अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त
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गुरुवार, 1 अगस्त 2013

क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे? | Was Hanuman A Monkey?


वाल्मीकि रामायण में मर्यादा पुरुषोतम श्री राम चन्द्र जी महाराज के पश्चात परम बलशाली वीर शिरोमणि हनुमान जी का नाम स्मरण किया जाता हैं। हनुमान जी का जब हम चित्र देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में चित्रित किया गया हैं जिनके पूंछ भी हैं। हमारे मन में प्रश्न भी उठते हैं की

क्या वाकई हनुमान जी बन्दर थे?

क्या वाकई में उनकी पूंछ थी ?

इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम लेकर परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।

आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते हैं सर्वप्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते हैं। सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते हैं की वानर का अर्थ होता हैं बन्दर परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता हैं वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते हैं उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते हैं। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते हैं उसमें उनकी पूंछ दिखाई देती हैं, परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती?

नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र हैं।

किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || ४-३-२८

“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं हैं तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया हैं। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती हैं”।

सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता जी को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते हैं

“यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।”

इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।

हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं

हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।

बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान।

चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद

राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।

भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकता हैं?

अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था की

“सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण हैं। जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता।”

किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये।

किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।

जहाँ तक जटायु का प्रश्न हैं वह गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ – हे आर्य जटायु ! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा हैं सन्दर्भ-अरण्यक 49/38

जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || ४९-३८

कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || ६८-६

यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा -मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु हैं सन्दर्भ -अरण्यक 50/4  (जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः | 50/4)

यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य का राजा नहीं हो सकते। इन प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की जटायु पक्षी नहीं था अपितु एक मनुष्य था जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में वास कर रहा था।

जहाँ तक जाम्बवान (जामवंत) के रीछ होने का प्रश्न हैं। जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे तब

किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के पास गये तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था। सन्दर्भ युद्ध कांड सर्ग 74/31-34

आपत काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता हैं और युद्ध जैसे काल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता हैं। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं दूसरे बुद्धि से परे की बात हैं।

इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धि पूर्वक पढने के पश्चात कौन मान सकता हैं की हनुमान, बालि , सुग्रीव आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य न होकर बन्दर आदि थे।

यह केवल मात्र एक कल्पना हैं और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन हैं।

अन्य प्रमाण ==

१- हनुमान जी की माता जी का नाम 'अंजनी' था. और पिता जी का नाम 'पवन' था. ये दोनों मनुष्य थे या बन्दर ?
यदि ये दोनों मनुष्य थे. तो क्या मनुष्यों के मनुष्य पैदा होते हैं या बन्दर ?
यदि बन्दर पैदा नहीं होते, तो विचार करें, कि जब हनुमान जी के माता पिता मनुष्य थे, तो उनका बेटा श्री हनुमान जी भी तो मनुष्य सिद्ध हुआ.

२- यदि कोई छोटा बच्चा कहीं पर भीड़ में खो जाये, तो एक बन्दर से कहो, कि वह उस बच्चे का फोटो देख कर भीड़ में से उस बच्चे को पहचान कर ले आये. अब सोचिये क्या वह बन्दर भीड़ में से बच्चे को पहचान कर ले आयेगा. यदि नहीं. तो क्या हनुमान जी सीता जी को लंका से ढूंढ कर उनकी खबर ले आये या नहीं. यदि उनकी खबर ढूंढ लाये, तो अब बताइये, बन्दर तो यह काम नहीं कर सकता.

३- आपने रामायण सीरिअल में बाली, सुग्रीव और उनकी पत्नियाँ तो देखी ही होंगी. उस सीरिअल में बाली और सुग्रीव तो बन्दर दिखाए गए.परन्तु उनकी पत्नियाँ मनुष्यों वाली स्त्रियाँ दिखाई गईं या बंदरियां दिखाईं. यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य जाति की थी. तो उनके पति भी मनुष्य होने चाहियें.
अर्थात बाली और सुग्रीव भी मनुष्य दिखने चाहिए थे. परन्तु वे दोनों बन्दर दिखाए गए.यदि वे बन्दर थे, तो सोचिये क्या मनुष्यों की स्त्रियों की शादी बंदरों के साथ होती है ? या आजकल भी कोई मनुष्य स्त्रियाँ बंदरों के साथ शादी करने को तैयार हैं ? यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य थीं, तो उनके पति = बाली और सुग्रीव भी मनुष्य ही सिद्ध हुए. और श्री हनुमान जी उनके महामंत्री थे. वे भी उसी जाति के थे. तो श्री हनुमान जी भी मनुष्य सिद्ध हुए.

४- वाल्मीकि रामायण में श्री हनुमान जी की योग्यता लिखी है, कि वे ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के विद्वान थे. तथा संस्कृत व्याकरण शास्त्र में बहुत कुशल थे. सोचिये, क्या बन्दर ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद तथा संस्कृत व्याकरण पढ़ सकता है ? यदि नहीं, तो बताइये, श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?

५- हनुमान चालीसा के प्रारंभ में चौथे/पांचवें वाक्य में लिखा है, कि
" काँधे मूंज जनेऊ साजे, हाथ बज्र और धजा बिराजे "
 अर्थात श्री हनुमान जी के कंधे पर मूंज की जनेऊ अर्थात यज्ञोपवीत सुशोभित होता था. उनके एक हाथ में वज्र (गदा) और दूसरे हाथ में ध्वज रहता था.
अब सोचिये हनुमान चालीसा बहुत लोग पढ़ते हैं. फिर भी इस बात पर ध्यान नहीं देते, कि क्या बन्दर के कंधे पर मूंज की जनेऊ हो सकती है. क्या बन्दर के एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में ध्वज होता है. यदि नहीं, तो श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?

मेरा सभी महानुभावों से विनम्र अनुरोध है, कृपया गुस्सा न करें और ठंडे दिल - दिमाग से सोचें. कि वेदों के महान विद्वान, महाबलवान, ब्रह्मचारी, तपस्वी श्री हनुमान जी को बन्दर बना कर उनका अपमान न करें, और पाप के भागी न बनें.

आदित्य ब्रह्मचारी, परम बलवान, चतुर और बुद्धिमान, श्री रामचंद्र जी के परम मित्र और सहायक , वेदों और व्याकरण के पंडित, अंजनी पुत्र श्री हनुमान ..... बन्दर नहीं थे. वे वेदों के बड़े विद्वान्, बलवान, ब्रह्मचारी और तपस्वी  थे.



http://www.scribd.com/doc/138085759/Hanuman-Bandar-Nahin-The




जय वीर हनुमान !


साभार -- http://www.voiceofaryas.com/history/hanuman/
http://vedicvoice.blogspot.in/2013/06/blog-post_459.html


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

रविवार, 28 जुलाई 2013

प्रेम (प्रेमा) साईं बाबा बेनकाब | Prema Sai Baba Exposed !


<< शिर्डी साईं बाबा बेनकाब भाग -२ 

अब तक प्रेमा साईं बाबा के बारे में लोग केवल इतना ही  जानते है की वो सत्य साईं बाबा का अवतार है
क्योकि जब सत्य साईं जीवित थे तब उन्होंने ये भविष्यवाणी की थी की वो अपनी मृत्यु के १ वर्ष पश्चात पुनः आयेंगे
प्रेमा साईं के बारे में सत्य साईं की वेबसाइट पर जो जानकारी दी गई है वो बताता हूँ :

इनका कहना है की प्रेमा साईं की सर्वप्रथम जानकरी 1963 में छपे "शिव शक्ति संवाद" में लिखी है जिसमे  बताया गया है की जब महर्षि भारद्वाज ने महादेव की पूजा की तब महादेव ने उनसे कहा की वे [महादेव] भारद्वाज के वंश में तिन बार जन्म लेंगे
पहले तो स्वयं महादेव शिर्डी साईं के रूप में ,
दुसरे शिव और शक्ति सत्य साईं के रूप में ,
तीसरे केवल शक्ति प्रेमा साईं के रूप में

The first mention of Prema Sai by Sathya Sai Baba appears to be in the discourse Shiva Shakthi,  6 July 1963,  In a conversation between Shiva, Shakthi, and Bharadwaja after Bharadwaja performed a ritual, Shiva said that
they would take human form and be born in the Bharadwaja lineage, thrice: Shiva alone as Shirdi Sai Baba, Shiva and Shakthi together at Puttaparthy as Sathya Sai Baba, and Shakthi alone as Prema Sai, later.
-- http://www.sathyasai.org/intro/premasai.htm

अब मैं ये नही समझ पाया की शिव शक्ति और महर्षि भारद्वाज  के मध्य ये वर्तालाब कब हुआ ?
क्या 1963 में हुआ ? कहाँ हुआ ?
विमान शास्त्र के रचनाकार महर्षि भारद्वाज तो रामजी के समय में थे अर्थात आज से लगभग 9336 वर्ष पूर्व
http://www.vedicbharat.com/2013/02/blog-post.html

भारद्वाज  जी तो आज इस दुनिया में ही नही
और बात शिव और शक्ति की तो निर्गुण रूप से सगुण रूप लेकर वे कब आये पृथ्वी पर ?

अगर कोई कहे की वार्तलाब प्राचीन समय का है तो किसी मान्य पुराण अथवा ग्रन्थ में इसका उल्लेख दिखाएँ तो मैं मान भी लूँ

 और दूसरा यदि साईं बाजार के चीफ एग्जीक्यूटिवज की माने तो वे अबतक ठीक से नही बता रहे की शिर्डी साईं आखिर अवतार किसके है ?
अभी दत्तात्रेय , कभी शिव , कभी राम , कभी कृष्ण ?

और सत्य साईं कभी शिर्डी साईं के तो कभी जिसस के तो अब शिव और शक्ति दोनों के ?

और सत्य साईं ने कहा था की में अपनी मृत्यु के १ वर्ष उपरांत पुनः आऊंगा ?
तो प्रेमा साईं किस के अवतार है सत्य साईं के या शिव शक्ति दोनों के ??

Sathya Sai Baba said in this discourse of 9 September 60 (Chapter 31 of Sathya Sai Speaks volume 1):

I will be in this mortal human form for 59 years [Editor: we now think that Swami meant lunar years] more and I shall certainly achieve the purpose of this avatar; do not doubt it. I will take My own time to carry out My Plan so far as you are concerned. I cannot hurry because you are hurrying.
I may sometimes wait until I can achieve ten things at one stroke; just as an engine is not used to haul one coach, but awaits until sufficient haulage in proportion to its capacity is ready. But My Word will never fail; it must happen as I will.

Howard Murphet, in his book Sai Baba: Invitation to Glory (Chapter 4), says that

Finally, Sathya Sai states, there will be Prema Sai who, one year after the passing of the Sathya Sai form, will be born in Karnataka (the old Mysore State), at a place between Bangalore and the city of Mysore.

n page 16 of the book Living Divinity author Shakuntala Balu writes,
Sri Sathya Sai Baba has said that there will be one more Sai Avatara called Prema Sai. The third Sai will be born in Gunaparthi, a village in the Mandya district of Karnataka. Thus, Sri Sathya Sai Baba refers not only to his past, but also to the future form he will assume as Prema Sai.

शिर्डी साईं का भरद्वाज कुल में पैदा होना संभव ही नही क्यू की :

बाबा के माता  पिता, जन्म, जन्म स्थान किसी को ज्ञात नही । इस सम्बन्ध में बहुत छान बिन की गई । बाबा से व अन्य लोगो से पूछ ताछ की गई पर कोई सूत्र हाथ नही लगा ।  यथार्थ में हम लोग इस इस विषय में सर्वथा अनभिज्ञ है । 16 वर्ष की आयु में सर्वप्रथम दिखाई पड़े  (साँईँ सत्चरित्र अध्याय 4) । 

कोई भी निश्चयपूर्वक यह नही जनता की वे किस कुल में जन्मे और उनके उनके माता पिता कोन  थे !  (साँईँ सत्चरित्र अध्याय 38 )

 जिस व्यक्ति के बारे में आप सर्वथा अनभिज्ञ है और वे किस कुल में जन्मे और उनके उनके माता पिता कोन  थे - कुछ पता नही ! 
फिर उसका गौत्र उसकी मृत्यु के 45 वर्ष (1918-1963 ) पश्चात कैसे पता चला  ??

शिर्डी साईं के अवतार सत्य साईं के कारनामों से तो सभी परिचित है ये जादू टोने दिखाते हुए कई बार पकड़ा गया 



 जब ये ही ऐसा दुष्ट था तो इसका अवतार क्या क्या गुल खिलायेगा आप सोच सकते है साईं बाजार के दलालों ने सबकुछ फिक्स कर रक्खा है देखिये प्रेमा साईं का जीवन अभी ही तय कर दिया Prema Sai Baba, 2030-2116 A.D.
http://www.saibaba.ws/articles/premasaibaba.htm

उपरोक्त साईट में बताया गया है की प्रेमा साईं विवाह भी करेगा और एक बेटा होगा , आगे लिखा है 
After 2126 the end of the Triple Incarnation (Shirdi Sai, Satya Sai and Prema Sai), but is it the end of the Golden Age?

but is it the end of the Golden Age?
इसका सीधा सा अर्थ है की ये कारोबार यही नही रुकेगा 
प्रेमा साईं का बेटा भी सभी को आशीर्वाद देगा क्यू की ईश्वर का पुत्र जो है !!!

परन्तु एक भविष्यवाणी सत्य साईं ने भी की थी की वे 96 साल की आयु तक जीवित रहेंगे परन्तु वो झूठी निकली सत्य साईं की साईं मृत्यु 85 साल में ही हो गई 

अब प्रेमा साईं के जीवन की अवधि (2030-2116) 86 वर्ष रक्खी गई है, ये 86 से कम जिया तो है ठीक और यदि अधिक जिगया तो ??

तो इसे मार दिया जायेगा और महानिर्वाण किया जायेगा  : निम्न विडियो देखे , कैसे होता है महानिर्वाण  ??
                                            


  
प्रेमा साईं की फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर मार्केटिंग शुरू होहि चुकी है
https://www.facebook.com/prema.sai.baba?ref=br_tf
https://www.facebook.com/groups/203515646351213/
+ अब बस थोडा सहयोग न्यूज़ चेंनल वाले करेंगे http://www.youtube.com/watch?v=7BKet7WkXOg
+ दो चार फिल्म बन जाये
+ 4 झूठी कहानियां मार्केट में रख दो (लोग अपने आप 40 बना लेंगे )
+ एकआध मिनिस्टर इनके मंदिर चला  जाएँ
 = भगवान तैयार है !!

ये सेकुलरिज्म का पाठ सभी को पढ़ायेगा पर भगवान केवल हिन्दुओं का बनेगा !

http://robertpriddy.wordpress.com/2012/12/17/prema-sai-predicted-coming/

 2050 के दो नए भगवान:-- 
१. निर्मल बाबा :



ये एक मानसिक रोगी है : ये कहता है सात लीवर का ताला खरीदो, कृपया आयेगी !
ये अलसर के रोगी को लाल चटनी और मधुमेह के रोगी को खीर खिलाता है !
ये शायद जेल होकर आ चूका है ! 
http://zeenews.india.com/news/nation/nirmal-baba-booked-for-fraud-cheating_774836.html
http://news.oneindia.in/2012/04/20/nirmal-baba-should-be-behind-bars-satyamitranand.html

२.  सुखविंदर कौर (बब्बू):
ये गऊ  कतलखाने चलाती है !
खुद देख लीजिये :

                                         


<< शिर्डी साईं बाबा बेनकाब भाग -२ 



"विनाश काले विपरीत बुद्धि:"

हमारा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाएं भड़काना नहीं, अपितु ईश्वर की आड़ में किये जा रहे साईं पाखंड का सत्य लोगो तक पहुँचाना है ।

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= ॐ =

सोमवार, 15 जुलाई 2013

धर्म क्या है ? | What is Dharma ?

दोस्तों आज दुनिया में धर्म की काफी वैराईटी आ गयी है । आज ईसाईयत , इस्लाम , बोद्ध, जैन तथा हिन्दू ....... आदि सभी को धर्म कहा जा रहा है यही कारण  है की आज लोग धर्म के नाम पर  लड़ रहे है ।
आज हम इसी की पड़ताल करेंगे और साथ में वैदिक विद्वान पं० महेंद्र पाल आर्य जी की भी सहायता लेंगे ।

धर्म का स्पष्ट शब्दों में अर्थ है :
धारण करने योग्य आचरण ।
अर्थात सही और गलत की पहचान ।

इसी कारण जब से धरती पर मनुष्य है तभी से धरती पर धर्म / ज्ञान होना आवश्यक है । अन्यथा धर्म विहीन मनुष्य पशुतुल्य है ।

ज्ञात हो लगभग १००० ईसापूर्व तक धरती पर ये सभी नही थे  केवल एक सनातन धर्म ही था इसका पुख्ता प्रमाण । देखिये :

१. महावीर (लगभग 600 ई० पू०) के जन्म से पूर्व जैनी नामक इस धरती पर कोई नही था । 
उन्होंने दुनिया वालों को जैनी बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर जैनी  कहलाने वाला कौन होता भला? जैन धर्मधर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग जैनी है उनके पूर्वज महावीर के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर स्वयं महावीर किस धर्म में पैदा हुए?

२. राजा शुद्धोधन के पुत्र जब तक सिद्धार्थ (लगभग 600 ई० पू०) थे अर्थात युवक थे तब तक धरती पर बोध/ बौधिस्ट नामक कोई भी नही था । 
उन्होंने दुनिया वालों को बौध्गामी बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर बौधिस्ट कहलाने वाला कौन होता भला?  बोध धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग बोध है उनके पूर्वज बुध के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर गौतम बुद्ध किस धर्म में पैदा हुए?

३. जीसस लगभग 5 ई० पू० हुए । 
उन्होंने दुनिया वालों को ईसाई बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर ईसाई कहलाने वाला कौन होता भला? ईसाई धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग ईसाई है उनके पूर्वज जीसस के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ?
और फिर स्वयं जीसस किस धर्म में पैदा हुए?

४. मुहम्मद लगभग 570 ई० में जन्मे । 
उन्होंने दुनिया वालों को मुसलमान बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर मुसलमान कहलाने वाला कौन होता भला? इस्लाम धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग मुसलमान है उनके पूर्वज मुहम्मद के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर स्वयं मुहम्मद किस धर्म में पैदा हुए?

चलते  चलते ये भी बता दूँ की कई मुस्लमान ये भी कहते है की इस्लाम पहले से है सनातन है । सनातन अर्थात शाश्वत है । 
पर ये क्या ?
قل أني أمر ت أن أكون أول من أسلم ولا تكو نن من أ لمشر كين

“कुल इन्नी उमिर्तु अन अकुना आव्वाला मन असलम-ला ताकुनान्ना मिनल मुश्रेकिन”
-सूरा अन्याम आयत १४
 अर्थात तुम कह दो सबसे पहला मैं मुसलमान हूँ, मै मुशरिको में शामिल नहीं| यानि सबसे पहले मै मुस्लमान हूँ मै शिर्क करने वालों में नहीं हूँ| 

सबसे पहले हज़रत मोहम्मद साहब (570 ई०) ही सबसे पहला मुस्लमान है, यह कुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है । 

इसी प्रकार अनेको उदाहरन मिल जायेंगे । ये सभी 'मजहब' कहलाते है । इन्ही का नाम मत है, मतान्तर है, पंथ है , रिलिजन है ।  ये धर्म नही हो सकते । 
अंग्रेजी के शब्द Religion का अर्थ भी मजहब है धर्म नही । किन्तु डिक्शनरी में आपको धर्म और मजहब दोनों मिलेंगे , डिक्शनरी बनाई तो इंसानों ने ही है ना !!
वास्तव में धर्म शब्द अंग्रेजी में है ही नही इसलिए उन्हें Dharma लिखना पड़ता है । ठीक उसी प्रकार जैसे योग को Yoga.
http://stephen-knapp.com/
http://www.hinduism.co.za/founder.htm

धर्म केवल ईश्वर प्रदत होता है व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया हुआ नही । क्योकि व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया हुआ 'मत' (विचार) होता है अर्थात उस व्यक्ति को जो सही लगा वो उसने लोगो के समक्ष प्रस्तुत किया और श्रधापूर्वक अथवा बलपूर्वक अपना विचार (मत) स्वीकार करवाया। 
अब यदि एक व्यक्ति निर्णय करने लग जाये क्या सही है और क्या गलत तो दुनिया में जितने व्यक्ति , उतने धर्म नही हो जायेगे ? 
कल को कोई चोर कहेगा मेरा विचार तो केवल चोरी करके अपनी इच्छाएं पूरी करना है तो क्या ये मत धर्म हो गया ? 

ईश्वरीय धर्म में ये खूबी है की ये समग्र मानव जाती के लिए है और सामान है जैसे सूर्य का प्रकाश , जल  , प्रकृति प्रदत खाद्य पदार्थ आदि ईश्वर कृत है और सभी के लिए है । उसी प्रकार धर्म (धारण करने योग्य) भी सभी मानव के लिए सामान है । यही कार है की वेदों में वसुधेव कुटुम्बकम (सारी धरती को अपना घर समझो), सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)
आदि आया है ।  और न ही किसी व्यक्ति विशेष/समुदाय को टारगेट किया गया है बल्कि वेद का उपदेश सभी के लिए है। 

उपरोक्त मजहबो में यदि उस मजहब के जन्मदाता को हटा दिया जाये तो उस मजहब का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । इस कारण ये अनित्य है । और जो अनित्य है वो धर्म कदापि नही हो सकता ।  किन्तु सनातन वैदिक (हिन्दू) धर्म में से आप कृष्ण जी को हटायें, राम जी को हटायें तो भी सनातन धर्म पर कोई असर नही पड़ेगा क्यू की वैदिक धर्म इनके जन्म से पूर्व भी था, इनके समय भी था और आज इनके पश्चात भी है  अर्थात वैदिक धर्म का करता कोई भी देहधारी नही। यही नित्य है। 

अब यदि कोई कहे की उपरोक्त जन्मदाता ईश्वर के ही बन्दे थे आदि आदि तो ईश्वर आदि-स्रष्टि में समग्र ज्ञान वेदों के माध्यम से दे चुके थे तो कोनसी बात की कमी रह गई थी जो बाद में अपने बन्दे भेजकर पूरी करनी पड़ी ? 
जिस प्रकार हम पूर्ण ज्ञानी न होने के कार ही पुस्तक के प्रथम संस्करण (first edition) में त्रुटियाँ छोड़ देते है तो उसे द्वितीय संस्करण (second edition) में सुधारते है क्या इसी प्रकार ईश्वर का भी  ज्ञान अपूर्ण है ?
और दूसरा ये की स्रष्टि आरंभ में वसुधेव कुटुम्बकम आदि कहने वाला ईश्वर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग समय में अपने बन्दे भेज भेज कर लोगो को समुदायों में क्यू बाँटने लग गया ? और उसके सभी बन्दे अलग अलग बाते क्यू कर रहे थे ? यदि एक ही बात की होती तो आज अलग अलग मजहब क्यू बनते ?
और तीसरा ये की यदि बन्दे भेजने ही थे तो इतनी लेट क्यू भेजे ? धरती की आयु अरबो वर्ष की हो चुके है और उपरोक्त सभी पिछले ३ ० ० ० वर्षों में ही अस्तित्व में आये है । 
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Age-of-Universe-Vedas-Shri-Mad-Bhagwatam.html

इत्यादि कारणों से स्पष्ट है की धर्म सभी के लिए एक ही है जो आदि काल से है ।  बाकि सभी मत है लोगो के चलाये हुए । 

शायद में ठीक से समझा नही पाया कृपया निम्न १४ मिनट का विडियो देखें : 



http://www.youtube.com/watch?v=OTQMcv2euKk

http://www.mahenderpalarya.com/वैदिक-संस्कृति-का-परिचय/
https://www.facebook.com/MahendraPalArya

इस लेख के माध्यम से मेरा उद्देश्य किसी की भावनाएँ आहात करने का नही अपितु सत्य की चर्चा करने का है । पसंद आये तो इस लेख/विडियो  का प्रचार करें ताकि लोगो तक सत्य पहुंचे । 



TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

गुरुवार, 20 जून 2013

इन्द्र अहल्या और गौतम का सत्य | Truth of Indra Ahalya and Gautama

Truth of Indra Ahalya and Gautama
Truth of Indra Ahalya and Gautama
सबसे पहले इन्द्र और अहल्या की कथा जो अब तक प्रचलित है वो देखते है फिर भांडा फोड़ेंगे .

देवों का राजा इन्द्र देवलोक में देहधारी देव था। वह गोतम ऋषि की स्त्री अहल्या के साथ जारकर्म किया करता था। एक दिन जब उन दोनों को गोतम ऋषि ने देख लिया, तब इस प्रकार शाप दिया की हे इन्द्र ! तू हजार भगवाला हो जा । तथा अहल्या को शाप दिया की तू पाषाणरूप हो जा। परन्तु जब उन्होंने गोतम ऋषि की प्रार्थना की कि हमारे शाप को मोक्षरण कैसे व कब मिलेगा, तब इन्द्र से तो कहा कि तुम्हारे हजार भग के स्थान में हजार नेत्र हो जायें, और अहल्या को वचन दिया कि जिस समय रामचन्द्र अवतार लेकर तेरे पर अपना चरण लगाएंगे, उस समय तू फिर अपने स्वरुप में आ जाओगी।

दोस्तों उपरोक्त कथा और सत्य कथा में कुछ कुछ उतना ही अंतर है जितना :
आज दुकान बंद रखा गया है 
आज दुकान बंदर खा गया है 
में है । 

इन्द्रा गच्छेति । .. गौरावस्कन्दिन्नहल्यायै जारेति । तधान्येवास्य चरणानि तैरेवैनमेंत्प्रमोदयिषति ।। 
शत ० का ० ३ । अ ० ३ । ब्रा ० ४ । कं ० १ ८ 
रेतः सोम ।।  शत ० का ० ३ । अ ० ३ । ब्रा ० २  । कं ० १
रात्रिरादित्यस्यादित्योददयेर्धीयते  निरू ० अ ० १२ । खं० १ १ 
सुर्य्यरश्पिचन्द्रमा गन्धर्वः।। इत्यपि निगमो भवति । सोअपि गौरुच्यते।। निरू ० अ ० २ । खं० ६ 
जार आ भगः जार इव भगम्।। आदित्योअत्र जार उच्यते, रात्रेर्जरयिता।। निरू ० अ ० ३  । खं० १ ६ 

(इन्द्रागच्छेती०) अर्थात उनमें इस रीति से है कि सूर्य का नाम इन्द्र ,रात्रि का नाम अहल्या तथा चन्द्रमा का गोतम है। यहाँ रात्रि और चन्द्रमा का स्त्री-पुरुष के समान रूपकालंकार है। चन्द्रमा अपनी स्त्री रात्रि के साथ सब प्राणियों को आनन्द कराता है और उस रात्रि का जार आदित्य है। अर्थात जिसके उदय होने से रात्रि अन्तर्धान हो जाती है। और जार अर्थात यह सूर्य ही रात्रि के वर्तमान रूप श्रंगार को बिगाड़ने वाला है। इसीलिए यह स्त्रीपुरुष का रूपकालंकार बांधा है, कि जिस प्रकार स्त्रीपुरुष मिलकर रहते हैं, वैसे ही चन्द्रमा और रात्रि भी साथ-२ रहते हैं।

चन्द्रमा का नाम गोतम इसलिए है कि वह अत्यन्त वेग से चलता है। और रात्रि को अहल्या इसलिये कहते हैं कि उसमें दिन लय हो जाता है । तथा सूर्य रात्रि को निवृत्त कर देता है, इसलिये वह उसका जार कहाता है।

इस उत्तम रूपकालंकार को अल्पबुद्धि पुरुषों ने बिगाड़ के सब मनुष्य में हानिकारक मिथ्या सन्देश फैलाया है। इसलिये सब सज्जन लोग पुराणोक्त मिथ्या कथाओं का मूल से ही त्याग कर दें।

--: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , महर्षि दयानंद सरस्वती 

तर्क शास्त्र से किसी भी प्रकार से यह संभव ही नहीं हैं की मानव शरीर पहले पत्थर बन जाये और फिर चरण छूने से वापिस शरीर रूप में आ जाये।


दूसरा वाल्मीकि रामायण में अहिल्या का वन में गौतम ऋषि के साथ तप करने का वर्णन हैं कहीं भी वाल्मीकि मुनि ने पत्थर वाली कथा का वर्णन नहीं किया हैं। वाल्मीकि रामायण की रचना के बहुत बाद की रचना तुलसीदास रचित रामचरितमानस में इसका वर्णन हैं।

वाल्मीकि रामायण 49/19 में लिखा हैं की राम और लक्ष्मण ने अहिल्या के पैर छुए। यही नहीं राम और लक्ष्मण को अहिल्या ने अतिथि रूप में स्वीकार किया और पाद्य तथा अधर्य से उनका स्वागत किया। यदि अहिल्या का चरित्र सदिग्ध होता तो क्या राम और लक्ष्मण उनका आतिथ्य स्वीकार करते?

विश्वामित्र ऋषि से तपोनिष्ठ अहिल्या का वर्णन सुनकर जब राम और लक्ष्मण ने गौतम मुनि के आश्रम में प्रवेश किया तब उन्होंने अहिल्या को जिस रूप में वर्णन किया हैं उसका वर्णन वाल्मीकि ऋषि ने बाल कांड 49/15-17 में इस प्रकार किया हैं

स तुषार आवृताम् स अभ्राम् पूर्ण चन्द्र प्रभाम् इव |
मध्ये अंभसो दुराधर्षाम् दीप्ताम् सूर्य प्रभाम् इव || ४९-१५

सस् हि गौतम वाक्येन दुर्निरीक्ष्या बभूव ह |
त्रयाणाम् अपि लोकानाम् यावत् रामस्य दर्शनम् |४९-१६

तप से देदिप्तमान रूप वाली, बादलों से मुक्त पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा के समान तथा प्रदीप्त अग्नि शिखा और सूर्य से तेज के समान अहिल्या तपस्या में लीन थी।

सत्य यह हैं की देवी अहिल्या महान तपस्वी थी जिनके तप की महिमा को सुनकर राम और लक्ष्मण उनके दर्शन करने गए थे। विश्वामित्र जैसे ऋषि राम और लक्ष्मण को शिक्षा देने के लिए और शत्रुयों का संहार करने के लिए वन जैसे कठिन प्रदेश में लाये थे।


किसी सामान्य महिला के दर्शन कराने हेतु नहीं लाये थे।

कालांतर में कुछ अज्ञानी लोगो ने ब्राह्मण ग्रंथों में  “अहल्यायैजार” शब्द  के रहस्य को न समझ कर इन्द्र द्वारा अहिल्या से व्यभिचार की कथा गढ़ ली। प्रथम इन्द्र को जिसे हम देवता कहते हैं व्यभिचारी बना दिया। भला जो व्यभिचारी होता हैं वह देवता कहाँ से हुआ?

द्वितीय अहिल्या को गौतम मुनि से शापित करवा कर उस पत्थर का बना दिया जो असंभव हैं।

तीसरे उस शाप से मुक्ति का साधन श्री राम जी के चरणों से उस शिला को छुना बना दिया।

जबकि महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या श्रेष्ठ आचरण वाले थे । 
ये वही महर्षि गौतम है जिन्होंने वैदिक काल में न्यायशास्त्र की रचना की थी । 
->न्याय के प्रवर्तक ऋषि गौतम {Justice Formula by Gautama Maharishi}


मध्यकाल को पतन काल भी कहा जाता हैं क्यूंकि उससे पहले नारी जाति को जहाँ सर्वश्रेष्ठ और पूजा के योग्य समझा जाता था वही मध्यकाल में वही ताड़न की अधिकारी और अधम समझी जाने लगी।


इसी विकृत मानसिकता का परिणाम अहिल्या इन्द्र की कथा का विकृत रूप हैं।

तो क्या इस प्रकार की मुर्खता भरी बाते होने के कारण सब पुराणादि मिथ्या है ?
बिलकुल नही !!! यदि समस्त पुराणादि को मिथ्या माने ने पुराणो में जो विज्ञानं आदि की बाते है वो कहाँ से आई ?
-> पृथ्वी पर प्रजातियां | पुनर्जन्म : पद्म पुराण (Life Forms on Earth & Rebirth : Padma Purana)
->भ्रूणविज्ञान : श्री मदभागवतम् {Embryology in Bhagwatam}
->ॐ, साइमेटिक्स और श्री यन्त्र (Om, Cymatics and Shri Yantra)
->ब्रह्माण्ड की आयु (Universe Age - Vedas|ShriMadBhagwatam)
->सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of relativity)
->महर्षि अगस्त्य का विद्युत्-शास्त्र {Ancient Electricity}
आदि ।
इसके अतिरिक्त जो जो बाते वेदादि विरुद्ध है वे निश्चित रूप से मूर्खों की भ्रमित बुद्धि के प्रलाप अथवा मुगल समय में  बलपूर्वक  गर्दन पर तलवार रख कर लिखवाएं गये है ॥ 


                                                             सनातन्  धर्मं: नमो नमः



जय सियाराम !!

TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

शनिवार, 8 जून 2013

हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता ? | 33 Crore Gods in Hinduism ?


हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता है , असुरों ने ऐसा उत्पात मचाया हुआ है .. वेदों के आधार पर आज इसका भंडाफोड़ करेंगे ..

सर्वप्रथम ये देखते है की देवता शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है ?

देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा  घोतनाद्वा, घुस्थानो भवतीति व । ।     : निरुक्त अ०  ७ । खं०  १५ 

दान देने से देव नाम पड़ता है ।  और दान कहते है  अपनी चीज दुसरे के अर्थ दे देना ।
दीपन कहते है प्रकाश करने को, धोतन कहते है सत्योपदेश को, इनमे से दान का दाता मुख्य एक ईश्वर ही है कि जिसने जगत को सब पदार्थ दे रखे है , तथा विद्वान मनुष्य भी विधादि पदार्थों के देने वाले होने से देव कहाते है ।
दीपन अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों का प्रकाश करने से सुर्यादि लोको का नाम भी देव है ।
देव शब्द में 'तल्' प्रत्यय करने से देवता शब्द सिद्ध होता है ।

नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्शत्   : यजुर्वेद अ०  ४० । मं०  ४ 

इस वचन में देव शब्द से इन्द्रियों का ग्रहण होता है । जोकि श्रोत्र , त्वचा , नेत्र , जीभ , नाक और मन , ये छ : देव कहाते है । क्योकि शब्द , स्पर्श, रूप, रस, गंध , सत्य तथा असत्य आदि अर्थों का इनके प्रकाश होता है अर्थात इन्ही ६  इन्द्रियों से हमें उपरोक्त ६ लक्षणों (शब्द , स्पर्श, रूप .....) का ज्ञान होता है ।
देव कहने का अभिप्राय ये नही की श्रोत्र , त्वचा , नेत्र ... आदि पूजनीय हो गये .

मातृदेवो भव , पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव अतिथिदेवो भव  । प्रपा ० । अनु ० ११ 

माता पिता , आचार्य और अतिथि भी पालन , विद्या  और सत्योपदेशादि के करने से देव कहाते है वैसे ही सूर्यादि लोकों का भी जो प्रकाश करने वाला है , सो ही ईश्वर सब मनुष्यों को उपासना करने के योग्य इष्टदेव है , अन्य  कोई नही ।  इसमें कठोपनिषद का भी प्रमाण है :

न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विधुतो भान्ति कुतोSयमग्नि : । 
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति । । 
-कठ ० वल्ली ५ । मं ० १५ 

सूर्य , चन्द्रमा , तारे , बिजली और अग्नि ये सब परमेश्वर में प्रकाश नही कर सकते , किन्तु इन सबका प्रकाश  करने वाला एक वही है क्योकि परमेश्वर के प्रकाश से ही सूर्य आदि सब जगत प्रकाशित हो रहा है । इसमें यह जानना चाहिए कि ईश्वर से भिन्न कोई पदार्थ स्वतंत्र प्रकाश करने वाला नही है, इससे एक परमेश्वर ही मुख्य देव है ।

अब ३३ देवता (न की करोड़) के विषय में देखते है :

ये त्रिंशति त्रयस्परो देवासो बर्हिरासदन् | विदन्नह द्वितासनन् || 
ऋग्वेद अ ० ६ । अ ० २ । व० ३५ । मं ० १ 

त्रयस्त्रिं;शतास्तुवत भूतान्यशाम्यन् प्रजापति : परमेष्ठय्द्हिपतिरासीत्   ||
यजुर्वेद अ०  १४   मं०  ३१ 

त्रयस्त्रिं;शत् अर्थात व्यवहार के ये (33) देवता है : 
8 वसु ,
11 रुद्र ,
12 आदित्य ,
1 इन्द्र ओर 
1 प्रजापति |

उन्मे से 8 वसु ये है :- अग्नि , पृथिवि , वायु , अन्तरिक्ष , आदित्य , घौ: , चन्द्रमा ओर नक्षत्र |
इनक नाम वसु इसलिये है कि सब पदार्थ इन्ही में वास करते है और ये ही सबके निवास करने के स्थान है । 


१ १ रूद्र ये कहाते है - जो शरीर में दश प्राण है अर्थात प्राण, अपान , व्यान , समान , उदान , नाग , कुर्म , कृकल , देवदत्त, धनज्जय और १ १ वां  जीवात्मा । क्योंकि जब वे इस शरीर से निकल जाते है तब मरण होने से उसके सब सम्बन्धी लोग रोते है ।  वे निकलते हुए उनको रुलाते है , इससे इनका नाम रूद्र है । 

इसीप्रकार आदित्य 1२ महीनो को कहते है, क्योकि वे सब जगत के पदार्थों का आदान अर्थात सबकी आयु को ग्रहण करते चले जाते है , इसी से इनका नाम आदित्य है । 

ऐसे ही इंद्र नाम बिजली का है , क्योकी वह उत्तम ऐश्वर्य की विधा का मुख्य हेतु है और यज्ञ को प्रजापति इसलिए कहते है की उससे वायु और वृष्टिजल की शुद्धि द्वारा प्रजा का पालन होता है । तथा पशुओं की यज्ञसंज्ञा होने का यह कारण है कि उनसे भी प्रजा का जीवन होता है ।  ये सब मिलके अपने दिव्यगुणों से ३ ३ देव कहाते है । 

इनमे से कोई भी उपासना के योग्य नही है, किन्तु व्यवहार मात्र की सिद्धि के लिए ये सब देव है, और सब मनुष्यों के उपासना के योग्य तो देव एक ब्रह्म ही है ।  

स ब्रह्मा स विष्णु : स रुद्रस्य शिवस्सोअक्षरस्स परम: स्वरातट । -केवल्य उपनिषत खंड १ । मंत्र ८

सब जगत के बनाने से ब्रह्मा , सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु , दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से रूद्र , मंगलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से शिव है ।

--: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , महर्षि दयानंद सरस्वती 


                                                              सनातन्  धर्मं: नमो नमः

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सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

गुरुवार, 23 मई 2013

शिरडी साईं बाबा बेनकाब भाग -२ {Shirdi sai baba Exposed ! Part-2}

<<शिर्डी साईं बाबा बेनकाब भाग -१                                                    प्रेम (प्रेमा) साईं बाबा बेनकाब>>


दोस्तों प्रणाम,

पिछले लेख में हमने साईं सत्चरित्र के आधार पर बाबा का सच आपके सामने रखा था जिसे कई साईं भक्तों की आंखे भी खुली परन्तु उससे भी अधिक हमें गलियां, श्राप तथा धमकियाँ आदि भी झेलनी पड़ी ।
और कुछ ने बाबा के विषय में कुछ बाते हमारे समक्ष रखी। वो हम इस लेख में ले रहे है ।

ये साईं भक्तों की भ्रांतियां मात्र है जो हमें ईमेल,  कमेंट तथा फेसबुक आदि के  माध्यम से प्राप्त हुई है ।

https://www.facebook.com/great.saibaba.shirdi
https://www.facebook.com/islamic.saibaba
https://www.facebook.com/expose.shirdisai
https://www.facebook.com/ShirdiSaiBabaBharataKeItihasaKaSabaseBaraPakhanda


भ्रांति १ : बाबा ने कभी स्वयं को ईश्वर नही कहा !
सत्य : बाबा ने स्वयं को अनेक बार ईश्वर, परब्रह्म कहा है ! (साईं सत्चरित्र से)

 निम्न प्रति साईं सत्चरित्र अध्याय 3 की है :-



और भी अनेकों जगह कहा है चीख चीख कर कहा है ।


भ्रांति २ : बाबा ने अपने जीवन में स्वयं को किसी किसी धर्म, पंथ से नही जोड़ा


सत्य : यदि बाबा ने स्वयं को किसी किसी धर्म से नही जोड़ा तो शिर्डी संस्थान ने उन्हें किस आधार पर हिन्दू देवी देवताओं के मध्य स्थान दिया गया है ? और फिर बाबा मुस्लिम थे इसमें मुझे कोई संदेह नही !


वो जिन्दगी भर एक मस्जिद में रहे , इस्लामी वस्त्र पहनते  थे , बकरे कटते  थे , अल्लाह मालिक कहते थे  और मृत्यु पश्चात भी इस्लामिक रितिनुसार दफ़न किया गया। क्या इससे सिद्ध नही होता की वो मुस्लिम थे ?
"एक फ़क़ीर देखा जिसके सर पर एक टोपी, तन पर कफनी और पास में एक सटका था" {अध्याय 5 }

१ मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, बाबा ने शामा से कहा हाजी से पुछो उसे क्या रुचिकर होगा - "बकरे का मांस, नाध या अंडकोष ?"
-अध्याय ११

(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.

(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.

(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.

(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.

(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.

(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.


निम्न विडियो देखे , यदि साईं वाकई कोई अवतार अथवा सिद्ध संत था तो मुस्लिम कव्वाल साईं जागरण में अल्लाह का गान क्यू कर रहे है ?
श्री राम कृष्ण को भर पेट गलियां देने वाले मुस्लिम , उन्ही के बताये जा रहे अवतार की दर पर गये ?
ये बात मूर्खों को समझ आये अथवा नही मुझे तो आ चुकी !!

http://www.youtube.com/watch?v=yXk47DjmEQI


भ्रांति ३ : बाबा ने सदेव कहा तुम अपने अपने धर्म-मजहब का ही पालन करों !

सत्य : बाबा ने स्वयं को अनेक बार ईश्वर, परब्रह्म कहा और कहा मेरा भजन कीर्तन करने व् मात्र साईं साईं पुकारने से सब पाप नष्ट हो जायेंगे !



भ्रांति ४ : बाबा का पूरा जीवन गरीबी में व्यतीत हुआ !

सत्य : बाबा बाजार से खाद्य सामग्री : आटा,दाल ,चावल, मिर्च, मसाला आदि लाते थे और इसके लिए वे किसी पर निर्भर नही रहे ! और तो और बाबा के पास घोडा भी था (अध्याय ३ ६ )

 पति पत्नी दोनों ने बाबा को प्रणाम किया और पति ने बाबा को 500 रूपये भेंट किये जो बाबा के घोड़े श्याम कर्ण के लिए छत बनाने के काम आये !    (अध्याय ३ ६  )

बाबा उस समय के अमीर व्यक्तियों में से थे !!


भ्रांति ५ : बाबा ने कहा सबका मालिक एक !
उत्तर : हम कैसे माने ? जबकि इस पुस्तक में "अल्लाह मालिक" वे कहा करते थे, लगभग हर दुसरे अध्याय में आया है !


भ्रांति ६ :बाबा का मूल मंत्र श्रधा व सबुरी !

सत्य : बाबा ने एक साधारण व्यक्ति होने पर भी स्वयं पर श्रधा रखने को कहा, सबुरी बाबा को थी ही नही !
इस पुस्तक में बाबा के रुपया पैसा लेनदेन की अनेकों बाते आयी है। जहाँ एक १ से लेकर हजारों रुपयों की चर्चा है !
{ये घटनाये 19वीं सदी की है उस समय लोगो की आय 2-3 रूपये प्रति माह हुआ करती थी ! तो हजारों रूपये कितनी बड़ी रकम हुई ??}


उस समय के लोग  2-3 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते थे !
और आज के 10,000 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते है !
तो उस समय और आज के समय में रुपयों का अनुपात (Ratio) क्या हुआ ?
 10000/3=3333.33
तो उस समय के  1000 रूपये आज के कितने के बराबर हुए ?
 1000*3333.33=33,33,330 रूपये

यदि हम यह अनुपात 3333.33 की अपेक्षा कम से कम 1000  भी माने तो :-

1000*1000= 10,00,000 रूपये

बाबा उस समय के अमीर व्यक्तियों में से थे !!


भ्रांति ७ :बाबा ने लोगों को जिना सिखाया !
सत्य : पुस्तक के अनुसार बाबा मात्र १९ वर्ष की आयु से ही बीडीयां पिया करते थे , बात बात पर क्रोधित होना व् स्त्रियों को अपशब्द कहना उनका स्वभाव था ! क्या सिख मिली ?
बाबा का चरित्र पढ़ कर मुझे तो लगा की यदि साईं भक्त चिलम,बीडी,तम्बाकू का सेवन करें, स्त्रियों पर चिल्लाये तथा अपशब्द कहे , बेगुनाह बेजुबान जीवों को मर कर खा जाएँ , और किसी को बल पूर्वक उसकी इच्छा के विरुद्ध मांस खिला  दें तो कोई पाप नही ..क्यू की उनके आराध्य साईं भी ऐसा ही किया करते थे ..

भ्रांति ८  :बाबा ने अनेकों चमत्कार किये !
सत्य :किन चमत्कारों की बात करते है आप ?
इनकी : (बड़ा करने के लिए चित्र पर क्लिक करें )
Shirdi Sai Baba Miracles
इस प्रकार ओछी हरकतें  करने  वाला भगवान होता है ??

पानी से दिया जलाते ही भगवान बन गये ? किसने देखा पानी से दिया जलाते हुए ?
१२वी के केमिस्ट्री के विधार्थी भी पानी में आग लगा देते है, भगवान बन गये वो ?
इसका अवतार सत्य साईं भी हाथों में नलकियां लगा कर भभूती निकाला करता था , पकड़ा गया , जमाने भर में थू थू हो गई , फिर उसने सब बंद कर दिया था  |
भारत वर्ष में पूजा चमत्कारों की नही चरित्र की होती है .. चरित्र जानने के लिए पीछला लेख पढ़े ।
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Shirdi-sai-baba-Exposed---must-read.html


भ्रांति ९ : बाबा सारी उम्र लोगो के लिए जिए ।
सत्य : शास्त्रों के अनुसार देश, समाज की सेवा करने के लिए स्वयं का स्वस्थ होना परम आवश्यक है .
"पहला सुख निरोगी काया"

बाबा जीवन में अधिकतर बीमार रहे ..

बाबा का जीवन १ ८ ३ ८ से १ ९ १ ८ ..


बाबा की स्थति चिंता जनक हो गई और ऐसा दिखने लगा की वे अब देह त्याग देंगे ! {अध्याय ३९}
ये घटना कब की है, लेखक ने सन नही लिखा है । 

सन 1886 (उम्र 48 वर्ष) में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई और उन्होंने अपने भगत म्हालसापति को कहा तुम मेरे शरीर की तिन दिन तक रक्षा करना यदि में  वापस लौट आया तो ठीक, नही तो मुझे उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए) पर मेरी समाधी बना देना और दो ध्वजाएं चिन्ह रूप में फेहरा देना ! {अध्याय 43}

28 सितम्बर 1918 को बाबा को साधारण-सा  ज्वर आया । ज्वर 2 3 दिन रहा । बाबा ने भोजन करना त्याग दिया । इसे साथ ही उनका शरीर दिन प्रति दिन क्षीण व दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात अर्थात 14 अक्तूबर 1918 को को 2 बजकर 30 मिनिट पर उन्होंने अपना शरीर त्याग किया !{अध्याय 42 }

इस प्रकार बाबा बीमारी से दो बार मरते मरते बचे और तीसरी बार में मर ही गये ..

इस पुस्तक में बार बार समाधी/महासमाधी/समाधिस्त  शब्द आया है किन्तु बाबा की मृत्यु दमे व बुखार से हुई ! बाद में दफन किया गया  अतः उस स्थान को समाधी नही कब्र कहा जायेगा !!

समाधी स्वइच्छा देहत्याग को कहते है !

कब्र में जो मुर्दा गडा होता है उसे पूजने का एक भी कारण मुझे समझ नही आता ..
मृत्यु पश्चात उस जिव की आत्मा अपने कर्मो के अनुसार सदगति अथवा अधमगति को प्राप्त होती है, अब शेष रहा उसका निर्जीव शव जो भूमि में कीड़ो द्वारा खाया जाता है , अब शेष बचा कंकाल ।।
कोई कंकाल आपकी मनोकामना पूरी कैसे कर सकता है ? कंकाल की पूजा अर्थात भुत की पूजा !! 

श्री कृष्ण ने गीता जी के ९ वे अध्याय में क्या कहा है जरा देखें, गौर से देखे :-
यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम् .... गीता ९/२५ 

अर्थात 
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते है, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते है। 
भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते है, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझे ही प्राप्त होते है ॥ 
................इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नही होता !!

भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं.!

मेरे मतानुसार श्री कृष्ण जानते थे की कलियुग में मनुष्य मतिभ्रमित हो कर मुर्दों को पूजेंगे इसीलिए उन्होंने अर्जुन को ये उपदेश दिया अन्यथा गीता कहते समय वे युद्ध भूमि में थे और युद्ध भूमि में  ऐसा उपदेश देने का क्या अभिप्राय ?
शिर्डी के मुख्य द्वार पर साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की कब्र। Tomb of chand miyan
                                 

यही वो  साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की कब्र है जहाँ आप माथा पटकने जाते है !
बाबा का शरीर अब वहीँ विश्रांति पा  रहा है , और फ़िलहाल वह समाधी मंदिर नाम से विख्यात है {अध्याय 4}
कब्र पूजन के शोकिन हिन्दू एक बार ये लेख भी पढ़ लें  :
http://agniveer.com/grave-worship-hi/


ये तो हुई समाज के बात। !

अब देश की बात :
सत्य तो ये है की बाबा को पता ही नही था शिर्डी के बाहर हो क्या रहा है ? 
एक और राहता (दक्षिण में) तथा दूसरी और नीमगाँव (उत्तर में) थे । बिच में था शिर्डी । बाबा अपने जीवन काल में इन सीमाओं से बहार नही गये (अध्याय 8)

एक और पूरा देश अंग्रेजों से त्रस्त था पुरे देश से सभी जन समय   समय   अंग्रेजों के विरुद्ध होते रहे, पिटते रहे , मरते रहे ।  और बाबा है की इस सीमाओं से पार भी नही गये । 
और नाही अपने अनुयायियों को इसके लिए प्रेरित किया , जबकि इस पुस्तक के अनुसार बाबा के अनुयायियों की कोई कमी नही थी ..
बाबा स्वयं को पुजवाने के बड़े शोखीन थे।। बाबा के भक्त बाबा के उनकी पूजा करते थे और बाबा पूजा करवाते थे देश गया भट्ठी में ..
बाबा के मृत्यु उपरांत का वर्णन :
बुधवार के दिन प्रात:काल बाबा ने लक्ष्मन मामा जोशी को स्वप्न दिया और उन्हें अपने हाथ से  खींचते हुए कहा की , "शीघ्र उठो , बापुसाहब समझता है की में मृत हु । इसलिए वह तो आयेगा नही । तुम पूजन और कक्कड़ आरती करो"  ..(अध्याय ४ ३  )

वाह !!!


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साईं भक्तों के प्रश्न :
प्रश्न १  : यदि साईं सत्चरित्र में ऐसा ऐसा लिखा है तो इसमें बाबा का क्या दोष ?

उत्तर : लेखक  "हेमाडपंत" ने लिखा है की 1910 में मैं बाबा से मिलने मस्जिद गया ! (अध्याय १ )
मेने बाबा की पवित्र जीवन गाथा का लेखन प्रारंभ कर दिया (अध्याय २  )
 और बाबा से उनके जीवन पर किताब लिखने की अनुमति मांगी !
और मैंने महाकव्य "साईं सच्चरित्र" की रचना भी की ! अर्थात साईं सच्चरित्र की रचना सन 1910 में की !
 (अध्याय २ )
ये पुस्तक बाबा की अनुमति से ही लिखी गई !
ये पुस्तक शिर्डी साईं संस्थान, शिर्डी द्वारा प्रमाणित है , १५  भाषाओँ में लिखी जा चुकी है .
निम्न फोटो शिर्डी साईं संस्थान वेबसाइट की है :
https://www.shrisaibabasansthan.org/INDEX.HTML


यदि इस पुस्तक को ही नकार दिया जाये तो बाबा का क्या प्रमाण शेष बचता है ? साईं नाम का कोई हुआ था भी या नही ? कैसे पता चलेगा ?
मुझे यदि बाबा को जानना है तो मुझे इसी पुस्तक पर निर्भर होना पढ़ेगा और फिर लेखक ने इसे महाकव्य की संज्ञा दी है


प्रश्न २   : पुराणों और हिन्दू ग्रंथों में साईं का नाम नही तो क्या हुआ ? वेदों में  ब्रह्मा, विष्णु और महेश का नाम नही . तो क्या हम उन्हें भी नही माने ?

उत्तर :
स ब्रह्मा स विष्णु : स रुद्रस्य शिवस्सोअक्षरस्स परम: स्वरातट । -केवल्य उपनिषत १.८

सब जगत के बनाने से ब्रह्मा , सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु , दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से रूद्र , मंगलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से शिव है ।
-सत्यार्थ प्रकाश पेज १६ , स्वामी दयानंद सरस्वती

योअखिलं जगन्निर्माणे बर्हती वर्द्धयति स ब्रह्मा
जो सम्पूर्ण जगत को रच के बढाता है , इसलिए परमेश्वर का नाम ब्रह्मा है
-पेज २ ६

वेवेष्टि व्यप्रोती चराचरम जगत स विष्णु: परमात्मा
चर और अचररूप जगत में व्यापक होने से  परमात्मा का नाम विष्णु है ।
-पेज २ १

यः शं कल्याणं सुखं करोति स शंकरः
जो कल्याण अर्थात सुख करनेहारा है, इससे शंकर नाम ईश्वर का है ।
-पेज २ ९

यो महतां देवः स महादेव:
जो महान देवों का देव अर्थात विद्वानों का भी विद्वान, सुर्यादी पदार्थों का प्रकाशक है , इसलिए परमात्मा का नाम महादेव है ।
-पेज २ ९

शिवु कल्याणे
जो कल्याणस्वरुप और कल्याण का करनेहारा है इसलिए परमात्मा का नाम शिव है ।
-पेज ३ ०

इसी प्रकार देवी,शक्ति,श्री,लक्ष्मी,सरस्वती तथा गणपति व्  गणेश  पेज २ ७ -२ ८ पर है ।

साभार: सत्यार्थ प्रकाश, स्वामी दयानंद सरस्वती

यदि इन नामों पर साईं अंधभक्तों को विश्वास नही तो फिर साईं को इनके नाम के सहारे क्यू चलाया जा रहा है ?  क्यू की साईं की खुद की तो कोई ओकात ही नही , बेचारे की ।

साईं का नाम साईं सत्चरित्र के अतिरिक्त कहीं भी नही है ।
पता है क्यू ??

क्यू की साईं कोई नाम नही ।

साईं शब्द का अर्थ :--
"साईं बाबा नाम की उत्पत्ति साईं शब्द से हुई है, जो मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पूज्य व्यक्ति और बाबा"
यहाँ देखे :---
http://bharatdiscovery.org/india/शिरडी_साईं_बाबा
फ़ारसी एक भाषा है जो ईरान, ताज़िकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है।

अर्थात साईं नाम(संज्ञा/noun) नही है ! जिस प्रकार मंदिर में पूजा आदि करने वाले व्यक्ति को "पुजारी" कहा जाता है परन्तु पुजारी उसका नाम नही है !
यहाँ साईं भी नाम नही अपितु विशेषण (Adjective) है !
उसी प्रकार 'बाबा' शब्द  भी कोई नाम नही !!

सभी साईं बाबा ही कहते है तो फिर इसका नाम क्या है ??

चाँद मियां !!!


हमारा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाएं भड़काना नहीं, अपितु ईश्वर की आड़ में किये जा रहे साईं पाखंड का सत्य लोगो तक पहुँचाना है ।

<<शिर्डी साईं बाबा बेनकाब भाग -१                                                  प्रेम (प्रेमा) साईं बाबा बेनकाब>>
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ॐ नमः शिवाय ।