अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त
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गुरुवार, 23 मई 2013

गौत्र प्रणाली :आनुवंशिक विज्ञान | Hindu Gotra System: Genetics Science

इस लेख के माध्यम से हम उन लोगों के मुख पर तमाचे जड़ेंगे जो गौत्र प्रणाली को बकवास कहते है । 
गौत्र शब्द का अर्थ होता है वंश/कुल  (lineage)। 
गोत्र प्रणाली का मुख्या उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके  मूल प्राचीनतम व्यक्ति से जोड़ना है उदहारण के लिए यदि को व्यक्ति कहे की उसका गोत्र भरद्वाज है तो इसका अभिप्राय यह है की उसकी पीडी वैदिक ऋषि भरद्वाज से प्रारंभ होती है या ऐसा समझ लीजिये की वह व्यक्ति ऋषि भरद्वाज की पीढ़ी में जन्मा है । 
इस प्रकार गोत्र एक व्यक्ति के पुरुष वंश में मूल प्राचीनतम व्यक्ति को दर्शाता है.
The Gotra is a system which associates a person with his most ancient or root ancestor in an unbroken male lineage.


ब्राह्मण स्वयं को निम्न आठ ऋषियों (सप्तऋषि +अगस्त्य ) का वंशज मानते है । 

जमदग्नि, अत्रि , गौतम , कश्यप , वशिष्ठ ,विश्वामित्र, भरद्वाज, अगस्त्य 
Brahmins identify their male lineage by considering themselves to be the descendants of the 8 great Rishis ie Saptarshis (The Seven Sacred Saints) + Agastya Rishi
उपरोक्त आठ ऋषि मुख्य गोत्रदायक ऋषि कहलाते है ।  तथा इसके पश्चात जितने भी अन्य गोत्र अस्तित्व में आये  है वो इन्ही आठ मेसे एक से फलित हुए है और स्वयं के नाम से गौत्र स्थापित किया . उदा० माने की 
अंगीरा की ८ वीं  पीडी में कोई ऋषि क हुए तो परिस्थतियों के अनुसार  उनके नाम से गोत्र चल पड़ा। और इनके वंशज क गौत्र कहलाये किन्तु क गौत्र स्वयं अंगीरा से उत्पन्न हुआ है । 
इस प्रकार अब तक कई गोत्र अस्तित्व में है । किन्तु सभी का मुख्य गोत्र आठ मुख्य गोत्रदायक ऋषियों मेसे ही है । 
All other Brahmin Gotras evolved from one of the above Gotras. What this means is that the descendants of these Rishis over time started their own Gotras. All the  established Gotras today , each of them finally trace back to one of the root 8 Gotrakarin Rishi.

गौत्र प्रणाली में पुत्र का महत्व  |  Importance of Son in the Gotra System:
जैसा की हम देख चुके है गौत्र द्वारा पुत्र व् उसे वंश की पहचान होती है । यह गोत्र पिता से स्वतः ही पुत्र को प्राप्त होता है । परन्तु पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता ।  उदा ०  माने की एक व्यक्ति का  गोत्र अंगीरा है 
और उसका एक पुत्र है । और यह पुत्र एक कन्या से विवाह करता है जिसका पिता कश्यप गोत्र से है । तब लड़की का गोत्र स्वतः ही 
गोत्र अंगीरा में परिवर्तित हो जायेगा जबकि कन्या का पिता कश्यप गोत्र से था । 
इस प्रकार पुरुष का गोत्र अपने पिता का ही रहता है और स्त्री का पति के अनुसार होता है न की पिता के  अनुसार । 
यह हम अपने देनिक जीवन में देखते ही है , कोई नई  बात नही !
परन्तु ऐसा क्यू ?
पुत्र का गोत्र महत्वपूर्ण और पुत्री का नही । क्या ये कोई  अन्याय है ??
बिलकुल नही !!
देखें कैसे :

गुणसूत्र और जीन । Chromosomes and Genes
गुणसूत्र का अर्थ है वह सूत्र जैसी संरचना जो सन्तति में माता पिता के गुण पहुँचाने का कार्य करती है । 
हमने १ ० वीं कक्षा में भी पढ़ा था की मनुष्य में २ ३ जोड़े गुणसूत्र होते है । प्रत्येक जोड़े में एक गुणसूत्र माता से तथा एक गुणसूत्र पिता से आता है । इस प्रकार प्रत्येक कोशिका में कुल ४ ६ गुणसूत्र होते है जिसमे २ ३ माता से व् २ ३ पिता से आते है । 

जैसा की कुल जोड़े २ ३ है । इन २ ३ में से एक जोड़ा लिंग गुणसूत्र कहलाता है यह होने वाली संतान का लिंग निर्धारण करता है अर्थात पुत्र होगा अथवा पुत्री । 
यदि इस एक जोड़े में गुणसूत्र xx हो तो सन्तति पुत्री होगी और यदि xy हो तो पुत्र होगा । परन्तु दोनों में x सामान है । जो माता द्वारा मिलता है और शेष रहा वो पिता से मिलता है । अब यदि पिता से प्राप्त गुणसूत्र x हो तो  xx मिल कर स्त्रीलिंग निर्धारित करेंगे और यदि पिता से प्राप्त y हो तो पुर्लिंग निर्धारित करेंगे । इस प्रकार x पुत्री के लिए व् y पुत्र के लिए होता है । इस प्रकार पुत्र व् पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुणसूत्र पर निर्भर होता है माता पर नही । 

अब यहाँ में मुद्दे से हट कर एक बात और बता दूँ की जैसा की हम जानते है की पुत्र की चाह रखने वाले परिवार पुत्री उत्पन्न हो जाये तो दोष बेचारी स्त्री  को देते है जबकि अनुवांशिक विज्ञानं के अनुसार जैसे की अभी अभी उपर पढ़ा है की "पुत्र व् पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुणसूत्र पर निर्भर होता है  न की माता पर "
फिर भी दोष का ठीकरा स्त्री के माथे मांड दिया जाता है । ये है मुर्खता !
जैसा की पाकिस्तानी फिल्म 'बोल' में दिखाया गया था । 
http://www.imdb.com/title/tt1891757/

अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है । 
इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र). इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही !
और यदि पुत्री हुई तो (xx  गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है । 

१. xx गुणसूत्र ;-
xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों  का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है । 

२. xy गुणसूत्र ;- 
xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र . पुत्र में गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover  नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है । 


तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ ।  क्यू की गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है । 
बस इसी गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था । 


वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । Y Chromosome and the Vedic Gotra System

अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है । 
उदहारण के लिए यदि किसी  व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस गुणसूत्र के मूल है । 
चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारन है की विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है । 

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारन यह है की एक ही गोत्र से होने के कारन वह पुरुष व् स्त्री भाई बहिन कहलाये क्यू की उनका पूर्वज एक ही है । 
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही? की जिन स्त्री व् पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो वे भाई बहिन हो गये .?
इसका एक मुख्य कारन एक ही गोत्र होने के कारन गुणसूत्रों में समानता का भी है । आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो  उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी । 

ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था।



first cousin marriage increases the risk of passing on genetic abnormalities. But for Bittles, 35 years of research on the health effects of cousin marriage have led him to believe that the risks of marrying a cousin have been greatly exaggerated.
There's no doubt that children whose parents are close biological relatives are at a greater average risk of inheriting genetic disorders, Bittles writes. Studies of cousin marriages worldwide suggest that the risks of illness and early death are three to four percent higher than in the rest of the population.

http://www.eurekalert.org/pub_releases/2012-04/nesc-wnm042512.php


http://www.huffingtonpost.com/faheem-younus/why-ban-cousin-marriages_b_2567162.html
http://www.thenews.com.pk/Todays-News-9-160665-First-cousin-marriages




अब यदि हम ये जानना चाहे की यदि चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी आदि बहिनों से विवाह किया जाये तो क्या क्या नुकसान हो सकता है ।  इससे जानने के लिए आप उन समुदाय के लोगो के जीवन पर गौर करें जो अपनी चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहिनों से विवाह करने में १ सेकंड भी नही लगाते । फलस्वरूप उनकी संताने बुद्धिहीन , मुर्ख , प्रत्येक उच्च आदर्श व्  धर्म (जो धारण करने योग्य है ) से नफरत , मनुष्य-पशु-पक्षी आदि से  प्रेमभाव का आभाव आदि जैसी मानसिक विकलांगता अपनी चरम सीमा पर होती है । 
या यूँ कहा जाये की इनकी सोच जीवन के हर पहलु में विनाशकारी (destructive) व् निम्नतम होती है तथा न ही कोई रचनात्मक (constructive), सृजनात्मक , कोई वैज्ञानिक गुण , देश समाज के सेवा व् निष्ठा आदि के भाव होते है । यही इनके पिछड़ेपन  का प्रमुख कारण  होता है । 
उपरोक्त सभी अवगुण गुणसूत्र , जीन व् डीएनए आदि में विकार के फलस्वरूप ही उत्पन्न होते  है । 
इन्हें वर्ण संकर (genetic mutations) भी कह सकते है !! 
ऐसे लोग अक्ल के पीछे लठ लेकर दौड़ते है । 


खैर ,, 

यदि आप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जानकार है तो गौत्र प्रणाली को आधुनिक सॉफ्टवेयर निर्माण की भाषा  ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग (Object Oriented Programming : oop) के माध्यम से भी समझ सकते है । 
Object Oriented Programming के inheritance नामक तथ्य को देखें । 
हम जानते है की inheritance में एक क्लास दूसरी क्लास के function, variable आदि को प्राप्त कर सकती है । 


दायाँ चित्र multiple inheritance का है इसमें क्लास b व् c क्लास a के function, variable को प्राप्त (inherite) कर रही है । और क्लास d क्लास b , c दोनों के function, variable को एक साथ प्राप्त (inherite) कर रही है। 
अब यहाँ भी हमें एक समस्या का सामना करना पड़ता है जब क्लास b व् क्लास c में दो function या  variable एक ही नाम के हो !
उदा ० यदि माने की क्लास b में एक function abc नाम से है और क्लास c में भी एक function abc नाम से है। 
जब क्लास d ने क्लास b व् c को inherite किया तब वे एक ही नाम के दोनों function भी क्लास d में प्रविष्ट हुए । जिसके फलस्वरूप दोनों functions में टकराहट के हालात पैदा हो गये । इसे प्रोग्रामिंग की भाषा में ambiguity (अस्पष्टता) कहते है । जिसके फलस्वरूप प्रोग्राम में error उत्पन्न होता है । 

अब गौत्र प्रणाली को समझने के लिए केवल उपरोक्त उदा ० में क्लास को स्त्री व् पुरुष समझिये , inherite करने को विवाह , समान function, variable को समान गोत्र तथा ambiguity को आनुवंशिक विकार । 



वैदिक ऋषियों के अनुसार कई परिस्थतियाँ ऐसी भी है जिनमे गोत्र भिन्न होने पर भी विवाह नही होना चाहिए । 

देखे कैसे :
असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितु:
सा प्रशस्ता द्विजातिनां दारकर्मणि मैथुने  ....मनुस्मृति ३ /५ 

जो कन्या माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो , उस कन्या से विवाह करना उचित है । 



When the man and woman do not belong to six generations from the maternal side
and also do not come from the father’s lineage, marriage between the two is good.
-Manusmriti 3/5

उपरोक्त मंत्र भी पूर्णतया वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है देखें कैसे :

वह कन्या पिता के गोत्र की न हो अर्थात लड़के के पिता के गोत्र की न हो । 
लड़के का गोत्र = पिता का गोत्र 
अर्थात लड़की और लड़के का गोत्र भिन्न हो। 
माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो । 
अर्थात पुत्र का अपनी माता के बहिन के पुत्री की पुत्री की पुत्री ............६ पीढ़ियों तक विवाह वर्जित है।  
Manusmriti 3/5 चित्र देखें (बड़ा करने के लिए चित्र पर क्लिक करें )

हिनक्रियं निष्पुरुषम् निश्छन्दों रोम शार्शसम् । 
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठीकुलानिच । । .........मनुस्मृति ३ /७ 
जो कुल सत्क्रिया से हिन्,सत्पुरुषों से रहित , वेदाध्ययन से विमुख , शरीर पर बड़े बड़े लोम , अथवा बवासीर , क्षय रोग , दमा , खांसी , आमाशय , मिरगी , श्वेतकुष्ठ और गलितकुष्ठयुक्त कुलो की कन्या या वर के साथ विवाह न होना चाहिए , क्यू की ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में प्रविष्ट हो जाते है । 

आधुनिक आनुवंशिक विज्ञानं  से भी ये बात सिद्ध है की उपरोक्त बताये गये रोगादि आनुवंशिक होते है । इससे ये भी स्पष्ट है की हमारे ऋषियों को गुणसूत्र संयोजन आदि के साथ साथ आनुवंशिकता आदि का भी पूर्ण ज्ञान था । 


हिन्दू ग्रंथों के अतिरिक्त किसी अन्य में ऐसी विज्ञानं मिलना पूर्णतया असंभव है., मेरा दावा है !!!!

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/11/gotra-system-khap-rules-y-chromosome.html

                                                  ॐ शांति शांति शांति । Grace and Peace


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

भ्रूणविज्ञान : श्री मदभागवतम् | Embryology in Srimad Bhagavatam

In English : {Detailed}
EMBRYOLOGY AND CHROMOSOMES FROM SHRIMAD BHAGAWATAM

भ्रूणविज्ञान (Embryology) का अर्थ है अपने अपरिपक्व अवस्था में गर्भ में  मानव जीव का  अध्ययन ।

यह आमतौर पर कहा जाता है कि यूरोपीय देशों ने मानव जीवन के विकास को समझने का वैज्ञानिक अध्ययन किया तथा  भारत में इससे सम्बन्धी कोई खोज नही  हुई  . भारतीयों ने केवल जीवन दर्शन (philosophy) के बारे में सोचा.

कहा जाता है की भ्रूणविज्ञान पर प्राचीनतम शोध  वैज्ञानिक Aristotle (अरस्तू) (384 - 322 ई.पू.) ने की ।

महाभारत  लगभग 5561 ईसा पूर्व लिखी गई तथा श्री मदभागवतम् लगभग 1652 ईसा पूर्व लिखी गई मानी जाती है ।


महाभारत  तथा भागवत में भ्रूणविज्ञान से सम्बंधित दुनिया भर की जानकारी भरी पड़ी है ।

हमारे महान ऋषियों ने यह जान लिया था की स्त्री व पुरुष के स्राव (secretions) द्वारा रज/डिंब  (ovum) तथा शुक्राणु  (sperm) के मिलन फलस्वरूप भ्रूण (Fetus) की उत्पति होती है तत्पश्चात जीव पनपता है ।

महाभारत के शांति पर्व 117,301, 320, 331, 356 तथा भागवत 3/31 में वर्णन मिलता है की  शुक्र का एक कण शोणित के साथ क्रिया कर कलल  का निर्माण करता है ।   शुक्र  तथा शोणित को क्रमश : शुक्राणु (sperm) और अंडाणु  (ovum) तथा कलल को युग्मनज या निषेचित डिंब (Zygote)  भी कहा जाता है ।

भागवत में कहा गया है कि केवल एक ही रात में अर्थात लगभग 12 घंटे के समय में ही कलल  का निर्माण हो जाता है ।
 कलल  आगे 5 रातों के पश्चात बुलबुले  (bubble stage) रूप में आ जाता है (भागवत ३/३१/२ )

आधुनिक विज्ञानं का भी यही मत है ।  दस दिन में बेर के समान कुछ कठिन हो जाता है तथा 11 वें दिन का भ्रूण अंड (oval shaped) की भांति दिखाई पड़ता है ।

इस प्रकार भ्रूण में 15  दिनों में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों (microscopic changes) का वर्णन मिलता है । आधुनिक विज्ञानं को ये सब जानने के लिए न जाने कोन  कोन सी पचासों मशीनों का प्रयोग करना पडता है ।

भागवत 3/31/3 में लिखा है प्रथम महीने के अंत तक भ्रूण का सिर विकसित हो जाता है ।
आधुनिक विज्ञान में 30-32 दिन के भ्रूण का सिर साफ़ साफ़ देखा जा सकता है ।


आगे  लिखा है  कि गर्भावस्था के दूसरे महीने में भ्रूण के हाथ-पाँव  और शरीर के अन्य भागों को विकसित होने लगते है.

6-8  सप्ताह (42-56  दिन ) के  भ्रूण में हाथ-पाँव  और शरीर के अन्य भाग आप इस चित्र में देख सकते है ।
बड़ा करने के लिए चित्र  क्लिक करें ।

A six week embryonic age or eight week gestational age intact Embryo, found in a Ruptured Ectopic pregnancy case.

आधार: विकीपीडिया
http://en.wikipedia.org/wiki/File:Human_Embryo.JPG

गर्भावस्था के तीसरे महीने में  नाखून, बाल, हड्डियां और त्वचा विकसित होने लगती है तथा जननांग विकसित होने लगते है तथा कुछ समय पश्चात गुदा (Anus ) का निर्माण होता है ।

 आधुनिक मत के अनुसार 8 सप्ताह (56 दिन =  लगभग 2 माह ) के भ्रूण  में जननांग पाए जाते है तथा पूर्णतया प्राप्त करने में तीसरा महिना आ ही जाता है ।

तथा आगे लिखा है चोथे महीने में सात प्रकार की धातुओं (tissues) का निर्माण होता है जो इस प्रकार है :

 रस  (tissue fluids), रक्त  (blood), स्नायु  (muscles), मेदा  (fatty tissue), अस्थी (bones), मज्जा  (nervous
tissue) तथा शुक्र (reproductive tissue). आधुनिक विज्ञानं का भी यही मत है ।


पांचवे महीने में शिशु में भूख तथा प्यास विकसित होती है ।  हालांकि कुछ समय पूर्व तक आधुनिक विज्ञान इसे समझ नही पाई थी परन्तु नवीनतम प्रयोगों के आधार पर यह सत्य सिद्ध होता है | देखें कैसे ?

जातविष्ठा (मल)   पेट में ग्रहणी से मलाशय तक पाया जाता है जिसमे स्वयं भ्रूण  के ही  बाल (lanugo hairs) तथा उपकला कोशिकाएँ  भी  शामिल होती  है ।   ये सभी  भ्रूण की आंत तक एमनियोटिक द्रव निगलने के फलस्वरूप ही पहुँच सकते हैं  । एमनियोटिक द्रव (amniotic fluid)  वह द्रव है जिसमे भ्रूण स्थित  होता है  । बाल (lanugo hairs) और उपकला कोशिकाएँ भ्रूण की  त्वचा द्वारा ही एमनियोटिक द्रव में गिरती है जिसे भ्रूण ग्रहण करता है ।  और  इन  बालो (lanugo hairs) तथा उपकला कोशिकाओं का शिशु की आंतों में पाया जाना  जठरांत्र संबंधी मार्ग  के कार्य सुचारू कार्य करने को दर्शाता है ।
 अर्थात पांचवे महीने में शिशु का जठर तंत्र तथा आंते आदि कार्य करने लगते है तथा यह भी निश्चित है  की शिशु का एमनियोटिक द्रव ग्रहण करना एक स्व  प्रक्रिया  नही  है अपितु  शिशु की भूख तथा प्यास को दर्शाता है । शिशु को भूख तथा प्यास की अनुभूति होने के फलस्वरूप ही वह एमनियोटिक द्रव ग्रहण करता है ।


छठे महीने में शिशु गर्भ में घूर्णन करने लगता है अर्थात करवट लेने लगता है तथा कई प्रकार के ढकाव (एमनियोटिक द्रव/उतकों  आदि ) द्वारा घिरा रहता है    

सातवे महीने में शिशु का मस्तिष्क कार्य करने लगता है और 7 महीने का शिशु व्यवहार्य हो जाता है ।

आधुनिक विज्ञान इस तथ्य को हाल ही में हुए एक प्रयोग के पश्चात समझ पाई है ।

श्री कृष्ण के भांजे अभिमन्यु ने युद्ध कला गर्भ में ही सीखी थी यह बात भी इससे सिद्ध होती है यहाँ देखें ।
http://www.vedicbharat.com/2013/03/the-tale-of-abhimanyu-turned-out-to-be-true-mahabharata.html


अभिमन्यु ने युद्ध कला गर्भ में सीखी इस तथ्य को विदेशी तो दूर हम भारतीय भी अब तक मिथ्या मानते थे । किन्तु आधुनिक विज्ञान में सिद्ध होने के पश्चात हमने इसे माना ।
कितने मुर्ख है हम ।
हमने  200 वर्षों तक गोरो के डंडे खाए  है , गुलाम मानसिकता इतनी जल्दी थोड़ी जाएगी !!!

हमारी प्राचीन परंपराओं में गर्भवती स्त्री को अच्छी पुस्तके तथा रामचरितमानस आदि पढने के सलाह दी जाती थी । इससे भी यह स्पष्ट है की हमारे पूर्वज इस तथ्य को जानते थे की  6-7 माह का शिशु सिखने लगता है  अर्थात व्यवहार्य  हो जाता है ।

आगे कहा  गया है कि भ्रूण अपनी माँ द्वारा किये गये भोजन आदि के  पोषण से ही बढ़ता है. तथा शिशु स्वयं द्वारा किये गए  मूत्र और मल तथा एमनियोटिक द्रव के बिच ही बढ़ता रहता है ।

कुछ वर्ष पूर्व तक आधुनिक विज्ञान का मानना तथा की शिशु अपनी माता  के अपशिस्ट  पदार्थ में पलता है किन्तु अब यह सिद्ध हो चूका है की वह अपशिस्ट  माता का नही वरन स्वयं शिशु का ही होता है ।

8वे श्लोक में कपिल मुनि लिखते है  कि शिशु अपनी पीठ और सिर के बल पर ही  स्थित होता है .


9वे श्लोक  का कहना है कि शिशु साँस लेने में असमर्थ  होता है  क्योंकि शिशु एमनियोटिक द्रव में निहित होता है  जिसके कारन साँस लेने की आवश्यकता नही होती .शिशु को ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व माँ के खून द्वारा प्राप्त होते  है .

किन्तु कितने दुःख की बात है आज के अपनी स्त्रियों के गुलाम पुरुषों के राजमहल में अपनी माँ के लिए  एक कमरा भी नही ?? डूब मरो जल्दी से जल्दी !!!    

श्लोक  22 में  कपिल मुनि लिखते  है कि 10 महीने में भ्रूण को नीचे की और प्रसूति वायु द्वारा धकेला जाता है ।
इस प्रकार गर्भ में भ्रूण से शिशु निर्माण की प्रक्रिया सूक्ष्म रूप से भागवत 2/10/17 से 22, 3/6/12 से 15 तथा 3/26/54 से 60 में मिलता है जिसमे  मुह,नाक,आँखे,कान, तालू, जीभ और गला आदि शामिल है । तथा (3/6/1 से 5) तक में  जिव निर्माण में योगदान देने वाले 23 गुणसूत्रों का भी वर्णन मिलता है ।

आधुनिक विज्ञान में कहा गया है  एक शुक्राणु के 22 गुणसूत्र, एक अंड के साथ मिलकर भ्रूण निर्माण करते है ।  बिलकुल यही तथ्य आज से लगभग 7500 वर्ष पूर्व लिखी गई महाभारत में भी मिलता है ।

भागवत (2/10, 3/6, 3/26) में लिखा है जननांग तथा  गुदा आदि के पश्चात ह्रदय का निर्माण होता है । यह तथ्य   1972 में H.P.Robinson द्वारा  Glasgow University में ultrasonic Doppler technique के माध्यम से सिद्ध किया  जा चुके है ।

भागवत में लिखा है दोनों कानो में प्रत्येक का कार्य ध्वनी तथा दिशा का ज्ञान करना है यह तथ्य 1936 में Ross तथा Tait  नामक वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध किया गया की दिशा का गया आन्तरिक कान में स्थित Labyrinth नामक संरचना द्वारा होता है । इसका वर्णन ऐतरेय उपनिषद (लगभग 6000 से 7000  ईसा पूर्व ) 1/1/4 तथा 1/2/4 में भी मिलता है ।

ऐसे कई प्रश्न  है जिसका उत्तर आधुनिक विज्ञान के पास नही है क्योंकि उनके पास केवल भोतिक ज्ञान है अध्यात्मिक नही ।  हमारे ऋषियों के पास प्रत्येक प्रश्न का उतर  था  क्योकि वे भोतिक के  साथ  अध्यात्मिक ज्ञान में  भी धुरंदर थे ।

उदहारण के लिए : हम जानते है की निषेचन के पश्चात करोडो शुक्राणु, एक मादा अंड की ओर दौड़ते है किन्तु केवल एक ही शुक्राणु अंड में प्रवेश करने में सफल होता है और भ्रूण का  निर्माण करता है ।

आधुनिक विज्ञानियों के पास इसका कोई उतर नही की करोडो की  दौड़ में एक ही जीता बाकि मुह देखते रह गये ?

परन्तु ऋषियों के पास इसका सॉलिड उतर था । उन्होंने कहा जीवात्मा अमर है जैसा की श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है ।  मृत्यु  के पश्चात आत्मा भोतिक शरीर को  छोड़कर भुवर्लोक में गमन करती है । वर्षा द्वारा पुनः पृथ्वी पर आती है वर्षा जल पेड-पोधों द्वारा अवशोषित किया जाता है  इस प्रकार जीवात्मा खाद्यान्न (food grain) में प्रवेश करती है। जो भोजन के साथ पुरुष के शरीर में पहुँचती है और शुक्राणु बनता है ।
ओर जब करोडो शुक्राणुओ की दौड़ प्रारंभ होती है वही एक शुक्राणु विजयी होता है जिसमे प्राण/जीवात्मा निहित होती है । वही जीवआत्मा  (जो परमआत्मा (ईश्वर) का अंश है) उस शुक्राणु का मार्ग दर्शन कर विजयी बनाती है ।

जबकि आधुनिक विज्ञान का कहना है की यह एक अवसर मात्र ही है की कोई एक जीत  गया ।

इसी प्रकार का एक और प्रश्न  है की प्रसव (delivery) के लिए कोन उतरदायी है विज्ञान के पास दो उतर है या तो माँ या फिर स्वयं शिशु ।

यदि माँ प्रसव के लिए उतरदायी है तो प्रत्येक प्रसव काल (gestation period) में परिवर्तन क्यों ?
और यदि शिशु उतरदायी है तो सातवे महीने में शिशु का मस्तिष्क कार्य करने लगता है फिर भी वह दो महीने और गर्भ में क्यो ठहरता है ?

ऋषियों का कहना है की जब शिशु में प्राण प्रवेश करता है तब वह एमनियोटिक द्रव से बाहर निकने की चेष्टा करता है और दुनिया में आता है ।  इस प्रकार प्रसव, प्राण पर निर्भर करता है न की माता पर और  न ही शिशु पर ।
भागवत 3/26/63 से 70 में लिखा है की जब शिशु का प्रत्येक अंग आदि कार्य करने प्रारंभ कर देते है तब तक भी वह द्रव से बाहर नही निकलता जब तक अंततः  उसके चित में क्षेत्रज आत्मा का प्रवेश नही होता ।

उपरोक्त समस्त अध्यन microscope आदि के अभाव में नही किये जा सकते । इससे यह भी स्पस्ट है की उस समय microscope जैसे यन्त्र भी थे !

कोशिका विभाजन 
भागवत 3/6/7 में लिखा है की
भ्रूण सर्वप्रथम एक बार विभाजित होता है,
ऐसा दस बार होता है
और फिर तिन बार और होता है ।
उपरोक्त को तिन अलग अलग बार लिखा गया है क्योंकि विभाजन तीन परतों/चरणों में होता है ।
प्रत्येक विभाजन में पहले निर्मित कोशिकाओं से संख्या दुगुनी हो जाती है ।

इन्ही बढ़ती हुई कोशिकाओं से भ्रूण के शरीर का विकास होता है ।
आधुनिक विज्ञान में इन तीन चरणों को ectoderm, endoderm तथा mesoderm कहा जाता है ।


मात्र  साफ़, महंगे विदेशी  वस्त्र पहनने तथा टाई लटका लेने से कोई बुद्धिमान नही हो जाता ।  उपरोक्त सारे अनुसन्धान हमारे ऋषि लोगो ने भगवा धारण किये ही किये थे । 




साभार : श्री पद्माकर विष्णु वार्तक, वेद विज्ञान मंडल, पूणे। 

अधिक जानकारी के लिए देखें :
EMBRYOLOGY AND CHROMOSOMES FROM SHRIMAD BHAGAWATAM {Detailed}


इससे भी अधिक जानकारी के लिए श्री मदभागवत पढ़े ।





आज यदि हमारे ग्रंथो पर पुनः शोध आरंभ की जाये  तो भारत निश्चय ही पुनः विश्व गुरु  सकता है । 

किन्तु हो उल्टा ही रहा है विदेशी हमारे ग्रंथो पर शोध करने में डूबे हुए है ये एक दक्षिण अफ्रीका की वेब साईट है  
http://www.hinduism.co.za/index.html

जो सनातन धर्म को समर्पित है इस साईट में जा कर जरा बायीं और मेन्यु तो देखें । 

.co.za domain south africa का है ठीक उसी प्रकार जैसे co.in india के लिए है यहाँ देखें : 

http://www.africaregistry.com/

इसी प्रकार एक अमेरिकन stephen knapp ने वेदों आदि पर गहन शोध की है :

http://stephen-knapp.com/
25-30 पुस्तकें भी लिख चुके है । 

https://www.facebook.com/stephen.knapp.798

इसके अतिरिक ऐसे कितने ही प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के नाम हम आपको गिना सकते है जिन्होंने वेद-उपनिषद भर पेट पढ़े जैसे : निकोल टेस्ला, श्रोडेंगर, आइंस्टीन, नील्स बोहर, राबर्ट औपेन हाइमर, कार्ल सेगन.................



Quantum Physics came from the Vedas: Schrödinger, Einstein and Tesla were all Vedantists.


यहाँ देखें :


NASA तो संस्कृत के पीछे पागल है यहाँ देखें :
http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl

America is creating 6th and 7th generation super computers based on Sanskrit language. Project deadline is 2025 for 6th generation and 2034 for 7th generation computer. After this there will be a revolution all over the world to learn Sanskrit.
-A NASA scientist

http://www.ariseindiaforum.org/they-broke-our-vedic-back-bone/

हम पेंटियम 4 चला कर प्रसन्न हो रहे है पेंटियम 6-7  बनने वाला है पूरा : संस्कृत में  


"अमेरिका की यूनीवर्सिटी में गीता पढ़ना अनिवार्य"
यहाँ देखे :

http://khabar.ibnlive.in.com/news/6405/2


ये बिकाऊ भांड दलाल  मीडिया कभी भी इस प्रकार की गौरवांवित करने वाली खबरे टीवी पर नही दिखाएगा 


हमेशा रोने पीटने की ख़बरें ही दिखायेगा ।  सब धन की माया है !!!


मैं पूछता हूँ  हम कब तक गुलाम बने रहेगे ???




TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्






शनिवार, 2 मार्च 2013

श्री कृष्ण के भांजे अभिमन्यु की कथा की पुष्टि {Abhimanyu's Tale}

महाभारत आदि को मिथ्या मानने वालो के मुँह पर एक और थाप |

महाभारत के इस प्रसंग को सभी जानते है की एक समय जब श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा गर्भ धारण किये हुए थी तब श्री कृष्ण उन्हें चक्रव्युह का तोड़ बता रहे थे असल में श्री कृष्ण तो ठहरे सर्वज्ञ, वे बता तो उसी शिशु (अर्जुन पुत्र :-अभिमन्यु) को रहे थे जो  सुभद्रा के गर्भ में था क्योंकि वे जानते थे की इस शिशु को आगे जा कर इस रणनीति की परम आवश्यकता पड़ेगी । परन्तु नियति कुछ और ही थी । चक्रव्युह का वर्णन सुनते सुनते सुभद्रा जी की आंख लग गई और वर्णन केवल चक्रव्युह में घुसने (तोड़ने) तक ही हो पाया था निकलने का सुनने से पूर्व ही सुभद्रा जी सो गई । और इसी कारण श्री अभिमन्यु चक्रव्युह में घिर कर ही वीरगति को प्राप्त हुए थे |
इस प्रसंग को श्री व्यास जी ने इस प्रकार लिखा है :


ओम ओम ओम
श्री कृष्णेन सुभद्राये गर्भवत्येनिरुपितम
चक्रव्यूह प्रवेशस्य रहस्यम चातुदम्भितत
अभिमन्यु स्तिथो गर्भे द्विवेद्यनानयुतो श्रुणो
रहस्यम चक्रव्यूहस्य स.म्पूर्णम असत्यातवा

यदार्जुनो गतोदुरम योदूं सम्शप्तदैसः
अभिमन्यु.म बिनानान्यः समर्द्योव्यूहभेदने
भेदितेचक्रव्यूहेपि अतएव विबिणेवा
पार्थपुत्रस्य एकाकी कौरवे निगुर्णेवतः



लोग इस पौराणिक कथा को कल्पना पर आधारित मानते हैं | ये कल्पना नही हमारा इतिहास है और अक्षर अक्षर सत्य है |

हालही में हुए एक प्रयोग (2 जनवरी 2013 को) में वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है के गर्भ के शिशुओं भी भाषण की ध्वनि सीखता है | तथा वैज्ञानिकों ने महाभारत के इस प्रसंग पर भी मुहर लगाई |
नवीनतम वैज्ञानिक सबूत से पता चला है कि बच्चे उनके गर्भ के समय से ही सुनते है और भाषा कौशल सीखते है। फ्रांसीसी वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्भ के बच्चे अपने जन्म के तिन महीने पहले ही भाषण ध्वनियों में अंतर करना सिख जाता है। (vedicbharat.com) अमेरिका में Pacific Lutheran University के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में पता लगाया है कि बच्चे गर्भाशय में भी मातृभाषा के विशिष्ट ध्वनियों चुन सकते हैं। अध्ययन ने इस अनुमान को नकार दिया है कि बच्चे पैदा होने के बाद ही भाषा सीखते है। “ यह पहला अध्ययन है जिससे पता चलता है की हम पैदा होने से पहले ही अपनी मातृभाषा की भाषण ध्वनियों को सीखते है ” - क्रिस्टीन मुन, जो अध्ययन का नेतृत्व कर रहे उन्होंने कहा:- ज्यादातर वैज्ञानिक अब आश्वस्त है कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने युद्ध के चक्रव्यूह गठन को भेदने की कला माँ सुभद्रा के गर्भ में सीखी।

जिन्हें केवल गोरी चमड़ी वालो का कहा सत्य लगता है वो यहाँ अपनी खुजली मिटायें :-

http://www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-2256312/Tale-Abhimanyu-true-scientists-babies-pick-language-skills-womb.html


http://www.washington.edu/news/2013/01/02/while-in-womb-babies-begin-learning-language-from-their-mothers/

http://www.abc.net.au/news/2013-02-26/unborn-babies-learn-sounds-of-speech3a-study/4541788

http://ilabs.uw.edu/

http://www.shrinews.com/DetailNews.aspx?NID=8237