अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त
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शुक्रवार, 24 मई 2013

प्राचीनतम सफल ब्रेन सर्जरी | World’s Oldest Successful Brain Surgery discovered in India

भारत में प्राचीन हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से एक लगभग 4300 ई० पू०  वर्ष पुरानी मानव खोपड़ी प्राप्त हुई है जो  दुनिया की सबसे पुरानी  (ज्ञात)  सफल मानव मस्तिष्क सर्जरी को दर्शाती है .
यह खोज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने की है । इस खोपड़ी का अध्याय करने से ज्ञात हुआ की यह अब तक की ज्ञात सर्वाधिक प्राचीन नर खोपड़ी है जिसका ऑपरेशन खोपड़ी में ड्रिल मशीन द्वारा छेद कर किया गया और ये ऑपरेशन पूर्णतया सफल भी रहा ।

Scientists have discovered the world’s oldest known case of a successful human brain surgery after unearthing a 4300 year old skull from the site of the ancient Harappan Civilization site in India. This discovery was done by the scientists from the Archaeological Survey of India (ASI) who found evidence pointing this to be the oldest known case of Trephination in the world meant to treat a skull injury.

इस प्रकार की सर्जरी को Trephination कहा जाता है । जब किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में भयंकर चोट लगती है जो मस्तिष्क/खोपड़ी के अंदरूनी भागो में हड्डी चटक जाया करती है इन्ही  मस्तिष्क में बिखरी हड्डियों के चूरे आदि को मस्तिष्क से बहार निकलने की प्रक्रिया को Trephination कहा जाता है   जिसमे खोपड़ी के एक छोटे से हिस्से में छेद कर ये ऑपरेशन किया जाता है । 

Trephination is the process of drilling holes in the damaged skull to remove shattered bits of bone from a fractured skull and clean out the blood that often pools under the skull after a blow to the head.
The 4,300 year old Skull which underwent brain surgery. Image Courtesy: Current Science
इसके अतिरिक्त कुछ दशकों पूर्व भी दुनिया के तथा भारत के कई स्थानों पर इस प्रकार के अवशेष प्राप्त हुए जिससे ये स्पष्ट होता है की प्राचीन भारत में निश्चय ही सफल ऑपरेशन किये जाते थे । 

किन्तु उन सभी में से ये खोज सबसे अधिक ठोस व् पुख्ता प्रमाण देती है । 
वैज्ञानिकों के अनुसार इसका अध्ययन करने पता चलता है की ये व्यक्ति किसी जबरदस्त आघात का शिकार बना था, छेद की आंतरिक सीमा की 3 मिमी चौड़ाई सावधानीपूर्वक किये गये ऑपरेशन को दर्शाती है, ऑपरेशन के पश्चात यह व्यक्ति स्वस्थ होकर काफी समय तक  जीवित भी रहा । 

A clear rim of 3mm width at the internal border of the hole is the evidence of osteogenesis or healing , indicating that the victim survived for a considerable time after the operation .

प्राचीन विकसित ब्रेन सर्जरी का अंदाज लगाने के लिए निम्न आधुनिक ब्रेन सर्जरी का एक विडियो देखें :
जिससे आपको यह ज्ञात होगा की ब्रेन सर्जरी के लिए सेकड़ों औजारों के साथ साथ कुशलता भी कितनी आवश्यक है जो हमारे पूर्वजों के पास भरपूर थी । और इसी प्रकार के सफल ऑपरेशन वे आज से करीब ६००० वर्ष पूर्व कर चुके थे । 


http://www.currentscience.ac.in/Volumes/100/11/1621.pdf
http://www.academia.edu/1191412/Evidence_of_surgery_in_ancient_India_Trepanation_at_Burzahom_Kashmir_over_4000_years_ago (Detailed)


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

गुरुवार, 23 मई 2013

गौत्र प्रणाली :आनुवंशिक विज्ञान | Hindu Gotra System: Genetics Science

इस लेख के माध्यम से हम उन लोगों के मुख पर तमाचे जड़ेंगे जो गौत्र प्रणाली को बकवास कहते है । 
गौत्र शब्द का अर्थ होता है वंश/कुल  (lineage)। 
गोत्र प्रणाली का मुख्या उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके  मूल प्राचीनतम व्यक्ति से जोड़ना है उदहारण के लिए यदि को व्यक्ति कहे की उसका गोत्र भरद्वाज है तो इसका अभिप्राय यह है की उसकी पीडी वैदिक ऋषि भरद्वाज से प्रारंभ होती है या ऐसा समझ लीजिये की वह व्यक्ति ऋषि भरद्वाज की पीढ़ी में जन्मा है । 
इस प्रकार गोत्र एक व्यक्ति के पुरुष वंश में मूल प्राचीनतम व्यक्ति को दर्शाता है.
The Gotra is a system which associates a person with his most ancient or root ancestor in an unbroken male lineage.


ब्राह्मण स्वयं को निम्न आठ ऋषियों (सप्तऋषि +अगस्त्य ) का वंशज मानते है । 

जमदग्नि, अत्रि , गौतम , कश्यप , वशिष्ठ ,विश्वामित्र, भरद्वाज, अगस्त्य 
Brahmins identify their male lineage by considering themselves to be the descendants of the 8 great Rishis ie Saptarshis (The Seven Sacred Saints) + Agastya Rishi
उपरोक्त आठ ऋषि मुख्य गोत्रदायक ऋषि कहलाते है ।  तथा इसके पश्चात जितने भी अन्य गोत्र अस्तित्व में आये  है वो इन्ही आठ मेसे एक से फलित हुए है और स्वयं के नाम से गौत्र स्थापित किया . उदा० माने की 
अंगीरा की ८ वीं  पीडी में कोई ऋषि क हुए तो परिस्थतियों के अनुसार  उनके नाम से गोत्र चल पड़ा। और इनके वंशज क गौत्र कहलाये किन्तु क गौत्र स्वयं अंगीरा से उत्पन्न हुआ है । 
इस प्रकार अब तक कई गोत्र अस्तित्व में है । किन्तु सभी का मुख्य गोत्र आठ मुख्य गोत्रदायक ऋषियों मेसे ही है । 
All other Brahmin Gotras evolved from one of the above Gotras. What this means is that the descendants of these Rishis over time started their own Gotras. All the  established Gotras today , each of them finally trace back to one of the root 8 Gotrakarin Rishi.

गौत्र प्रणाली में पुत्र का महत्व  |  Importance of Son in the Gotra System:
जैसा की हम देख चुके है गौत्र द्वारा पुत्र व् उसे वंश की पहचान होती है । यह गोत्र पिता से स्वतः ही पुत्र को प्राप्त होता है । परन्तु पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता ।  उदा ०  माने की एक व्यक्ति का  गोत्र अंगीरा है 
और उसका एक पुत्र है । और यह पुत्र एक कन्या से विवाह करता है जिसका पिता कश्यप गोत्र से है । तब लड़की का गोत्र स्वतः ही 
गोत्र अंगीरा में परिवर्तित हो जायेगा जबकि कन्या का पिता कश्यप गोत्र से था । 
इस प्रकार पुरुष का गोत्र अपने पिता का ही रहता है और स्त्री का पति के अनुसार होता है न की पिता के  अनुसार । 
यह हम अपने देनिक जीवन में देखते ही है , कोई नई  बात नही !
परन्तु ऐसा क्यू ?
पुत्र का गोत्र महत्वपूर्ण और पुत्री का नही । क्या ये कोई  अन्याय है ??
बिलकुल नही !!
देखें कैसे :

गुणसूत्र और जीन । Chromosomes and Genes
गुणसूत्र का अर्थ है वह सूत्र जैसी संरचना जो सन्तति में माता पिता के गुण पहुँचाने का कार्य करती है । 
हमने १ ० वीं कक्षा में भी पढ़ा था की मनुष्य में २ ३ जोड़े गुणसूत्र होते है । प्रत्येक जोड़े में एक गुणसूत्र माता से तथा एक गुणसूत्र पिता से आता है । इस प्रकार प्रत्येक कोशिका में कुल ४ ६ गुणसूत्र होते है जिसमे २ ३ माता से व् २ ३ पिता से आते है । 

जैसा की कुल जोड़े २ ३ है । इन २ ३ में से एक जोड़ा लिंग गुणसूत्र कहलाता है यह होने वाली संतान का लिंग निर्धारण करता है अर्थात पुत्र होगा अथवा पुत्री । 
यदि इस एक जोड़े में गुणसूत्र xx हो तो सन्तति पुत्री होगी और यदि xy हो तो पुत्र होगा । परन्तु दोनों में x सामान है । जो माता द्वारा मिलता है और शेष रहा वो पिता से मिलता है । अब यदि पिता से प्राप्त गुणसूत्र x हो तो  xx मिल कर स्त्रीलिंग निर्धारित करेंगे और यदि पिता से प्राप्त y हो तो पुर्लिंग निर्धारित करेंगे । इस प्रकार x पुत्री के लिए व् y पुत्र के लिए होता है । इस प्रकार पुत्र व् पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुणसूत्र पर निर्भर होता है माता पर नही । 

अब यहाँ में मुद्दे से हट कर एक बात और बता दूँ की जैसा की हम जानते है की पुत्र की चाह रखने वाले परिवार पुत्री उत्पन्न हो जाये तो दोष बेचारी स्त्री  को देते है जबकि अनुवांशिक विज्ञानं के अनुसार जैसे की अभी अभी उपर पढ़ा है की "पुत्र व् पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुणसूत्र पर निर्भर होता है  न की माता पर "
फिर भी दोष का ठीकरा स्त्री के माथे मांड दिया जाता है । ये है मुर्खता !
जैसा की पाकिस्तानी फिल्म 'बोल' में दिखाया गया था । 
http://www.imdb.com/title/tt1891757/

अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है । 
इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र). इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही !
और यदि पुत्री हुई तो (xx  गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है । 

१. xx गुणसूत्र ;-
xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों  का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है । 

२. xy गुणसूत्र ;- 
xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र . पुत्र में गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover  नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है । 


तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ ।  क्यू की गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है । 
बस इसी गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था । 


वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । Y Chromosome and the Vedic Gotra System

अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है । 
उदहारण के लिए यदि किसी  व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस गुणसूत्र के मूल है । 
चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारन है की विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है । 

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारन यह है की एक ही गोत्र से होने के कारन वह पुरुष व् स्त्री भाई बहिन कहलाये क्यू की उनका पूर्वज एक ही है । 
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही? की जिन स्त्री व् पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो वे भाई बहिन हो गये .?
इसका एक मुख्य कारन एक ही गोत्र होने के कारन गुणसूत्रों में समानता का भी है । आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो  उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी । 

ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था।



first cousin marriage increases the risk of passing on genetic abnormalities. But for Bittles, 35 years of research on the health effects of cousin marriage have led him to believe that the risks of marrying a cousin have been greatly exaggerated.
There's no doubt that children whose parents are close biological relatives are at a greater average risk of inheriting genetic disorders, Bittles writes. Studies of cousin marriages worldwide suggest that the risks of illness and early death are three to four percent higher than in the rest of the population.

http://www.eurekalert.org/pub_releases/2012-04/nesc-wnm042512.php


http://www.huffingtonpost.com/faheem-younus/why-ban-cousin-marriages_b_2567162.html
http://www.thenews.com.pk/Todays-News-9-160665-First-cousin-marriages




अब यदि हम ये जानना चाहे की यदि चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी आदि बहिनों से विवाह किया जाये तो क्या क्या नुकसान हो सकता है ।  इससे जानने के लिए आप उन समुदाय के लोगो के जीवन पर गौर करें जो अपनी चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहिनों से विवाह करने में १ सेकंड भी नही लगाते । फलस्वरूप उनकी संताने बुद्धिहीन , मुर्ख , प्रत्येक उच्च आदर्श व्  धर्म (जो धारण करने योग्य है ) से नफरत , मनुष्य-पशु-पक्षी आदि से  प्रेमभाव का आभाव आदि जैसी मानसिक विकलांगता अपनी चरम सीमा पर होती है । 
या यूँ कहा जाये की इनकी सोच जीवन के हर पहलु में विनाशकारी (destructive) व् निम्नतम होती है तथा न ही कोई रचनात्मक (constructive), सृजनात्मक , कोई वैज्ञानिक गुण , देश समाज के सेवा व् निष्ठा आदि के भाव होते है । यही इनके पिछड़ेपन  का प्रमुख कारण  होता है । 
उपरोक्त सभी अवगुण गुणसूत्र , जीन व् डीएनए आदि में विकार के फलस्वरूप ही उत्पन्न होते  है । 
इन्हें वर्ण संकर (genetic mutations) भी कह सकते है !! 
ऐसे लोग अक्ल के पीछे लठ लेकर दौड़ते है । 


खैर ,, 

यदि आप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जानकार है तो गौत्र प्रणाली को आधुनिक सॉफ्टवेयर निर्माण की भाषा  ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग (Object Oriented Programming : oop) के माध्यम से भी समझ सकते है । 
Object Oriented Programming के inheritance नामक तथ्य को देखें । 
हम जानते है की inheritance में एक क्लास दूसरी क्लास के function, variable आदि को प्राप्त कर सकती है । 


दायाँ चित्र multiple inheritance का है इसमें क्लास b व् c क्लास a के function, variable को प्राप्त (inherite) कर रही है । और क्लास d क्लास b , c दोनों के function, variable को एक साथ प्राप्त (inherite) कर रही है। 
अब यहाँ भी हमें एक समस्या का सामना करना पड़ता है जब क्लास b व् क्लास c में दो function या  variable एक ही नाम के हो !
उदा ० यदि माने की क्लास b में एक function abc नाम से है और क्लास c में भी एक function abc नाम से है। 
जब क्लास d ने क्लास b व् c को inherite किया तब वे एक ही नाम के दोनों function भी क्लास d में प्रविष्ट हुए । जिसके फलस्वरूप दोनों functions में टकराहट के हालात पैदा हो गये । इसे प्रोग्रामिंग की भाषा में ambiguity (अस्पष्टता) कहते है । जिसके फलस्वरूप प्रोग्राम में error उत्पन्न होता है । 

अब गौत्र प्रणाली को समझने के लिए केवल उपरोक्त उदा ० में क्लास को स्त्री व् पुरुष समझिये , inherite करने को विवाह , समान function, variable को समान गोत्र तथा ambiguity को आनुवंशिक विकार । 



वैदिक ऋषियों के अनुसार कई परिस्थतियाँ ऐसी भी है जिनमे गोत्र भिन्न होने पर भी विवाह नही होना चाहिए । 

देखे कैसे :
असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितु:
सा प्रशस्ता द्विजातिनां दारकर्मणि मैथुने  ....मनुस्मृति ३ /५ 

जो कन्या माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो , उस कन्या से विवाह करना उचित है । 



When the man and woman do not belong to six generations from the maternal side
and also do not come from the father’s lineage, marriage between the two is good.
-Manusmriti 3/5

उपरोक्त मंत्र भी पूर्णतया वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है देखें कैसे :

वह कन्या पिता के गोत्र की न हो अर्थात लड़के के पिता के गोत्र की न हो । 
लड़के का गोत्र = पिता का गोत्र 
अर्थात लड़की और लड़के का गोत्र भिन्न हो। 
माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो । 
अर्थात पुत्र का अपनी माता के बहिन के पुत्री की पुत्री की पुत्री ............६ पीढ़ियों तक विवाह वर्जित है।  
Manusmriti 3/5 चित्र देखें (बड़ा करने के लिए चित्र पर क्लिक करें )

हिनक्रियं निष्पुरुषम् निश्छन्दों रोम शार्शसम् । 
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठीकुलानिच । । .........मनुस्मृति ३ /७ 
जो कुल सत्क्रिया से हिन्,सत्पुरुषों से रहित , वेदाध्ययन से विमुख , शरीर पर बड़े बड़े लोम , अथवा बवासीर , क्षय रोग , दमा , खांसी , आमाशय , मिरगी , श्वेतकुष्ठ और गलितकुष्ठयुक्त कुलो की कन्या या वर के साथ विवाह न होना चाहिए , क्यू की ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में प्रविष्ट हो जाते है । 

आधुनिक आनुवंशिक विज्ञानं  से भी ये बात सिद्ध है की उपरोक्त बताये गये रोगादि आनुवंशिक होते है । इससे ये भी स्पष्ट है की हमारे ऋषियों को गुणसूत्र संयोजन आदि के साथ साथ आनुवंशिकता आदि का भी पूर्ण ज्ञान था । 


हिन्दू ग्रंथों के अतिरिक्त किसी अन्य में ऐसी विज्ञानं मिलना पूर्णतया असंभव है., मेरा दावा है !!!!

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/11/gotra-system-khap-rules-y-chromosome.html

                                                  ॐ शांति शांति शांति । Grace and Peace


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

भ्रूणविज्ञान : श्री मदभागवतम् | Embryology in Srimad Bhagavatam

In English : {Detailed}
EMBRYOLOGY AND CHROMOSOMES FROM SHRIMAD BHAGAWATAM

भ्रूणविज्ञान (Embryology) का अर्थ है अपने अपरिपक्व अवस्था में गर्भ में  मानव जीव का  अध्ययन ।

यह आमतौर पर कहा जाता है कि यूरोपीय देशों ने मानव जीवन के विकास को समझने का वैज्ञानिक अध्ययन किया तथा  भारत में इससे सम्बन्धी कोई खोज नही  हुई  . भारतीयों ने केवल जीवन दर्शन (philosophy) के बारे में सोचा.

कहा जाता है की भ्रूणविज्ञान पर प्राचीनतम शोध  वैज्ञानिक Aristotle (अरस्तू) (384 - 322 ई.पू.) ने की ।

महाभारत  लगभग 5561 ईसा पूर्व लिखी गई तथा श्री मदभागवतम् लगभग 1652 ईसा पूर्व लिखी गई मानी जाती है ।


महाभारत  तथा भागवत में भ्रूणविज्ञान से सम्बंधित दुनिया भर की जानकारी भरी पड़ी है ।

हमारे महान ऋषियों ने यह जान लिया था की स्त्री व पुरुष के स्राव (secretions) द्वारा रज/डिंब  (ovum) तथा शुक्राणु  (sperm) के मिलन फलस्वरूप भ्रूण (Fetus) की उत्पति होती है तत्पश्चात जीव पनपता है ।

महाभारत के शांति पर्व 117,301, 320, 331, 356 तथा भागवत 3/31 में वर्णन मिलता है की  शुक्र का एक कण शोणित के साथ क्रिया कर कलल  का निर्माण करता है ।   शुक्र  तथा शोणित को क्रमश : शुक्राणु (sperm) और अंडाणु  (ovum) तथा कलल को युग्मनज या निषेचित डिंब (Zygote)  भी कहा जाता है ।

भागवत में कहा गया है कि केवल एक ही रात में अर्थात लगभग 12 घंटे के समय में ही कलल  का निर्माण हो जाता है ।
 कलल  आगे 5 रातों के पश्चात बुलबुले  (bubble stage) रूप में आ जाता है (भागवत ३/३१/२ )

आधुनिक विज्ञानं का भी यही मत है ।  दस दिन में बेर के समान कुछ कठिन हो जाता है तथा 11 वें दिन का भ्रूण अंड (oval shaped) की भांति दिखाई पड़ता है ।

इस प्रकार भ्रूण में 15  दिनों में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों (microscopic changes) का वर्णन मिलता है । आधुनिक विज्ञानं को ये सब जानने के लिए न जाने कोन  कोन सी पचासों मशीनों का प्रयोग करना पडता है ।

भागवत 3/31/3 में लिखा है प्रथम महीने के अंत तक भ्रूण का सिर विकसित हो जाता है ।
आधुनिक विज्ञान में 30-32 दिन के भ्रूण का सिर साफ़ साफ़ देखा जा सकता है ।


आगे  लिखा है  कि गर्भावस्था के दूसरे महीने में भ्रूण के हाथ-पाँव  और शरीर के अन्य भागों को विकसित होने लगते है.

6-8  सप्ताह (42-56  दिन ) के  भ्रूण में हाथ-पाँव  और शरीर के अन्य भाग आप इस चित्र में देख सकते है ।
बड़ा करने के लिए चित्र  क्लिक करें ।

A six week embryonic age or eight week gestational age intact Embryo, found in a Ruptured Ectopic pregnancy case.

आधार: विकीपीडिया
http://en.wikipedia.org/wiki/File:Human_Embryo.JPG

गर्भावस्था के तीसरे महीने में  नाखून, बाल, हड्डियां और त्वचा विकसित होने लगती है तथा जननांग विकसित होने लगते है तथा कुछ समय पश्चात गुदा (Anus ) का निर्माण होता है ।

 आधुनिक मत के अनुसार 8 सप्ताह (56 दिन =  लगभग 2 माह ) के भ्रूण  में जननांग पाए जाते है तथा पूर्णतया प्राप्त करने में तीसरा महिना आ ही जाता है ।

तथा आगे लिखा है चोथे महीने में सात प्रकार की धातुओं (tissues) का निर्माण होता है जो इस प्रकार है :

 रस  (tissue fluids), रक्त  (blood), स्नायु  (muscles), मेदा  (fatty tissue), अस्थी (bones), मज्जा  (nervous
tissue) तथा शुक्र (reproductive tissue). आधुनिक विज्ञानं का भी यही मत है ।


पांचवे महीने में शिशु में भूख तथा प्यास विकसित होती है ।  हालांकि कुछ समय पूर्व तक आधुनिक विज्ञान इसे समझ नही पाई थी परन्तु नवीनतम प्रयोगों के आधार पर यह सत्य सिद्ध होता है | देखें कैसे ?

जातविष्ठा (मल)   पेट में ग्रहणी से मलाशय तक पाया जाता है जिसमे स्वयं भ्रूण  के ही  बाल (lanugo hairs) तथा उपकला कोशिकाएँ  भी  शामिल होती  है ।   ये सभी  भ्रूण की आंत तक एमनियोटिक द्रव निगलने के फलस्वरूप ही पहुँच सकते हैं  । एमनियोटिक द्रव (amniotic fluid)  वह द्रव है जिसमे भ्रूण स्थित  होता है  । बाल (lanugo hairs) और उपकला कोशिकाएँ भ्रूण की  त्वचा द्वारा ही एमनियोटिक द्रव में गिरती है जिसे भ्रूण ग्रहण करता है ।  और  इन  बालो (lanugo hairs) तथा उपकला कोशिकाओं का शिशु की आंतों में पाया जाना  जठरांत्र संबंधी मार्ग  के कार्य सुचारू कार्य करने को दर्शाता है ।
 अर्थात पांचवे महीने में शिशु का जठर तंत्र तथा आंते आदि कार्य करने लगते है तथा यह भी निश्चित है  की शिशु का एमनियोटिक द्रव ग्रहण करना एक स्व  प्रक्रिया  नही  है अपितु  शिशु की भूख तथा प्यास को दर्शाता है । शिशु को भूख तथा प्यास की अनुभूति होने के फलस्वरूप ही वह एमनियोटिक द्रव ग्रहण करता है ।


छठे महीने में शिशु गर्भ में घूर्णन करने लगता है अर्थात करवट लेने लगता है तथा कई प्रकार के ढकाव (एमनियोटिक द्रव/उतकों  आदि ) द्वारा घिरा रहता है    

सातवे महीने में शिशु का मस्तिष्क कार्य करने लगता है और 7 महीने का शिशु व्यवहार्य हो जाता है ।

आधुनिक विज्ञान इस तथ्य को हाल ही में हुए एक प्रयोग के पश्चात समझ पाई है ।

श्री कृष्ण के भांजे अभिमन्यु ने युद्ध कला गर्भ में ही सीखी थी यह बात भी इससे सिद्ध होती है यहाँ देखें ।
http://www.vedicbharat.com/2013/03/the-tale-of-abhimanyu-turned-out-to-be-true-mahabharata.html


अभिमन्यु ने युद्ध कला गर्भ में सीखी इस तथ्य को विदेशी तो दूर हम भारतीय भी अब तक मिथ्या मानते थे । किन्तु आधुनिक विज्ञान में सिद्ध होने के पश्चात हमने इसे माना ।
कितने मुर्ख है हम ।
हमने  200 वर्षों तक गोरो के डंडे खाए  है , गुलाम मानसिकता इतनी जल्दी थोड़ी जाएगी !!!

हमारी प्राचीन परंपराओं में गर्भवती स्त्री को अच्छी पुस्तके तथा रामचरितमानस आदि पढने के सलाह दी जाती थी । इससे भी यह स्पष्ट है की हमारे पूर्वज इस तथ्य को जानते थे की  6-7 माह का शिशु सिखने लगता है  अर्थात व्यवहार्य  हो जाता है ।

आगे कहा  गया है कि भ्रूण अपनी माँ द्वारा किये गये भोजन आदि के  पोषण से ही बढ़ता है. तथा शिशु स्वयं द्वारा किये गए  मूत्र और मल तथा एमनियोटिक द्रव के बिच ही बढ़ता रहता है ।

कुछ वर्ष पूर्व तक आधुनिक विज्ञान का मानना तथा की शिशु अपनी माता  के अपशिस्ट  पदार्थ में पलता है किन्तु अब यह सिद्ध हो चूका है की वह अपशिस्ट  माता का नही वरन स्वयं शिशु का ही होता है ।

8वे श्लोक में कपिल मुनि लिखते है  कि शिशु अपनी पीठ और सिर के बल पर ही  स्थित होता है .


9वे श्लोक  का कहना है कि शिशु साँस लेने में असमर्थ  होता है  क्योंकि शिशु एमनियोटिक द्रव में निहित होता है  जिसके कारन साँस लेने की आवश्यकता नही होती .शिशु को ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व माँ के खून द्वारा प्राप्त होते  है .

किन्तु कितने दुःख की बात है आज के अपनी स्त्रियों के गुलाम पुरुषों के राजमहल में अपनी माँ के लिए  एक कमरा भी नही ?? डूब मरो जल्दी से जल्दी !!!    

श्लोक  22 में  कपिल मुनि लिखते  है कि 10 महीने में भ्रूण को नीचे की और प्रसूति वायु द्वारा धकेला जाता है ।
इस प्रकार गर्भ में भ्रूण से शिशु निर्माण की प्रक्रिया सूक्ष्म रूप से भागवत 2/10/17 से 22, 3/6/12 से 15 तथा 3/26/54 से 60 में मिलता है जिसमे  मुह,नाक,आँखे,कान, तालू, जीभ और गला आदि शामिल है । तथा (3/6/1 से 5) तक में  जिव निर्माण में योगदान देने वाले 23 गुणसूत्रों का भी वर्णन मिलता है ।

आधुनिक विज्ञान में कहा गया है  एक शुक्राणु के 22 गुणसूत्र, एक अंड के साथ मिलकर भ्रूण निर्माण करते है ।  बिलकुल यही तथ्य आज से लगभग 7500 वर्ष पूर्व लिखी गई महाभारत में भी मिलता है ।

भागवत (2/10, 3/6, 3/26) में लिखा है जननांग तथा  गुदा आदि के पश्चात ह्रदय का निर्माण होता है । यह तथ्य   1972 में H.P.Robinson द्वारा  Glasgow University में ultrasonic Doppler technique के माध्यम से सिद्ध किया  जा चुके है ।

भागवत में लिखा है दोनों कानो में प्रत्येक का कार्य ध्वनी तथा दिशा का ज्ञान करना है यह तथ्य 1936 में Ross तथा Tait  नामक वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध किया गया की दिशा का गया आन्तरिक कान में स्थित Labyrinth नामक संरचना द्वारा होता है । इसका वर्णन ऐतरेय उपनिषद (लगभग 6000 से 7000  ईसा पूर्व ) 1/1/4 तथा 1/2/4 में भी मिलता है ।

ऐसे कई प्रश्न  है जिसका उत्तर आधुनिक विज्ञान के पास नही है क्योंकि उनके पास केवल भोतिक ज्ञान है अध्यात्मिक नही ।  हमारे ऋषियों के पास प्रत्येक प्रश्न का उतर  था  क्योकि वे भोतिक के  साथ  अध्यात्मिक ज्ञान में  भी धुरंदर थे ।

उदहारण के लिए : हम जानते है की निषेचन के पश्चात करोडो शुक्राणु, एक मादा अंड की ओर दौड़ते है किन्तु केवल एक ही शुक्राणु अंड में प्रवेश करने में सफल होता है और भ्रूण का  निर्माण करता है ।

आधुनिक विज्ञानियों के पास इसका कोई उतर नही की करोडो की  दौड़ में एक ही जीता बाकि मुह देखते रह गये ?

परन्तु ऋषियों के पास इसका सॉलिड उतर था । उन्होंने कहा जीवात्मा अमर है जैसा की श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है ।  मृत्यु  के पश्चात आत्मा भोतिक शरीर को  छोड़कर भुवर्लोक में गमन करती है । वर्षा द्वारा पुनः पृथ्वी पर आती है वर्षा जल पेड-पोधों द्वारा अवशोषित किया जाता है  इस प्रकार जीवात्मा खाद्यान्न (food grain) में प्रवेश करती है। जो भोजन के साथ पुरुष के शरीर में पहुँचती है और शुक्राणु बनता है ।
ओर जब करोडो शुक्राणुओ की दौड़ प्रारंभ होती है वही एक शुक्राणु विजयी होता है जिसमे प्राण/जीवात्मा निहित होती है । वही जीवआत्मा  (जो परमआत्मा (ईश्वर) का अंश है) उस शुक्राणु का मार्ग दर्शन कर विजयी बनाती है ।

जबकि आधुनिक विज्ञान का कहना है की यह एक अवसर मात्र ही है की कोई एक जीत  गया ।

इसी प्रकार का एक और प्रश्न  है की प्रसव (delivery) के लिए कोन उतरदायी है विज्ञान के पास दो उतर है या तो माँ या फिर स्वयं शिशु ।

यदि माँ प्रसव के लिए उतरदायी है तो प्रत्येक प्रसव काल (gestation period) में परिवर्तन क्यों ?
और यदि शिशु उतरदायी है तो सातवे महीने में शिशु का मस्तिष्क कार्य करने लगता है फिर भी वह दो महीने और गर्भ में क्यो ठहरता है ?

ऋषियों का कहना है की जब शिशु में प्राण प्रवेश करता है तब वह एमनियोटिक द्रव से बाहर निकने की चेष्टा करता है और दुनिया में आता है ।  इस प्रकार प्रसव, प्राण पर निर्भर करता है न की माता पर और  न ही शिशु पर ।
भागवत 3/26/63 से 70 में लिखा है की जब शिशु का प्रत्येक अंग आदि कार्य करने प्रारंभ कर देते है तब तक भी वह द्रव से बाहर नही निकलता जब तक अंततः  उसके चित में क्षेत्रज आत्मा का प्रवेश नही होता ।

उपरोक्त समस्त अध्यन microscope आदि के अभाव में नही किये जा सकते । इससे यह भी स्पस्ट है की उस समय microscope जैसे यन्त्र भी थे !

कोशिका विभाजन 
भागवत 3/6/7 में लिखा है की
भ्रूण सर्वप्रथम एक बार विभाजित होता है,
ऐसा दस बार होता है
और फिर तिन बार और होता है ।
उपरोक्त को तिन अलग अलग बार लिखा गया है क्योंकि विभाजन तीन परतों/चरणों में होता है ।
प्रत्येक विभाजन में पहले निर्मित कोशिकाओं से संख्या दुगुनी हो जाती है ।

इन्ही बढ़ती हुई कोशिकाओं से भ्रूण के शरीर का विकास होता है ।
आधुनिक विज्ञान में इन तीन चरणों को ectoderm, endoderm तथा mesoderm कहा जाता है ।


मात्र  साफ़, महंगे विदेशी  वस्त्र पहनने तथा टाई लटका लेने से कोई बुद्धिमान नही हो जाता ।  उपरोक्त सारे अनुसन्धान हमारे ऋषि लोगो ने भगवा धारण किये ही किये थे । 




साभार : श्री पद्माकर विष्णु वार्तक, वेद विज्ञान मंडल, पूणे। 

अधिक जानकारी के लिए देखें :
EMBRYOLOGY AND CHROMOSOMES FROM SHRIMAD BHAGAWATAM {Detailed}


इससे भी अधिक जानकारी के लिए श्री मदभागवत पढ़े ।





आज यदि हमारे ग्रंथो पर पुनः शोध आरंभ की जाये  तो भारत निश्चय ही पुनः विश्व गुरु  सकता है । 

किन्तु हो उल्टा ही रहा है विदेशी हमारे ग्रंथो पर शोध करने में डूबे हुए है ये एक दक्षिण अफ्रीका की वेब साईट है  
http://www.hinduism.co.za/index.html

जो सनातन धर्म को समर्पित है इस साईट में जा कर जरा बायीं और मेन्यु तो देखें । 

.co.za domain south africa का है ठीक उसी प्रकार जैसे co.in india के लिए है यहाँ देखें : 

http://www.africaregistry.com/

इसी प्रकार एक अमेरिकन stephen knapp ने वेदों आदि पर गहन शोध की है :

http://stephen-knapp.com/
25-30 पुस्तकें भी लिख चुके है । 

https://www.facebook.com/stephen.knapp.798

इसके अतिरिक ऐसे कितने ही प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के नाम हम आपको गिना सकते है जिन्होंने वेद-उपनिषद भर पेट पढ़े जैसे : निकोल टेस्ला, श्रोडेंगर, आइंस्टीन, नील्स बोहर, राबर्ट औपेन हाइमर, कार्ल सेगन.................



Quantum Physics came from the Vedas: Schrödinger, Einstein and Tesla were all Vedantists.


यहाँ देखें :


NASA तो संस्कृत के पीछे पागल है यहाँ देखें :
http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl

America is creating 6th and 7th generation super computers based on Sanskrit language. Project deadline is 2025 for 6th generation and 2034 for 7th generation computer. After this there will be a revolution all over the world to learn Sanskrit.
-A NASA scientist

http://www.ariseindiaforum.org/they-broke-our-vedic-back-bone/

हम पेंटियम 4 चला कर प्रसन्न हो रहे है पेंटियम 6-7  बनने वाला है पूरा : संस्कृत में  


"अमेरिका की यूनीवर्सिटी में गीता पढ़ना अनिवार्य"
यहाँ देखे :

http://khabar.ibnlive.in.com/news/6405/2


ये बिकाऊ भांड दलाल  मीडिया कभी भी इस प्रकार की गौरवांवित करने वाली खबरे टीवी पर नही दिखाएगा 


हमेशा रोने पीटने की ख़बरें ही दिखायेगा ।  सब धन की माया है !!!


मैं पूछता हूँ  हम कब तक गुलाम बने रहेगे ???




TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्






मंगलवार, 26 मार्च 2013

हमारे पूर्वजों की उपलब्धियां : एक नजर में | Achievements of the Ancient Hindus


सर्वप्रथम तो सभी को होली की शुकानाएँ |

हमारे वेदों, उपनिषदों तथा पुराणों में वर्णित विभिन्न जानकारीयों की सूचि ।
आने वाले समय में हम निम्न प्रत्येक बिंदु  के बारे में पर्याप्त जानकारी एकत्रित कर लेख प्रकाशित करने की चेष्टा करेंगे।

In English : Achievements of the Ancient Hindus (Indians)
here --> https://sites.google.com/site/vvmpune/achievements-of-the-ancients-hindus/aa


चिकित्सा विज्ञान

क्रम   ज्ञान  प्राचीन संदर्भ  आधुनिक संदर्भ
1 प्लास्टिक सर्जरी :  माथे की त्वचा द्वारा  नाक की मरम्मत  सुश्रुत (4000 - 2000 ईसापूर्व )            एक जर्मन विज्ञानी
 (1968 )
2 कृत्रिम अंग  ऋग्वेद (1-116-15)  20वीं सदी 
3 गुणसूत्र गुणाविधि - महाभारत 5500 ईसापूर्व  1860-1910 
4 गुणसूत्रों की संख्या 23  महाभारत -5500 BCE     1890 A.D.
5 युग्मनज में पुरुष और स्त्री गुणसूत्रों का संयोजन                         श्रीमदभागवत  (4000-2000 B.C.) 20th Century
6 कान की भोतिक रचना (Anatomy)                ऋग्वेद भागवत Labyrinth-McNally 1925
7 गर्भावस्था के दूसरे महीने में भ्रूण के ह्रदय की शुरुआत ऐतरेय उपनिषद   6000 BCश्रीमदभागवत   Robinson, 1972
8  महिला अकेले से वंशवृद्धि प्रजनन - कुंती और माद्री :- पांडव         महाभारत 5500 BC         20th Century
9  टेस्ट ट्यूब बेबी 
10   केवल डिंब(ovum) से ही           महाभारत   Not possible yet
11   केवल शुक्राणु से ही           ऋग्वेद महाभारत   Not possible yet
12    c) डिंब व शुक्राणु दोनों से  महाभारत  Steptoe, 1979
13 जीवन का अंतरिक्ष यात्रा में बढ़ाव श्रीमदभागवत   1652 BC       Not yet confirmed
14 कोशिका विभाजन (3 परतों में)     श्रीमदभागवत    1652 BC       20th Century
15 भ्रूणविज्ञान  ऐतरेय उपनिषद   6000 BC         19th Century
16 सूक्ष्म जीव                                        महाभारत  18th Century
17 पदार्थ उत्पादन प्रदत बीमारी की  रोकथाम  या  इलाज,  अल्प मात्रा में  श्रीमदभागवत    (1-5-33)    Hanneman,18thCentury
18 विट्रो में भ्रूण का विकास       महाभारत  20th Century
19 पेड़ों और पौधों में जीवन           महाभारत  Bose,19th century.
20 मस्तिष्क के 16 कार्य           ऐतरेय उपनिषद 19-20th Century
21 नींद की परिभाषा                  प्रशनोपनिषद  6000 BC , पतंजलि योगसूत्र   5000 BC      20th Century
22 जानवर की क्लोनिंग (कत्रिम उत्पति ) ऋग्वेद  ---
23  मनुष्य की क्लोनिंग मृत राजा वीणा से पृथु  अभी तक नही 
24 अहिरावण के  शरीर के तरल पदार्थ के रक्त में कोशिकाओं से क्लोनिंग पुराण  May 1999- Japan 
25 अश्रु - वाहिनी  आंख को नाक से जोडती है  Halebid,Karnataka के शिव मंदिर में  एक व्यक्ति को द्वार चौखट में दर्शाया गया है 20th century AD
26 कंबुकर्णी नली (Eustachian Tube आंतरिक कान को ग्रसनी (pharynx) से जोड़ती  है         
Halebid,Karnataka के शिव मंदिर में  शिव गणों  को द्वार चौखट में दर्शाया गया है 
20th century AD
27 गर्भावस्था के 5वे  महीने में भ्रूण को भूख और प्यास  श्रीमदभागवत    - 1652 BC अभी तक नहीं समझा जा सका 
28 मृत्यु आपान वायु पर निर्भर करती है जो गर्भावस्था के दुसरे महीने में प्रारंभ होती है  ऐतरेय उपनिषद- 6000BC अभी तक नहीं समझा जा सका
29 भ्रूण में सोचने की  क्षमता ऐतरेय उपनिषद 7000 BC Sept. 2009 Dr.Bruner






भौतिक विज्ञान


क्रम ज्ञान  प्राचीन संदर्भ  आधुनिक संदर्भ
1 प्रकाश का  वेग             ऋग्वेद -
सायण भाष्य (1400)                  
19th Century
2 ट्रांस सेटर्न देवता संबंधी या शनिग्रह विषयक ग्रह        महाभारत (5561 B.C)   17-19th Century
3 अन्य  सौर प्रणाली में  अंतरिक्ष यात्रा       श्रीमदभागवत     (4000 B.C)  परीक्षण में 
4 गुरुत्वाकर्षण        प्रशनोपनिषद  (5761 B.C)आदि शंकराचार्य  (500 B.C or 800 AD) न्यूटन 17th Century
5 पराबैंगनी बैंड              Sudhumravarna (मांडूक्य उपनिषद) -
6 अवरक्त बैंड (Infra-red Band) सुलोहिता मांडूक्य उपनिषद     -
7 Tachyons (एक कण) प्रकाश की तुलना में तेज   Manojava (मांडूक्य उपनिषद)      Sudarshan, 1968
8 परमाणु ऊर्जा Spullingini (मांडूक्य उपनिषद) 20th Century.
9 श्याम विविर (Black Holes) Vishvaruchi (मांडूक्य उपनिषद) 20th Century
10 ग्रीष्म संक्रांति में मानसून  ऋग्वेद (23720 B.C)         -
11 दक्षिण अमेरिका में हवाई जहाज द्वारा प्रवेश          वाल्मीकि रामायण   >7300 B.C          -
12 पिस्को,पेरू, दक्षिण अमेरिका की खाड़ी, में स्फुरदीप्त ट्रिडेंट    वाल्मीकि रामायण  Found in 1960 A.D.
13 हवाई जहाज  ऋग्वेद 15000BC
रामायण 7300 BC
महाभारत 5561 BC
समरांगण सूत्रधार (1050 A.D.)                
20th Century
14 रोबोट/यंत्रमानव समरांगण सूत्रधार 1050 AD रामायण -  कुम्भकर्ण 7300 BC 20th century
15 परमाणु (विभाज्य)              श्रीमदभागवत     (4000 B.C.) Dalton (Indivisible)1808 A.D.
16 उपपरमाण्विक कण (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन) भागवत (4000 BC)परमाणु  Divisible -    Bequerel, 1897
Thomas Rutherford 1911
17 क्वार्क - एक कण                                         परम - महान  Dr. Jain Pyarelal 1980
18 ब्रह्मांड की  उत्पत्ति (नासदीय सूत्र ) ऋग्वेद (>10000 B.C.) Gamaow, et.al (1950) Sir Bernard Lowell 1975
19 परमाणु बम महाभारत ब्रह्माश्त्र  3rd Nov.5561 B.C 6th Aug.1945 A.D.
20 ध्वनि ऊर्जा पाउडर सामग्री के लिए  महाभारत (Vajrastra) Gavreau, 1964
21 पारा हवाई जहाज के लिए ऊर्जा स्रोत के रूप में   समरांगण सूत्रधार 1050AD Indian Express, 20-10-1979 
22 उत्तरी ध्रुव वाल्मीकि रामायण 7000BC Piery, 1909 A.D
23 दक्षिणी (Antartica) रावण वाल्मीकि रामायण >7300 BC  Piery, 1950 A.D
24 ब्रह्मांड में व्याप्त मौलिक तत्व          ऋग्वेद (>10000 B.C.) (अम्भ)     20th Century  (Ylem)
25 मौलिक तत्व की रचना (अभू नासदीयगैसिय कण/बूंदें ऋग्वेद (>10000 B.C)      Gammow, 1950
26 जल का  प्राकृतिक चक्र ऋग्वेद &  वाल्मीकि रामायण 19th Century
27 विद्युत एकदिश वाह (DC) मित्र वरुण तेज/शक्ति, अगस्त्य   18th Century
28 विद्युत के द्वारा जल विश्लेषण (2H2 + O2)  प्राण वायु + उदान वायु   - अगस्त्य   19th Century
29 विद्युत आवरण/लेपन             अगस्त्य   19th Century
30 गुब्बारे में H2 (उदान वायु) भर कर उड़ना  अगस्त्य  
31 वेगा 12000 ई.पू. के दौरान ध्रुवतारा बना  महाभारत (Vanaparva 230) 20th Century
32 सूरज की किरणों में सात रंग        ऋग्वेद (8-72-16)          
33 सूर्य पर काले धब्बे वाल्मीकि रामायण & तथा वेद >7300         
34 सागर पर अस्थायी पुल  वाल्मीकि रामायण 26-30 October 7292 BC            
35 विषुव और संक्रांति       ऋग्वेद (10-18-1)  25000BC          
36  उल्का (Meteors) "उल्का" अथर्ववेद (19-9)  7000BC
37 पाइथागोरस प्रमेय (बौधायन प्रमेय) शुल्ब सूत्र  (800 BC)     पाइथागोरस , 500 BC
38 धूमकेतु/पुच्छलतारा  ऋग्वेद , (मुल नक्षत्र)
वाल्मीकि रामायण 7000BC 
(मुल नक्षत्र)
 महाभारत 5561 BC (पुरुष नक्षत्र)   
39 Aldebaren (एक विशाल तारा) में मंगल ग्रह                      वाल्मीकि रामायण 7000 BC                    अभी तक पुनः घटित नही हुआ 
40 Aldebaren में शनि  महाभारत 5561 BC अभी तक पुनः घटित नही हुआ 
41 तारों का श्वास लेना  ऋग्वेद (नासदीय सूत्र ) Gamov, 1950
42  एक तारे में ऊष्मा तथा गुरुत्व का उत्पादन  ऋग्वेद (नासदीय ) Gamov, 1950
43 स्रष्टि उत्पति का क्रम :-अंतरिक्ष, गैस, गर्मी/अग्नि , पानी, और पृथ्वी/ठोस  ऋग्वेद तैत्तिरीय उपनिषद् -
44 पृथ्वी की आयु  महाभारत पुराण 
3.456 X 10^10 years 
Salim, Jogesh Pati, 1980
10^10 years -Sir Lowell
45 इलेक्ट्रॉन की  आयु  1.2 x 10^15 years -
46 प्रोटॉन की आयु  1.9 x 10^25 years 10^30 years
47 राशि चक्र के 12 लक्षण/चिन्ह  ऋग्वेद 23920 BCप्रशनोपनिषद  5761 BC 400 BC
48 विशिष्ट गुरुत्व के अनुसार वातावरण की परतें वाल्मीकि रामायण (Kish.8) 
49 माइक्रोस्कोप महाभारत - शांति पर्व 15/26(5500 BC)       16th Century
50 चश्मा (उपनेत्र)    आदि शंकराचार्य -अपरोक्ष अनुभूति 81
कम से कम  8 वी सदी             
16th Century
51 ग्रहों पर अलग अलग समय के पैमाने महाभारत /श्रीमदभागवत     /व्यास जी >1600BC 20th century.
52 जंग न लगने वाला लोह पदार्थ  ईसाई युग की शुरूआत not yet done
53 संगीतीय  पत्थर के खम्भे  1000 AD और पूर्व  not yet done
54 Stationary Sun  appears   moving            Arya Bhatta-  First century AD 16th century
Jnaneshwar 13 century AD
55 No land, only sea, between The Pillar of Somnath Temple & Antarctica 10th century AD. 20th century AD
56 अफ्रीका के  जिराफ कोणार्क सूर्य मंदिर में नक्काशी 10वी सदी पूर्व  15th century AD
57 रंग प्रौद्योगिकी अजांता रंग क्षीण नही  होता   आधुनिक रंग क्षीण  होता है  
58 नक्काशी प्रौद्योगिकी  एलोरा में  शिव मंदिर एक पहाड़ी से 2000 साल पहले नक्काशीदार बनाया गया  not done
59 ध्वन्यात्मक/ध्वनिप्रधान लिपि (Phonetic script) वेद > 23000 BC not done
60 सूर्यग्रहण - कारण वेद > 23000 BC 16th century
61 पूर्ण ग्रहण की समाप्ति ऋग्वेद सौर नेत्र  Diamond ring                    
62  अरुंधति वशिस्ठ (तारों के नामके आगे महाभारत 5561 BC 2011 AD
63 अभिजीत (वेगा/तारे ) की  फिसलन  महाभारत 5561 BC में गिरावट, 20,000 ईसा पूर्व में शुरू हुआ recently noted
when? not known.
64 सप्ताह प्रणाली तैतरीय सहिंता  8357 BC A.D.
65 सप्ताह नाम  तैतरीय सहिंता  8357 BC A.D.
66 विभिन्न ग्रहों की  दूरी तैतरीय सहिंता 8357 BC 16th century
67 नये  चंद्रमा दिन का कारण वेद > 20,000 BC Wrong name-Moon not new
68  सभी ग्रहों पर ग्रहण देखा जा सकता है  वेद > 20,000 BC 2009 AD
69 बुद्धि/विचार मस्तिष्क से भिन्न  (Mind different from brain) वेद > 20,000 BC 2009 AD
70 मृत्यु के बाद जीवन वेद > 20,000 BC not sure still.
71 भ्रूण का स्थानांतरण Sankarshana >5626 BC 20th century.
72 Out of Earth Ambareesh [thrown (EEsh) in sky (Ambar)]  Vishwamitra >Ramayan of 7300 BC 1956 AD.
73 डायनासौर की सूचना  महाभारत 5500 BC 20th century
74 मन/बुद्धि(mind)  की क्लोनिंग      ऋग्वेद कहता है - यह असंभव  है !!! करने का स्वप्न देख रहे है :D -
 मुर्ख कभी नही कर पाएंगे !!
75 वर्ग घन मूल आदि  यजुर्वेद रूद्र > BC era 16th century


उपरोक्त संपूर्ण जानकारी डाo पद्माकर विष्णु वार्ताक  (वेद विज्ञान मंडल,पूणे) द्वारा हमारे शाश्त्रों पर गहन शोध कर प्राप्त की गई है । 
तथा वे उपरोक्त पर प्रमाण सहित अनेकों पुस्तकें लिख चुके है यहाँ देखें  

http://www.drpvvartak.com/

जब हमारे पूर्वज सम्पूर्ण ज्ञान पुस्तकों में समाविष्ट कर चुके थे तब विदेशी जाती अस्तित्व में ही नही थी । उस समय विदेशी धरती 1 किमी मोटी  बरफ के निचे थी  --referred to as the quaternary ice age.


डाo पद्माकर विष्णु वार्ताक द्वारा बनाई गई ग्रन्थ समय तालिका अवश्य देखें |

http://www.vedicbharat.com/2013/03/ancient-indian-sanskrit-texts-time-table.html

इस महान कार्य के लिए हम उनका ह्रदय से धन्यवाद करते है |

दोष अंग्रेजों द्वारा चलाई हमारी आधुनिक शिक्षण पद्धति का है जिसमे हमें यह सोचने पर मजबूर किया गया की हमारे पूर्वज आदि वासी - जंगली जीव थे, कंद मूल खाते थे । किन्तु उनके कंद मूल खाने में हमें यह नही दीखता प्रकृति प्रदत कंद मूल फल आदि में विटामिन्स, खनिज आदि भरपूर मात्र में होते है जो पकाने से नष्ट हो जाते है और पकाने की प्रक्रिया में प्रकृति का कितना नुकसान होता है । 
उन जंगलियों का ही कमाल है की आज गोरे उनकी लिखी धर्म पुस्तकों को 5-5 6-6 बार पढ़ चुके है फिर भी गूढ ज्ञान उनके भेजे में नही घुस रहा ।
भारतीय संस्कृति से सदेव राक्षसों को ईर्ष्या  रही है : ऐसे किस्से हमें पुराणो आदि में मिलते रहते है । परन्तु आज हमें देखने को भी मिल रहे है |  इससे पुराणों के वे किस्से स्व सिद्ध हो जाते है |

जब तक विदेशी और उनके एजेंट सत्ता में रहेंगे तब तक यही चलता रहेगा  |
महान आचार्य चाणक्य ने एक बार कहा था की जब कभी कोई विदेशी व्यक्ति तुम्हारे देश अथवा राज्य पर शासन करने लगे तो सचेत हो जाओ अन्यथा उन देश की सभ्यता का पतन निश्चित है ।  

हमारे ग्रन्थ रूपी ज्ञान के भंडार कई तो नष्ट किये  जा चुके है, तक्षशिला तथा नालंदा विश्वविधालयों की समस्त पुस्तकें ईर्ष्या  वश अग्नि की भेंट चढा दी गई तथा यवनों के आक्रमण के समय कई महीनो तक  यवनों का नहाने का पानी पुस्तकों को चूल्हे में दे दे कर गर्म होता रहा |

एक बार एक अंगेज ने एक भारतीय से कहा : तुम लोगो को आता ही क्या ?
हर चीज तो हमारे देशों से इम्पोर्ट करते हो ।
भारतीय बोला : पहले तो तु  हमारा शून्य, बाइनरी संख्या, परमाणु बम का आईडिया, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का आईडिया,विमान शास्त्र, योग विज्ञान और भारत से लुटा हुआ सेंकडों जहाज स्वर्ण, रजत , हीरे आदि लौटा और धो कर आ । फिर बात कर । 



मित्रों, भाइयों व बहिनों अब समय आ गया है हमें भी वेदों की और कूच करनी चाहिए |

TIME TO BACK TO VEDAS



|| सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ||
जय शंकर