अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त
परमाणुशास्त्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
परमाणुशास्त्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

प्राचीन भारत में हुए परमाण्विक युद्ध | Atomic Warfare of Mahabharata

आधुनिक परमाणु बम का सफल परिक्षण 16 जुलाई 1945 को New Mexico के एक दूर दराज स्थान में किया गया | इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक Julius Robert Oppenheimer के नेतृत्व में किया गया |
इन्हें परमाणु बम का जनक भी कहा जाता है | इस एटम बम का नाम उन्होंने त्रिदेव (Trinity) रखा |












{त्रिदेव (ट्रिनीटी) नाम क्यो?
परमाणु विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया में २३५ भार वला यूरेनियम परमाणु,बेरियम और क्रिप्टन तत्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु ३ न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते है। कुछ द्रव्यमान ऊ र्जा में परिणित हो जाता है। आइंस्टाइन के सूत्र
 ऊ र्जा = द्रव्यमान * (प्रकाश का वेग)२  {E=MC^2}
 के अनुसार अपरिमित ऊ र्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है।
१८९३ में जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में थे,उन्होने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों का अंग्रेजी अनुवाद किया था। यद्यपि परमाणु बम विस्फोटट कमेटी के अध्यक्ष ओपेन हाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था किन्तु राबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वे वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका कहना था कि पाश्चात्य संस्कृति में वेदों की पंहुच इस सदी की विशेष कल्याणकारी घटना है। उन्होने जिन तीन श्लोकों को महत्व दिया वे निम्र प्रकार है।
१. राबर्ट औपेन हाइमर का अनुमान था कि परमाणु बम विस्फोट से अत्यधिक तीव्र प्रकाश और उच्च ऊ ष्मा होगी, जैसा कि भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को विराट स्वरुप के दर्शन देते समय उत्पन्न हुआ होगा। गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है-
दिविसूर्य सहस्य भवेयुग पदुत्थिता
यदि मा सदृशीसा स्यादा सस्तस्य महात्मन:

अर्थात आकाश में हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा वह भी वह विश्वरुप परमात्मा के प्रकाश के सदृश्य शायद ही हो।
२. औपेन हाइमर ने सोचा कि इस बम विस्फोट से बहुत अधिक लोगों की मृत्यु होगी,दुनिया में विनाश ही विनाश होगा। उस समय उन्हे गीता के ग्यारहवें अध्याय के ३२ वें श्लोक में वर्णित बातों का ध्यान आया-
कालोस्स्मि लोकक्षयकृत्प्रवृध्दो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत:।
ऋ तेह्यपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येह्यवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।।

अर्थात मैं लोको का नाश करने वाला बढा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं,अत: जो प्रतिपक्षी सेना के योध्दा लोग हैं वे तेरे युध्द न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात इनका नाश हो जाएगा।
राबर्ट का बम भी विश्व संहारक और महाकाल ही था।
३. औपेन हाइमर ने सोचा कि बम विस्फोट से जहां कुछ लोग प्रसन्न होंगे तो जिनका विनाश हुआ है वे दु:खी होंगे विलाप करेंगे,जबकि अधिकांश तटस्थ रहेंगे। इस विनाश का जिम्मेदार खुद को मानते हुए वे दुखी हुए तभी उन्हे गीता के द्वितीय अध्याय के सैंतालिसवें श्लोक का भावार्थ ध्यान आया।
श्लोक निम्र प्रकार है-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोह्यस्त्वकर्माणि।।

अर्थात तेरा कर्म करने का ही अधिकार है,फल का नहीं। अत: तू कर्मो के फल का हेतु मत हो,तेरी आसक्ति सिर्फ कर्म करने में ही होनी चाहिए।
तीनों श्लोकों के भावार्थ के आधार पर ही राबर्ट ने बम का नाम त्रिदेव (ट्रिनीटी) रखा। ये बात उन्होने कई बार अमेरिकी पत्रकार वार्ता और टीवी इण्टरव्यू में स्वीकार की थी।
 }साभार:   http://sarkarigupshup.com/mp/?p=49

इसके अतिरिक्त  1933 में उन्होंने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के  प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर भगवद गीता का पूरा अध्यन किया  और परमाणु बम बनाया 1945 में | परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता तथा महाभारत से ही मिला, इसमें कोई संदेह नहीं | Robert Oppenheimer ने इस प्रयोग के बाद प्राप्त निष्कर्षों पर अध्यन किया और कहा की विस्फोट के बाद उत्पन विकट परिस्तियाँ तथा दुष्परिणाम जो हमें प्राप्त हुए है ठीक इस प्रकार का वर्णन भगवद गीता तथा महाभारत आदि में मिलते है |


इसके पश्चात खलबली मच गई तथा महाभारत और गीता आदि पर शोध किया गया और उन्होंने बताया की कई अन्य परमाण्विक बमों के अतिरिक्त एक "ब्रह्माश्त्र" नामक अस्त्र का वर्णन मिलता है जो इतना संहारक था की उस के प्रयोग से कई  हजारो लोग व  अन्य वस्तुएं न केवल जल गई अपितु पिघल भी गई|
ब्रह्माश्त्र के बारे में हमसे बेहतर कौन जान सकता है प्रत्येक पुराण आदि में वर्णन मिलता है जगत पिता भगवान ब्रह्मा द्वारा देत्यो के नाश हेतु ब्रह्माश्त्र की उत्पति हुई |
इस शोध पर लिखी गई कई किताबो में से एक है : The Atoms of Kshatriyas (यहाँ देखें)
रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु श्रीलक्ष्मण ने जब ब्रह्माश्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कह कर रोक दिया की अभी इसका प्रयोग उचित नही अन्यथा पूरी लंका साफ़ हो जाएगी |
>इसके अतिरिक्त प्राचीन भारत में परमाण्विक बमों के होने के प्रमाणों  की कोई कमी नही है । सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि) में अनुसन्धान से ऐसी कई नगरियाँ प्राप्त हुई है जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व तक अस्तीत्व में थी|
वहां ऐसे कई नर कंकाल इस स्थिति में प्राप्त हुए है मानो वो सभी किसी अकस्मात प्रहार में मारे गये हों  तथा इनमें रेडिएशन का असर भी था |
तथा कई ऐसे प्रमाण जो यह सिद्ध करते है की किसी समय यहाँ भयंकर ऊष्मा उत्पन्न हुई जो केवल परमाण्विक बम से ही उत्पन्न हो सकती है |

राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव्ह राख की मोटी सतह पाई जाती है। वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी परमाणु विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे। एक शोधकर्ता के आकलन के अनुसार प्राचीनकाल में उस नगर पर गिराया गया परमाणु बम जापान में सन् 1945 में गिराए गए परमाणु बम की क्षमता के बराबर का था।
मुंबई से उत्तर दिशा में लगभग 400 कि.मी. दूरी पर स्थित लगभग 2,154 मीटर की परिधि वाला एक अद्भुत विशाल गड्ढा (crater), जिसकी आयु 50,000 से कम आँकी गई है, भी यही इंगित करती है कि प्राचीन काल में भारत में परमाणु युद्ध हुआ था। शोध से ज्ञात हुआ है कि यह गड्ढा  crater) पृथ्वी पर किसी 600.000 वायुमंडल के दबाव वाले किसी विशाल के प्रहार के कारण बना है किन्तु  इस गड्ढे (crater) तथा इसके आसपास के क्षेत्र में उल्कापात से सम्बन्धित कुछ भी सामग्री नहीं पाई जाती। फिर यह विलक्षण गड्ढा  crater) आखिर बना कैसे? सम्पूर्ण विश्व में यह अपने प्रकार का एक अकेला गड्ढा (crater) है।

महाभारत में सौप्टिक पर्व अध्याय १३ से १५ तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गए है|
Great Event of the 20th Century. How they changed our lives ? नामक पुस्तक  में हिरोशिमा नामक जापान के नगर पर परमाणु बम गिराने के बाद जो परिणाम हुए उसका वर्णन हैं, दोनों वर्णन मिलते झूलते हैं । यह देख हमें विश्वास होता हैं कि 3 नवंबर 5561 ईसापूर्व (आज से 7574 वर्ष पूर्व ) छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र एटोमिक वेपन अर्थात परमाणु बम ही था ।
महाभारत युद्ध का आरंभ 16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व हुआ और 18 दिन चलाने के बाद 2 दिसम्बर 5561 ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । 3 नवंबर 5561 ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया । तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी थी । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने मे समर्थ थी ।
तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।।

इसके बाद भयंकर वायु चलने लगी । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे ।
आकाश में बड़ा शब्द (ध्वनि ) हुआ ।  पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई|
 सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अ १४

यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ वषों तक पर्जन्यवृष्ठी (जीव-जंतु , पेड़-पोधे आदि की उत्पति ) नहीं हो पाती “।
’ब्रह्मास्त्र के कारण गाँव मे रहने वाली स्त्रियों के गर्भ मारे गए, ऐसा महाभारत लिखता है । वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे ।
ब्रह्मास्त्र के कारण १२ वर्ष अकाल का निर्माण होता है यह भी हिरोशिमा में देखने को मिलता है ।   
 



                                         


आधार: http://www.swadeshi.shreshthbharat.in/scientist-bharat/atom-bomb-missiles-in-mahabharat/
http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm
http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm


रविवार, 3 फ़रवरी 2013

परमाणुशास्त्र के जनक आचार्य कणाद | Father of Atom Maharishi Kanada : 600BC

महान परमाणुशास्त्री आचार्य कणाद 6 सदी ईसापूर्व  गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट) में जन्मे थे।
इन्होने वैशेषिक दर्शनशास्त्र की रचना की |  दर्शनशास्त्र (Philosophy) वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है|
माना जाता है कि परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार सर्वप्रथम इन्होंने किया था  इसलिए इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा |
It was Sage Kanada who originated the idea that anu (atom) was an indestructible particle of matter

महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था ‘यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:‘ जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्‌ भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं।

परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं
 ‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय‘
अर्थात्‌ प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।
 इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्‌, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं।

ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं का प्रतिपादन किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से डाल्टन (6 सितम्बर 1766 – 27 जुलाई 1844)  की संकल्पना मेल खाती है। इस प्रकार कणाद ने जॉन डाल्टन से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन कर दिया था |
कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं बल्कि ऐसी इकाई को ‘परमाणु‘ नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु स्वतंत्र नहीं रह सकते।
 कणाद आगे यह भी कहते हैं कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक‘ का निर्माण कर सकते हैं। यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मालिक्यूल‘ लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। यहां निश्चित रूप से कणाद रासायनिक बंधता की ओर इंगित कर रहे हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन आफ मैटर) की भी बात कही गई है। ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं।
ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने आज से हजारों वर्ष पूर्व अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था।
 कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक स्थिति ऐसी आएगी जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके पुराने गुणों का लोप हो जाएगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियां हैं- एक आणविक और दूसरी महत्‌। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्‌ यानी विशाल व्रह्माण्ड। दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है।
अत: कणाद कहते हैं-
 ‘धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम"  :- वैशेषिकo दo-४
अर्थात्‌ धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।
अधिक जानकारी के लिए देखे:
http://hi.wikipedia.org/wiki/वैशेषिक
https://sites.google.com/site/ekatmatastotra/stotra/scientists/kanaad