात कर सकते है . अब गणना निचे से ऊपर की और चलेगी और थोड़ी कठिन होगी कृपया ध्यान से समझें । 

कलि युग =  4,32,000 साल 

कलियुग महायुग का 10 % है अतः 1 महायुग कितना हुआ ?
1 महायुग का 10 % =  4,32,000
 1 महायुग कुल =  4,32,000* (100 /10 )=  4,320,000 साल । 

1 महायुग = 4,320,000 साल हमारे पास आ चूका है अब आगे की गणनाओं में ईकाई महायुग ही लेंगे । 

ब्रह्मा के 1 मन्वन्तर में 71 महायुग होते है । 
1 मन्वन्तर = 71 महायुग 

ब्रह्मा के 1 पूर्ण दिन में 28 मन्वन्तर होते है, किन्तु हमें केवल दिन अर्थात 14 मन्वन्तर ही लेने है क्यू की रात्रि अर्थात महाविनाश । 

1 दिन = 14 *71 = 994 महायुग । 

अब यहाँ एक नियतांक (Constant) और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । अर्थात किसी मन्वन्तर के प्रारंभ होने से पूर्व तथा पश्चात ४ युगों का अंतराल ।

ब्रह्मा के दिन के 14 मन्वन्तरों में अंतराल हुए = 15
प्रत्येक  अंतराल = 4 युग 
तो 14 मन्वन्तरों में कुल अंतराल = 15 *4 = 60 युग 
60 युग = 60 /10 = 6 महायुग   {चूँकि कलि युग महायुग का 10% भाग होता है }

1 दिन = 994 +6 = 1000 महायुग । 
1000* 4,320,000= 4 ,320 ,000 ,000 साल ।   {१ महायुग =4,320,000}

ये सिर्फ ब्रह्मा के दिन का मान है अब इतना का इतना रात्रि के लिए और जोड़ने पर :
ब्रह्मा 1 एक पूर्ण दिन (दिन+रात)
 = 4 ,320 ,000 ,000 +4 ,320 ,000 ,000  =8 ,640 ,000 ,000  साल (8 अरब 64 करोड़)

ये केवल ब्रह्मा का 1 दिन है । 
ब्रह्मा का 1 वर्ष = 360 दिन 
ब्रह्मा के 100 वर्ष = 100*360 * 8 ,640 ,000 ,000

जैसा की हम ऊपर देख चुके है :
हम अभी 
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
में है । 
जितना समय ब्रह्मा के जन्म का हो चूका है उतनी ही इस ब्रह्माण्ड की आयु हो चुकी है । 
अर्थात
 ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28वे महायुग के 3 (तीसरे) युग (दवापरयुग) तक का समय बीत चूका है । और अभी चोथा (कलि) चल रहा है ।

कलि के लगभग 5000 वर्ष भी बित चुके है ।  इन 5000 वर्षों को छोड़ भी दें तो कोई खास फर्क नही पड़ेगा ।

ये ब्रह्माण्ड कितना पुराना है ? :
28 वे महायुग के तिन (सत्य, त्रेता, दवापर) बित  चुके है!
1 महायुग = 4,320,000
कलि महायुग का 10 % होता है =4,320,000*(10 /100 ) =4,32,000
कलि अभी चल रहा है इसलिए इसे महायुग मेसे घटा देते है =

 4,320,000-4,32,000= 3888000 वर्ष,  28 वे महायुग के बीत चुके है । 

बिता हुआ समय = 27 महायुग + 3888000  वर्ष

उपरोक्त समय 7 वे मन्वन्तर का है ।  इससे पहले 6 मन्वन्तर पुरे बीत चुके है । 
6 मन्वन्तर = 426 महायुग  {चूँकि 1 मन्वन्तर = 71 महायुग }

बिता हुआ समय = 426  महायुग  +27 महायुग + 3888000   वर्ष। 

ध्यान रहे हमें नियतांक और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । 
6 मन्वन्तरों में कुल अन्तराल = 6 * 4 = 24  युग 
=2.4  महायुग  {चूँकि कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है}

बिता हुआ समय = 2.4 महायुग+426 महायुग  +27 महायुग + 3888000 वर्ष। 

अब हम ब्रह्मा के 51 वे वर्ष के 1 दिन तक की गणना कर चुके है ।  इससे पीछे नही जाना क्यू की इससे पीछे 
ब्रह्मा के 50 वे वर्ष का 360 वां दिन की रात्रि आ जायेगी , रात्रि मतलब विनाश  । और उसे भी पूर्व जायेंगे तो 
ब्रह्मा के 50 वे वर्ष का 360 वां दिन आ जायेगा, वो दिन इस दिन से भिन्न है अर्थात ब्रह्मा का वो स्वप्न इस स्वप्न से भिन्न है अर्थात वो ब्रह्माण्ड इस ब्रह्माण्ड का भूतपूर्व है । 

इस ब्रह्माण्ड की कुल आयु = 2.4 महायुग+426 महायुग  +27 महायुग + 3888000  वर्ष। 
= 455.4 महायुग+ 3888000  वर्ष।
= 455.4  * 4,320,000 +   3888000   वर्ष             {चूँकि 1 महायुग =4,320,000 }
=1972944000 वर्ष  

इस कलि के 5000 वर्ष बित  चुके है यदि उन्हें भी जोड़े तो ब्रह्माण्ड की कुल आयु =
1972944000  वर्ष   + 5000
=1972949000 वर्ष   !

इस ब्रह्माण्ड का अंत कब  ? :

एक बार पुनः 
हम अभी 
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
में है । 
ब्रह्मा के केवल इस दिन समय तक ये ब्रह्माण्ड रहेगा । 

कलियुग के वर्ष = 4,32,000 वर्ष 
इस कलियुग के लगभग 5000 वर्ष बीत चुके है, इसे अंत में घटाएंगे । 

इसके पश्चात 29  वे महायुग का 1 (प्रथम) युग सत्ययुग प्रारंभ होगा । 
ब्रह्मा के  7 वे मन्वन्तर के पूर्ण होने में शेष महायुग :
71 - 28 = 43 महायुग + इस कलियुग के 4,32,000 वर्ष 
=43 महायुग+4,32,000 वर्ष 

इस समय के पश्चात 8 वां मन्वन्तर प्रारंभ होगा । 
ब्रह्मा के इस दिन के शेष मन्वन्तर = 14-7  =7  मन्वन्तर 
7  मन्वन्तर = 71*7  महायुग {चूँकि 1 मन्वन्तर = 71 महायुग }

ध्यान रहे हमें नियतांक और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । 
7  मन्वन्तरों में कुल अन्तराल = 7*4 = 28 युग 
=2.8 महायुग  {चूँकि कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है}

ब्रह्मा के इस दिन के ख़तम होने में शेष समय =
 2.8 महायुग+71*7 महायुग+43 महायुग+4,32,000 वर्ष 
=471.8 महायुग+4,32,000 वर्ष 
=471.8  *4,320,000 +4,32,000 वर्ष        {चूँकि १ महायुग =4,320,000 }
=2038607000 वर्ष      

इस कलियुग के लगभग 5000 वर्ष बीत चुके है, इसे घटाने पर :
 2038607000 -5000 =2038602000 वर्ष      


इसके पश्चात हमें और आगे नही जाना है क्यू की इसके आगे "ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन की रात्रि आयेगी । रात्रि अर्थात महाविनाश । और उसके आगे ब्रह्मा के 51वे वर्ष का 2 (दूसरा) दिन प्रारंभ होगा । वो स्वप्न इस स्वप्न से भिन्न होगा अर्थात वो ब्रह्माण्ड इस ब्रह्माण्ड के पश्चात आयेगा । 

इस प्रकार आप देख सकते है की ब्रह्मा के प्रत्येक दिन में एक नए स्वप्न (ब्रह्माण्ड ) का निर्माण होता है वो रात्रि में ख़तम हो जाता है ।  इस प्रकार कितने ही ब्रह्माण्ड जा चुके है और कितने ही आने वाले है !!!

यदि आपने कभी टीवी पर पोराणिक सीरियल देखें हो तो आपको स्मरण होगा ब्रह्मा जी अपनी पत्नी सरस्वती से कहते है की अभी कुछ समय पश्चात में सो जाऊंगा और उसके साथ ही स्रष्टि का अंत हो जायेगा । 
उमीद है ब्रह्मा जी के इस वाक्य का अर्थ आपको समझ आ गया होगा !

अब एक प्रशन ये भी उठता है की यदि 2038602000  वर्ष   पश्चात प्रलय होनी है तो इस कलियुग के पश्चात अर्थात 4,32,000 वर्ष पश्चात प्रलय क्यू बताई जाती है ?

मेंरे मतानुसार 4,32,000 वर्ष पश्चात प्रलय नही होगी अपितु प्रलय सामान ही एक महापरिवर्तन होगा । पुराणो  के अनुसार जैसे जैसे कलियुग प्रभावी (जवान) होगा वैसे वैसे समाज में गंदगी बढेगी । घोर कलियुग में एक भी अच्छा मनुष्य ढुंढने पर भी नही मिलेगा । गंदे काम खुल्लम खुल्ला होंगे ।  तब श्री विष्णु का अंतिम "कल्कि" अवतार होगा । कल्कि पुराण के अनुसार उनका जन्म शम्भल गाँव में होगा और पिता (एक ब्राह्मण) का नाम होगा विष्णु यशा । शम्भल गाँव शायद मध्यप्रदेश में है अथवा होगा । 
और इसके साथ ही 29 वे महायुग का सत्य युग प्रारंभ होगा । 


उपरोक्त आंकड़े आज की विज्ञानं को भी टक्कर दे रहे है । या यूँ कहा जाये की आधुनिक विज्ञानं वेदों के आगे पाणी भरती है। 
17वी - 18 वि शताब्दी के आसपास  जब अंगेजों का पाला इन तथ्यों से पड़ा तो उन्होंने इसका मजाक उड़ाया । मैक्स मुलर जैसे कीड़ों ने वेदों को बदनाम किया गलत सलत व्याख्या की । और इस मुर्ख ने मरने से पहले अपनी डायरी में ये और लिखा की मैंने अपने जीवन में कभी संस्कृत नही सीखी । :D

आज भी यही हो रहा है  संस्कृत न जानने वाले जाकिर नाइक जैसे बुद्धू  हिन्दुओं को वेदों के अर्थ बता रहे है । :D 

किन्तु आज की विज्ञानं में अनुसन्धान के पश्चात जब यही थ्योरी वैज्ञानिकों के समक्ष आयी तो वे दंग रह गये  । 
प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञानी कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक Cosmos में लिखा है :

The Hindu religion is the only one of the world’s great faiths dedicated to the idea that the Cosmos itself undergoes an immense, indeed an infinite, number of deaths and rebirths. It is the only religion in which the time scales correspond, to those of modern scientific cosmology. Its cycles run from our ordinary day and night to a day and night of Brahma, 8.64 billion years long. Longer than the age of the Earth or the Sun and about half the time since the Big Bang. And there are much longer time scales still. - Carl Sagan, Famous Astrophysicist




मेरा दावा है हिन्दू ग्रंथों के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रंथों में ऐसी थ्योरी मिलना संभव ही नही !!

                                   
ऐसे कितने ब्रह्माण्ड?:
जैसा की हम देख चुके है की न तो वर्तमान ब्रह्माण्ड प्रथम है और न ही अंतिम । 
परन्तु पुराणों में एक और रोचक तथ्य मिलता है वो ये है की एक समय में भी एक से अधिक ब्रह्माण्ड अस्तित्व में रहते है प्रत्येक के ब्रह्मा भिन्न होते है । इसलिए कहा गया है की महाविष्णु के उदर में असंख्य ब्रह्माण्ड वास करते है । इसे निम्न फोटो द्वारा समझे :
इस सागर को महाविष्णु माने और प्रत्येक बूंद के प्रतिरूप को एक ब्रह्माण्ड !

आधुनिक विज्ञानी इसे Multiverse कहते है । 
"The multiverse (or meta-universe) is the hypothetical set of multiple possible universes"

http://en.wikipedia.org/wiki/Multiverse


ब्रह्मलोक ब्रह्माण्ड का केंद्र है :
वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंच मण्डल क्रम वाली है। चन्द्र मंडल, पृथ्वी मंडल, सूर्य मंडल, परमेष्ठी मंडल और स्वायम्भू मंडल। ये उत्तरोत्तर मण्डल का चक्कर लगा रहे हैं।
जैसी चन्द्र प्रथ्वी के, प्रथ्वी सूर्य के , सूर्य परमेष्ठी के, परमेष्ठी स्वायम्भू के|  
चन्द्र की प्रथ्वी की एक परिक्रमा -> एक मास 
प्रथ्वी की सूर्य की एक परिक्रमा -> एक वर्ष 
सूर्य की परमेष्ठी (आकाश गंगा) की एक परिक्रमा ->एक मन्वन्तर 
परमेष्ठी (आकाश गंगा) की स्वायम्भू (ब्रह्मलोक ) की एक परिक्रमा ->एक कल्प
स्वायम्भू  मंडल ही ब्रह्मलोक  है । स्वायम्भू  का अर्थ स्वयं (भू) प्रकट होने वाला ।  यही ब्रह्माण्ड का उद्गम स्थल या केंद्र है । 




ऋषियों की अद्भुत खोज:
जैसा की हम उपर देख चुके है :
अभी हम  
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
 में है ।
संकल्प। Sankalpa
हमारे पूर्वजों ने जहां खगोलीय गति के आधार पर काल का मापन किया, वहीं काल की अनंत यात्रा और वर्तमान समय तक उसे जोड़ना तथा समाज में सर्वसामान्य व्यक्ति को इसका ध्यान रहे इस हेतु एक अद्भुत व्यवस्था भी की थी, जिसकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो- गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि करते हैं। उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है। यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है। इस दृष्टि से इस मंत्र के अर्थ पर हम ध्यान देंगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी।

संकल्प मंत्र में कहते हैं.... 
ॐ अस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राहृणां द्वितीये परार्धे
अर्थात् महाविष्णु द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में वर्तमान ब्रह्मा की आयु का द्वितीय परार्ध-वर्तमान ब्रह्मा की आयु के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं।
श्वेत वाराह कल्पे-कल्प याने ब्रह्मा के 51वें वर्ष का पहला दिन है।

वैवस्वतमन्वंतरे- ब्रह्मा के दिन में 14 मन्वंतर होते हैं उसमें सातवां मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है।

अष्टाविंशतितमे कलियुगे- एक मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होती हैं, उनमें से 28वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है।

कलियुगे प्रथमचरणे- कलियुग का प्रारंभिक समय है।

कलिसंवते या युगाब्दे- कलिसंवत् या युगाब्द वर्तमान में 5104 चल रहा है।

जम्बु द्वीपे, ब्रह्मावर्त देशे, भारत खंडे- देश प्रदेश का नाम

अमुक स्थाने - कार्य का स्थान
अमुक संवत्सरे - संवत्सर का नाम
अमुक अयने - उत्तरायन/दक्षिणायन
अमुक ऋतौ - वसंत आदि छह ऋतु हैं
अमुक मासे - चैत्र आदि 12 मास हैं
अमुक पक्षे - पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष)
अमुक तिथौ - तिथि का नाम
अमुक वासरे - दिन का नाम
अमुक समये - दिन में कौन सा समय

उपरोक्त में अमुक के स्थान पर क्रमश : नाम बोलने पड़ते है ।
जैसे अमुक स्थाने : में जिस स्थान पर अनुष्ठान किया जा रहा है उसका नाम बोल जाता है ।
उदहारण के लिए दिल्ली स्थानेग्रीष्म ऋतौ आदि  |

अमुक - व्यक्ति - अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है।

इस प्रकार जिस समय संकल्प करता है,  सृष्टि आरंभ से उस समय तक  का स्मरण सहज व्यवहार में भारतीय जीवन पद्धति में इस व्यवस्था के द्वारा आया है।




उपनिषद | The Upanishads

वही एक सत्य है - वही आत्मा है - वही सत्य तुम स्वयं हो ! तत् त्वम् असि !

 Dr Richard Thompson ने वेदों के अध्यन के पश्चात निम्न विडियो बनाया है : 


ब्रह्माण्ड के  भिन्न स्थानों पर समय भी 
भिन्न होता है इसे समय की सापेक्षता कहते है यही कारण  है की ब्रहमा  (ब्रह्मलोक) का १ दिन हमारे लिए खरबों साल का है । कहा जाता है की यह सिधांत सर्वप्रथम आइन्स्टीन ने दिया था किन्तु पोराणिक कथाओं में सापेक्षता का सिधांत (Theory of relativity) भी मिलता है यहाँ देखें :
http://www.vedicbharat.com/2013/03/theory-of-relativity.html



In English:
http://mathomathis.blogspot.in/2010/09/universe-age-as-per-vedas.html



भागवत में भ्रूण विज्ञानं (Embryology ) की भी अच्छी खासी व्याख्या मिलती है यहाँ देखें :

http://www.vedicbharat.com/2013/04/Embryology-in-ShriMad-Bhagwatam-and-Mahabharata.html

TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्